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कचरे में फेंके मास्क-ग्लव्स से ईंटें बना रहा है ये शख्स, मजबूती में भट्टी वाले को भी मात देती है ईंट
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गुजरात के वलसाड में पैदा हुए बिनिश हमेशा से कुछ ना कुछ नया करना चाहते थे। बचपन से उनका क्रिएटिविटी में काफी इंट्रेस्ट रहा है। मात्र 10 साल की उम्र से बिनिश घर पर कुछ ना कुछ एक्सपेरिमेंट करते रहते थे। उन्होंने बचपन में अपने किचन में भाप को पानी में बदलने वाली मशीन बनाई थी।
आज बिनिश को रिसाइकिल मैन ऑफ़ इंडिया कहते हैं। उन्होंने सबसे पहले वेस्ट पेपर से P ब्रिक्स बनाई। अब जब देश में कोरोना के कारण सिंगल यूज मास्क, ग्लव्स और पीपीई किट फेंके जा रहे हैं, तो उन्होंने इनसे भी ईंटें बनानी शुरू कर दी।
रिसाइकिल चीजों से ईंटें बनाने का ख्याल बिनिश को उनके स्कूल लाइफ में ही आया था। वो सस्ते दामों में ईंटें बनाकर वैसे लोगों की मदद करना चाहते थे जो अपना घर बनाना चाहते थे। 16 साल की उम्र में उन्होंने इस तरफ काम करना शुरू किया।
बिनिश के पास इसके लिए फंड नहीं था। फिर भी उन्होंने वेस्ट पेपर, चबाए हुए च्युइंग गम कुछ ऑर्गनिक बाइंडर्स की मदद से अपनी फैक्ट्री सेट अप की। ये सेटअप उनके खुद के घर में ही लगा। बिनिश दिन में कॉलेज जाते और फिर शाम को घर पर ईंटें बनाते।
इन ईंटों को उन्होंने एक इनोवेशन मेला में प्रदर्शित किया। तब तक उन्होंने 3 हजार ईंटें बनाई थी। इनकी मजबूती देख कई लोगों ने और एनजीओ ने उन्हें इसका आर्डर दिया। इसके बाद बिनिश ने पलट कर नहीं देखा।
अभी तक बिनिश के बनाए ईंटों से 11 हजार टॉयलेट्स, कई घर और कई बिल्डिंग्स का निर्माण किया जा चुका है। ना सिर्फ गुजरात बल्कि महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में भी इसके जरिये कई बिल्डिंग्स बने हैं।
ऐसे में जब कोरोना संकट आया और देश में कई मीट्रिक टन बायोमेडिकल वेस्ट पैदा होने लगा, तो बिनिश ने इसके साथ कुछ क्रिएटिव करने का फैसला किया। उन्होंने अब P ब्लॉक 2.0 ईंटें बनानी शुरू की है। इसमें 52 प्रतिशत पीपीई मटेरियल, 45 प्रतिशत पेपर वेस्ट और 3 प्रतिशत गोंद का इस्तेमाल होता है।
ये ईंटें आग में भी खराब नहीं होती। साथ ही इनकी कीमत प्रति ईंट 2 रूपये 80 पैसे पड़ती है। ये ज्यादा भारी भी नहीं होती। सबसे बड़ी बात कि इन ईंटों की वजह से मेडिकल वेस्ट कम हो रहे हैं। जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते, वो अब घर बनाने में इस्तेमाल हो रहे हैं।
बिनिश के साथ अब उनकी टीम इन ईंटों के निर्माण में लगी है। दुनियाभर में उनकी इस क्रिएटिविटी की काफी तारीफ हो रही है। ईंटें बनाने से पहले इक्कठा किये गए मेडिकल वेस्ट को तीन दिन के लिए छोड़ दिया जाता है। उसके बाद उनसे ईंट बनाई जाती है।