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सामने आई गर्दन में अपनी नुकीले दांत गड़ाकर खून पीने वाली दुनिया की पहली फीमेल वैम्पायर

वॉरसॉ(Warsaw). पिशाचों की ये कहानी पोलैंड से शुरू होती है। हम में से बहुतों ने वैम्पायर(vampire) की फिल्में देखी होंगी, जिनमें फीमेल या मेल वैम्पायर लोगों की गर्दन में अपनी नुकीली दांत गड़ाकर खून पीते हैं। अभी तक लोग इन पिशाचों को काल्पनिक ही मानते रहे हैं, लेकिन पुरातत्व टीम ने पोलैंड से एक ऐसे कंकाल को खोज निकाला है, जो 17वीं सदी की फीमेल वैम्पायर मानी जा रही है। पुरातत्व टीम के प्रमुख निकोलस कॉपरनिकस यूनिवर्सिटी(Nicolaus Copernicus University) के प्रोफेसर डॉरिज पोलिंस्की ने बताया कि खुदाई के दौरान टीम को एक ऐसी कब्र मिली, जिसे देखकर वे दंग रह गए। इसमें एक महिला  कंकाल मिला। उसके दांत वैंपायर की तरह बेहद नुकीले थे। महिला सिल्क की टोपी पहनती होगी। कब्र के अंदर मिली टोपी के रेशे से इसका अंदाजा लगाा जा रहा है। पढ़िए आगे की कहानी...

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Amitabh Budholiya
Published : Sep 06 2022, 01:01 PM IST| Updated : Sep 06 2022, 01:04 PM IST
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कब्र में मिले फीमेल वैम्पायर कंकाल की गर्दन को दरांती यान हंसिये(Sickle) से यूं फंसाकर रखा गया था कि अगर महिला कब्र से उठे, तो उसकी गर्दन कट जाए। यानी लोगों को डर था कि ये महिला मरने के बाद भी जिंदा हो सकती है।

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अमेरिका के वॉशिंग्टन डीसी स्थित स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन के आफिसियल जर्नल(Smithsonian Magazine) के अनुसार, 11वीं सदी में यूरोप के लोग वैंपायरों से बहुत खौफ खाते थे। यहां तक कि वो अपने मृतक परिजनों-रिश्तेदारों की की कब्रों पर वैंपायर को भगाने वाले पूजा-पाठ करते थे।

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11वीं सदी के लोग मानते थे कि वैंपायर्स मरने के बाद भी वापस आकर खून पीने के लिए इंसानों को मार सकते हैं। इसलिए वैम्पायर को कब्र में दफन करते वक्त गर्दन के चारों तरफ दरांती फंसा दी जाती थी।

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ऐसी परंपरा वर्षों तक चलती रही। प्रोफेसर पोलिंस्की ने कहा कि दरांतियां हाथ-पैर तक में फंसा दी जाती थीं। साथ ही शवों को उल्टा दफनाया जाता था। ताकि वैम्पायर जागें, तो उन्हें मिट्टी ही खाने को मिले। उन्हें कब्र में ही जला दिया जाता था।

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वैम्पायर को कब्र में पत्थरों से दबाकर मार दिया जाता था। पोलैंड में ऐसी कई कब्रें मिली हैं। वैंपायरों को रोकने के लिए कंकाल तक में कीलें ठोंक दी जाती थीं, ताकि वो उठ न सकें।

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About the Author

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Amitabh Budholiya
बीएससी (बायोलॉजी), पोस्ट ग्रेजुएशन हिंदी साहित्य, बीजेएमसी (जर्नलिज्म)। करीब 25 साल का लेखन और पत्रकारिता में अनुभव। एशियानेट हिंदी में जून, 2019 से कार्यरत। दैनिक भास्कर और उसके पहले दैनिक जागरण और अन्य अखबारों में सेवाएं। 5 किताबें प्रकाशित की हैं
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