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कार सेवकों पर गोली चलवाने से उपद्रव पर कोई एक्शन नहीं लेने तक...ये हैं अयोध्या विवाद के 10 बड़े किरदार
| Published : Nov 09 2019, 10:35 AM IST / Updated: Nov 09 2019, 12:20 PM IST
कार सेवकों पर गोली चलवाने से उपद्रव पर कोई एक्शन नहीं लेने तक...ये हैं अयोध्या विवाद के 10 बड़े किरदार
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1947 से 2019 तक : मूर्तियां रखने से लेकर फैसले तक: जब मस्जिद में मिली थी भगवान राम की मूर्तियां: जवाहर लाल नेहरू: 23 दिसंबर 1949: मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां मिलने पर उन्होंने दिया था पहला आदेश, 23 दिसंबर 1949 में जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में मिली तो देश में तनाव फैल गया। नेहरू ने तत्कालीन सीएम जीबी पन्त से कड़े कदम उठाने को कहा। सरकार ने मूर्तियों को हटाने का आदेश दिया, लेकिन तत्कालीन डीएम ने दंगे भड़कने के डर से आदेश पूरा करने से मना कर दिया। नेहरू अयोध्या आना चाहते थे, डीएम ने सुरक्षा का हवाला देते हुए रोक दिया।
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5 दिसंबर 1950: पहले शख्स जो विवादित स्थल पर पूजा करने के लिए कोर्ट पहुंचे: 5 दिसंबर 1950 को रामचंद्र परमहंस ने विवादित स्थल पर पूजा करने के लिए जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया। वे राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष भी बने। परमहंस 1934 से ही राममंदिर आन्दोलन से जुड़ गए थे। 31 जुलाई 2003 को अयोध्या में इन्होने अंतिम सांस ली। पीएम रहते हुए अटल बिहारी इनके अंतिम संस्कार में पहुंचे।
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18 दिसंबर 1961: पहले शख्स जो 8 मुसलमानों के साथ मालिकाना हक के लिए पहुंचे कोर्ट: 22/23 जनवरी 1949 को मूर्तियां रखे जाने की घटना अयोध्या कोतवाली में दर्ज हुई। तब गवाह के रूप में अंसारी सबसे पहले सामने आए थे। फिर 18 दिसंबर 1961 को दूसरा केस हाशिम अंसारी, हाजी फेंकू सहित 9 मुसलमानों की ओर से मालिकाना हक के लिए फैजाबाद के सिविल कोर्ट में लगाया गया। अंसारी की मौत के बाद उनके बेटे इकबाल मामले में मुख्य पक्षकार हैं।
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1984: राम मंदिर आंदोलन की नींव डालने वाले मुख्य किरदार: 1984 में हुई धर्मसंसद में अशोक सिंघल ने मुख्य भूमिका निभाई थी। यहीं से राम जन्मभूमि आन्दोलन की नींव पड़ी। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के मुख्य किरदारों में सिंघल का नाम भी शामिल है। सीबीआई की चार्जशीट में उन पर आरोप है कि वह कार सेवकों को मंच से भड़का रहे थे। 17 नवंबर, 2015 को सिंघल की मृत्यु हो गई।
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1985: बाबरी मस्जिद परिसर का ताला खोलने की दी थी परमिशन: 1985 में विवादित बाबरी मस्जिद परिसर का ताला खोलने के आदेश दिए। दरअसल, शाहबानो केस के बाद बोफोर्स घोटाले में लगातार नए खुलासे हो रहे थे। विपक्ष उन पर लगातार हमलावर बना हुआ था। इसी साल आम चुनाव होने थे। वह नहीं चाहते थे कि उनकी छवि हिन्दू विरोधी बने। इसी के चलते उन्होंने यह कदम उठाया।
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30 अक्टूबर 1990: मुलायम सिंह के कहने पर कार सेवकों पर चलाई गई थी गोली: 1990 में आंदोलन परवान चढ़ रहा था। अयोध्या में कर्फ्यू लगा था। 30 अक्टूबर, 1990 को कार सेवकों पर गोली चली, जिसमें 5 लोगों की मौत हो गई। इससे कार सेवकों में गुस्सा था। 2 नवंबर, 1990 को कार सेवक हनुमान गढ़ी के पास पहुंचे। तब पुलिस ने गोलियां चलाईं। मुलायम सीएम थे। यही से मुलायम 'मुल्ला मुलायम' कहलाने लगे।
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1990: देशभर में निकली थी रथयात्रा, जिसके बाद ढहाया गया मस्जिद का ढांचा: 1990 में गुजरात के सोमनाथ मंदिर से लालकृष्ण आडवाणी द्वारा शुरू की गई रथयात्रा ने देश भर में राममंदिर आंदोलन को लेकर एक नई दिशा दिखाई। इसका असर 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में दिखाई दिया। जब मस्जिद का ढांचा ढहाया गया, तब सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में लालकृष्ण आडवाणी को बाबरी विध्वंस का मुख्य सूत्रधार माना है।
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उपद्रव बढ़ने पर नहीं लिया था कोई एक्शन: सीबीआई की चार्जशीट में 13 आरोपियों में कल्याण सिंह का नाम भी शामिल है। उन पर आरोप है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद वह अन्य नेताओं के साथ अयोध्या पहुंचे थे और उन्होंने राममंदिर बनाने की शपथ ली थी। उन पर यह भी आरोप है कि जब केंद्रीय बल मिला था तब भी उन्होंने उसका उपयोग नहीं किया। यही नहीं उपद्रव बढ़ने पर उन्होंने गोली चलाने का भी आदेश नहीं दिया।
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रामचंद्र परमहंस की मृत्यु के बाद राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख संत: रामचंद्र दास परमहंस की मृत्यु के बाद नृत्य गोपाल दास को राम जन्मभूमि न्यास का अध्यक्ष बनाया गया। यूं तो इनकी गिनती शांत संतों में होती है, लेकिन मंदिर की सबसे मुखर आवाज भी यही हैं। अभी ये मणिराम छावनी के भी महंत हैं। साथ ही साथ अयोध्या-मथुरा के मंदिरों के न्यास के भी अध्यक्ष हैं। इस समय मंदिर आन्दोलन के प्रमुख संतों में शामिल हैं।
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6 दिसंबर, 1992: बाबरी विध्वंस के समय ये थे देश के पीएम: 6 दिसंबर, 1992 को जब बाबरी का ढांचा गिराया गया तब ये प्रधानमंत्री थे। घटना के वक्त ये पूजा में बैठे थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, घटना के बाद उनके कैबिनेट के सदस्य अर्जुन सिंह ने पंजाब से उनसे फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया। बाद में घटना के लिए नरसिम्हा राव को जिम्मेदार ठहराया गया। तीन पक्षों में जमीन बांटी: 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के तीन जजों ने फैसला सुनाया। जस्टिस एसयू खान, सुधीर अग्रवाल और धर्मवीर शर्मा ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला दिया था। हालांकि दो पक्षों ने यह फैसला मानने से इनकार कर दिया। सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार 40 दिन सुनवाई की : चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कोर्ट के इतिहास में अब तक की दूसरी सबसे लंबी सुनवाई की। लगातार 40 दिन तक सभी पक्षों को सुना गया।