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कभी शाही जीप से मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर में मार दी थी टक्कर, 35 साल बाद इस राजा को मिला न्याय
मथुरा(Uttar Pradesh). राजस्थान के भरतपुर स्टेट के राजा मान सिंह का 35 साल पहले पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया था। कोर्ट में चल रहे इस मामले में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने फर्जी बताया है। कोर्ट ने राजा मान सिंह और उनके दो सहयोगियों के फर्जी एनकाउंटर मामले में 11 पुलिसकर्मियों को दोषी माना है। जिला जज साधना रानी ठाकुर ने फैसला सुनाते हुए 11 पुलिसकर्मियों को आईपीसी की धारा 148 ,149 ,302 के तहत दोषी पाया। तत्कालीन सीओ कान सिंह भाटी व एसओ वीरेंद्र सिंह सहित 11 पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया गया। वहीं अदालत ने 3 पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया।
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घटना 21 फरवरी 1985 की है। उस वक्त राजस्थान में चुनावी माहौल था। डीग विधानसभा क्षेत्र के निर्दलीय उम्मीदवार राजा मान सिंह अपनी जोगा जीप लेकर चुनाव प्रचार के लिए लाल कुंडा के चुनाव कार्यालय से डीग थाने के सामने से निकले थे। पुलिस ने उन्हें घेर लिया था। ताबड़तोड़ फायरिंग होने लगी थी। घटना में राजा मान सिंह, उनके साथ सुम्मेर सिंह और हरी सिंह की मौत हो गई थी। उनके शव जोगा जीप में मिले थे।
घटना के ठीक एक दिन पहले राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर की चुनावी जनसभा कराने के लिए कांग्रेसियों ने उनके राज्य में लगे कुछ शाही झंडों को उखाड़ दिया था, इसी से नाराज होकर राजा मान सिंह ने अपनी जोंगे जीप से मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर व चुनावी सभा के मंच को टक्कर मारी थी। उसके संबंध में दो अलग-अलग मुकदमे 307 में राजा मानसिंह उनके साथियों के विरुद्ध दर्ज हुए थे। जिसके बाद पुलिस ने अगले दिन ही राजा मान सिंह और उनके दो साथियों को एनकाउंटर में मार दिया था।
इस वारदात के बाद डीग थाना के एसएचओ वीरेंद्र सिंह ने राजा मान सिंह के दामाद विजय सिंह सिरोही के खिलाफ 21 फरवरी को ही धारा 307 की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। वादी पक्ष के अधिवक्ता नारायन सिंह विप्लवी ने बताया कि राजा मान सिंह के दामाद और उनके साथी बाबूलाल को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसी रात उनकी जमानत भी हुई और 22 फरवरी को राजा मान सिंह का दाह संस्कार महल के अंदर ही किया गया।
23 फरवरी को दामाद विजय सिंह सिरोही ने डीग थाने में राजा मान सिंह और दो अन्य की हत्या का मामला दर्ज कराया। इसमें सीओ कान सिंह भाटी, एसएचओ वीरेंद्र सिंह समेत कई पुलिसकर्मी आरोपी थे। बचाव पक्ष के अधिवक्ता नंद किशोर उपमन्यु ने बताया कि तीन-चार दिन में यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया। सीबीआई ने हत्या से पूर्व दर्ज हुए मुकदमों में फाइनल रिपोर्ट लगा दी।
हत्या का मामला जयपुर की सीबीआई की विशेष अदालत में चला। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह मुकदमा वर्ष 1990 में मथुरा न्यायालय स्थानांतरित हो गया। यह मामला 35 सालों तक विचाराधीन रहने के बाद इसमें फैसला सुनाया गया, जिसमें 11 पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया गया। वहीं अदालत ने 3 पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया।