राहत की बात: 'वही दुनिया वही सांसें वही हम, वही सब कुछ पुराना चल रहा है'
राहत इंदौरी देश के उन मशहूर शायरों में शुमार थे, जो सरल-सहज भाषा में ग़ज़ल लिखते थे। बता दें कि राहत इंदौरी का 11 अगस्त, 2020 को कार्डियक अरेस्ट के बाद इंतकाल हो गया था। 1 जनवरी, 1950 को जन्मे राहत इंदौरी का असली नाम राहत कुरैशी था। जैसा कि आमतौर पर शायर अपने शहर का नाम साथ में जोड़ लेते हैं, इसलिए लोग उन्हें राहत इंदौरी कहकर पुकारने लगे। राहत इंदौरी ने हिंदी फिल्मों के लिए भी खूब गाने लिखे। इनमें मुन्नाभाई एमबीबीएस, खुद्दार, नाराज, मर्डर, मिशन कश्मीर, करीब, बेगम जान, घातक, इश्क, सर, आशियां, मैं तेरा आशिक जैसी फिल्में शामिल हैं। आइए जानते हैं राहत इंदौरी के बारे में कुछ बातें और पढ़ते हैं उनके कुछ शेर...

बता दें कि 11 अगस्त, 2020 को कोरोना के चलते उनका इंदौर में इंतकाल हो गया था। राहत इंदौरी देश के उन गिने-चुने शायरों में शुमार थे, जिनकी शायरी ने हिंदुस्तान को दुनियाभर में पहचान दिलाई।
राहत इंदौरी 70 साल की उम्र में चल बसे थे। लेकिन वे आखिरी समय तक सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे।
राहत इंदौरी के पिता के नाम रफतुल्ला कुरैशी था। वे एक कपड़ा मिल में मजदूर थे। जबकि मां मकबूल उन निसा बेगम गृहणी थीं।
राहत इंदौरी की स्कूलिंग और ग्रेजुएशन इंदौर में हुआ। हायर एजुकेशन के लिए वे भोपाल में रहे।
राहत इंदौरी ने भोज यूनिवर्सिटी से उर्दू साहित्य में पीएचडी की थी। उनकी शायरी के चर्चे देश से लेकर विदेश तक थे।
राहत इंदौरी करीब 45 साल तक मुशायरे और कवि सम्मेलन में अपनी शायरी से लोगों को दीवाना बनाते रहे।
राहत इंदौरी की शायरी की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वे पुराने लोगों के अलावा नई पीढ़ी मे भी लोकप्रिय रहे।
कोरोनाकाल में उनकी एक कविता 'बुलाती है मगर जाने का नहीं' काफी प्रसिद्ध हुई थी। यह सोशल डिस्टेंसिंग के प्रचार-प्रसार में सहायक साबित हुई।
राहत इंदौरी एक अच्छे पेंटर भी थे। उनके बोलने का अंदाज श्रोताओं को काफी पसंद आता था।
आखिरी बार वे कपिल शर्मा के शो में नजर में आए थे। कोरोना ने कई हस्तियों को छीना, राहत उनमें एक हैं।
राहत इंदौरी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थे। वे लोगों में सहजता से घुलमिल जाते थे। इंतकाल से 9 घंटे पहले राहत इंदौरी ने ट्वीट करके लिखा था कि वे जल्द कोरोना को हरा देंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।