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मुस्लिम लड़की बनी मसीहा: घर-घर जाकर कोरोना मरीजों की बचा रही जिंदगी, लोग कहते आ गई 'ऑक्सीजन बिटिया'
शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश). कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने देश को हिलाकर रख दिया है। स्वास्थय सेवाएं पूरी तरह से चरमरा चुकी हैं। जहां मरीज और उनके परिजन अस्पताल में खाली बेड और ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इस मुश्किल घड़ी में कई लोग अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की मदद करने के लिए आगे आ रहे हं। यूपी के शाहजहांपुर में एक मुस्लिम लड़की जरूरतमदों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं है। उसने कोरोना काल में इंसानियत की नई मिसाल कायम की है। जिसे आज हर कोई ऑक्सीजन वाली बिटिया या सिलेंडर वाली बिटिया के नाम से पुकार रहा है।

दरअसल, मुश्किल वक्त में कोरोना मरीजों की जान बचाने वाली यह बेटी 26 वर्षीय अर्शी है। जो कि शाहजहांपुर के मदराखेल इलाके की रहने वाली है। इस वक्त यह बेटी अपनी स्कूटी पर ऑक्सीजन सिलेंडर रखकर कोरोना मरीजों के घर पर पहुंचा रही है। इतना ही नहीं वह गैस रिफिल कराने के लिए जो खर्चा आता है उसे वह खुद उठाती है।
बता दें कि रमजान के पहले ही दिन अर्शी के पिता मशहूर कोरोना से संक्रमित हो गए थे। तबीयत इतनी बिगड़ चुकी थी कि डॉक्टरों ने कह दिया था कि तु्म्हारे पापा का ऑक्सीजन लेवल बहुत कम है, ऑक्सीजन की व्यवस्था करो। अर्शी ने ना जाने अफसरों और डॉक्टरों से मिन्नतें की, लेकिन उसे ऑक्सीजन नहीं मिल पाई। अर्शी ने बताया कि वह कई जगह गई लेकिन पापा के लिए ऑक्सीजन नहीं मिल पाई। वह नगर मजिस्ट्रेट के दफ्तर तक पहुंच गई थी।
बाद में उसने एक व्हाट्सएप ग्रुप ऑक्सीजन के लिए मैसेज डाला था जिसपर एक समाजसेवी संस्था ने उसे ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया कराया और उसके पापा ठीक हो पाए। इस तरह उसने दूसरों की मदद से अपने पिता की जान बचा ली।
पिता को सही होने के बाद अर्शी ऑक्सीजन की कमी को बहुत करीब से महसूस किया और इसलिए उसने तय किय कि अब वह ऐसे लोगों को समय पर ऑक्सीजन मुहैया कराएगी। जिनको कहीं से कोई मदद नहीं मिल रही है। अर्शी ने बताया कि इस कठिन दौर में हर दूसरा तीसरा व्यक्ति ऑक्सीजन गैस के लिए परेशान हुआ है अगर किसी ने मदद की है तो उससे प्रेरित होकर दूसरों को भी लोगों की मदद करनी चाहिए।
अर्शी ने बताया कि उसके पास दो सिलेंडर हैं जिनको वह कई बार अपने खर्चे से भरकर जरूरतमंदों को अपनी स्कूटी से सिलेंडर चुकी है। उसने सोशल मीडिया पर भी अपना नंबर शेयर किया हुआ है। दिनभर में उसके पास ऑक्सीजन को लेकर कई लोगों के फोन आते हैं। वह गैस रिफिल कराकर मरीज की सांसे लौटाने के लिए अपनी स्कूटी पर सिलेंडर लेकर निकल पड़ती है।
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