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जानिए, क्यों विश्व में प्रसिद्ध है काशी की देव दीपावली,आज महादेव की नगरी में उतरे 33 करोड़ देव
वाराणसी ( Uttar Pradesh) । धर्म की नगरी काशी में आज देव दीपावली है, जो हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन मनाई जाती है। इस बार इस पर्व को मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आए थे जो पहला दीपक जलाएं। बता दें कि काशी में देव दीपावली की परंपरा शुरू होने के पीछे कई पौराणिक कथाएं और जनश्रुतियां हैं। जिनके बारे में आज हम आपको बता रहे हैं।
| Published : Nov 30 2020, 12:26 PM IST / Updated: Nov 30 2020, 07:25 PM IST
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मान्यता कि भगवान विष्णु चार महीने की निंद्रा के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जागते हैं और सृष्टि का कार्यभार वापस अपने हाथ में लेते हैं। इसीलिए इसे देव उठनी एकादशी भी कहते हैं।
भगवान विष्णु का वास पंचनद तीर्थ यानी पंचगंगा घाट पर रहता है। भगवान विष्णु के जागने की खुशी में देवता लोग स्वर्ग से पंचगंगा घाट पर आकर कार्तिक पूर्णिमा को दीपदान करते हैं।
कहा जाता है कि इस मौके पर सभी तीर्थों के साथ तीर्थराज प्रयाग और सभी देवों के साथ महादेव भी मौजूद रहते हैं। कार्तिक पूर्णिमा की शाम को भगवान विष्णु का पहला अवतार यानी मत्स्यावतार भी हुआ था।
मान्यता है कि देव दीपावली के दिन सभी देवता बनारस के घाटों पर आते हैं। क्योंकि, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर के वध के बाद सभी देवी-देवताओं ने मिलकर खुशी मनाई थी।
काशी में देव दीपावली का अद्भुत संयोग माना जाता है। इस दिन दीपदान करने का पुण्य फलदायी और विशेष महत्व वाला होता है।
मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ ने खुद धरती पर आकर तीन लोक से न्यारी काशी में देवताओं के साथ गंगा घाट पर दीपावली मनाई थी। इसलिए इस देव दीपावली का धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है।