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झोपड़पट्टी में दिन काटने को मजबूर हैं हॉकी के ये धुआंधार खिलाड़ी, देखें फोटो

स्पोर्ट्स डेस्क : इस समय ओडिशा में हॉकी वर्ल्ड कप चल रहा है। ऐसे में पूरी दुनिया की निगाहें हॉकी खिलाड़ियों पर है। खासकर भारतीय हॉकी प्लेयर्स के बारे में सब जानना चाहते हैं। लेकिन क्या आप हॉकी के एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में जानते हैं, जिन्होंने 1961 में हॉलैंड को धूल चटाई थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं हॉकी खिलाड़ी रहे टेकचंद यादव की, जो एक समय भारतीय हॉकी टीम का अहम हिस्सा थे। लेकिन आज झोपड़पट्टी में दिन काटने को मजबूर है...

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Deepali Virk
Published : Jan 16 2023, 03:32 PM IST
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टेकचंद यादव का जन्म 9 दिसंबर 1940 को मध्य प्रदेश के सागर जिले में हुआ था। जब वह स्कूल में पढ़ते थे और बच्चों को हॉकी खेलता देखते थे, तो उन्हें भी हॉकी खेलने का जोश आया और उन्होंने पेड़ की लकड़ी काटकर हॉकी बनाई और दोस्तों के साथ हॉकी खेलना शुरू कर दिया।

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टेकचंद यादव के पिता दूध का व्यवसाय करते थे और बहुत कम पैसों में घर का गुजारा होता था। लेकिन जब उन्होंने अपने बेटे की रुचि हॉकी में देखी तो उन्होंने उसे असली वाली हॉकी स्टिक लेकर दे दी।

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इसके बाद उन्होंने डिस्टिक हॉकी एसोसिएशन की ओर से खेलते हुए भोपाल, दिल्ली, चंडीगढ़ सहित कई शहरों में टूर्नामेंट खेले और बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया।

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1960 में मेजर ध्यानचंद एमआरसी सागर आए थे। इस दौरान उन्होंने सागर और जबलपुर के हॉकी खिलाड़ियों को बुलाया। उन खिलाड़ियों में से एक टेकचंद भी थे। इस दौरान मेजर ध्यानचंद 3 महीने तक वहां रुके और उन खिलाड़ियों को हॉकी के गुर सिखाएं।

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मेजर ध्यानचंद से ट्रेनिंग लेने के बाद ही टेकचंद यादव को भारतीय टीम की तरफ से खेलने का मौका मिला और उन्होंने 1961 में हॉलैंड और न्यूजीलैंड के साथ मैच खेला। उनके बेहतरीन प्रदर्शन के चलते विपक्षी टीम कोई भी गोल नहीं दाग सकी और यह दोनों मैच ड्रॉ रहे।

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इतना ही नहीं टेक चंद यादव प्रो. डब्ल्यूडी वेस्ट सागर स्पोर्टिंग क्लब के अध्यक्ष भी रहे और लंबे समय तक हॉकी के क्षेत्र में सक्रियता दिखाई।

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लेकिन 1962 के दौर में टेकचंद यादव की जिंदगी में भूचाल आया, जब उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद उन्होंने मजबूरी में प्राइवेट नौकरी की और खेलना भी बंद कर दिया। इसके बाद उनकी पत्नी और बेटी का निधन भी हो गया। जिसके चलते वह पूरी तरह से अकेले हो गए।

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आज टेक चंद यादव मध्य प्रदेश के सागर जिले के कैंट क्षेत्र में एक टूटी फूटी झोपड़ी में रहते हैं। उनके घर में कोई नहीं है। बस उनके भाई दो वक्त का खाना भेज देते हैं।

यह भी पढ़ें: 300 प्लस रन से जीतने वाली दुनिया की पहली टीम बनी इंडिया, जानें वनडे क्रिकेट इतिहास में पांच सबसे बड़ी जीत कौन

About the Author

DV
Deepali Virk
दीपाली विर्क। पत्रकारिता जगत में 10 साल से ज्यादा का अनुभव। अगस्त 2020 से एशियानेट न्यूज हिंदी के साथ जुड़ी हुई हैं। खेल जगत, लाइफ स्टाइल, फूड, वायरल और ट्रे्डिंग जैसे विषयों का अनुभव है। साल 2015 से इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत की। पत्रिका न्यूज़, डीएनएन न्यूज़ चैनल, बीटीवी और कई अन्य प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों मे काम का अनुभव। Asianxt डिजिटल टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड में काम कर रही हैं। इनके पास डबल मास्टर डिग्री है- पत्रकारिता और एमबीए एचआर-मार्केटिंग। खेल, लाइफस्टाइल, फैशन, फूड, हेल्थ और रिसर्च बेस्ड फीचर स्टोरी पर काम करने विशेषज्ञता हासिल है।

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