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कोरोना फैला दोगे, कहकर अपनों ने घर में नहीं दी इंट्री, गंगा की धारा में नाव पर ही क्वारंटीन हो गए दो दोस्त
वाराणसी(Uttar Pradesh). रोजी-रोटी के लिए अपने गांव को छोड़कर तकरीबन 5 साल पहले परदेस गए दो लोगों को अब गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा। लॉकडाउन में घर लौटे दो लोगों की इंट्री उन्ही के गांव में बैन है। ग्रामीणों ने कोरोना संक्रमण की आशंका में उनके गांव में घुसने पर बैन लगा दिया है। अब दोनों युवक गंगा की गोद में नाव पर क्वारंटीन हैं। खाने के लिए दिन भर गंगा में मछलियां पकड़ते हैं उसी को खाकर किसी तरह उनका समय बीत रहा है।
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रोजी-रोटी के लिए अपने गांव को छोड़कर तकरीबन 5 साल पहले परदेस गए दो लोगों को अब गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा। लॉकडाउन में घर लौटे दो लोगों की इंट्री उन्ही के गांव में बैन है
लॉकडाउन में काम बंद हुआ हुआ तो इनकी फैक्ट्री भी बंद हो गई।अब इनके सामने खाने की भी समस्या खड़ी हो गई। परेशान होकर दोनों दोस्त घर वापस आने के लिए निकला पड़े। श्रमिक एक्सप्रेस से वह गाजीपुर आए वहां से स्वास्थ्य परीक्षण होने के बाद इनकी रिपोर्ट निगेटिव आई। जिसके बाद दोनों को घर जाने को बोल दिया गया।
दोनों गाजीपुर से बस द्वारा वाराणसी पहुंचे और वहां से अपने गांव कैथी आ गए। लेकिन जैसे ही इनके आने की सूचना ग्रामीणों को मिली वह गांव के प्रवेश मार्ग पर ही इकट्ठा हो गए। ग्रामीणों ने इन्हें गांव में घुसने से रोक दिया।
दोनों के घर वालों ने भी ग्रामीणों का सपोर्ट किया। घर वालों ने भी उन्हें गांव में न घुसने देने का समर्थन किया। ग्रामीणों ने कोरोना संक्रमण की दहशत के चलते दोनों को गांव में घुसने पर पाबंदी लगाई थी।
ग्रामीणों ने उनसे गांव के बाहर किसी स्थान पर 21 दिन क्वारंटाइन रहने को कहा। दोनों ने बताया कि उनका स्वास्थ्य परीक्षण हो चुका है और दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं। लेकिन ग्रामीणों ने उनकी एक न सुनी और गांव में नही घुसने दिया।
अंत में दोनों दोस्त थक-हारकर मां गंगा की शरण में पहुंचे और वहां अपनी एक पैत्रिक नाव पर ही खुद को क्वारंटीन कर किया। लगभग ढाई हफ्ते का वक्त बीत जाने के बावजूद पप्पू और कुलदीप निषाद गंगा की लहरों पर ही अपनी पैतृक नाव पर खुद को क्वारनटीन किए हुए हैं। गांव में जरूरत का सामान लेने गए तो गांव वालों ने रोक दिया। साग-सब्जी नहीं मिल पा रही है तो गंगा में से मछली पकड़कर उसे पकाकर खा रहे हैं।