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अपने ही रोते नवजात बेटे का घोंट दिया था गला ताकि पकड़ ना ले पुलिस, इंसान के रूप में दरिंदा था वीरप्पन
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18 जनवरी 1952 को पैदा हुए वीरप्पन का पूरा नाम कूज मुनिस्वामी वीरप्पन था। वीरप्पन के बारे में कहा जाता है कि उसने 17 साल की उम्र में पहली बार एक हाथी का शिकार किया था। वीरप्पन के बारे में एक और चीज कुख्यात थी, वो ये कि हाथियों सहित अपने सभी शिकार के सिर के ठीक बीच में गोली मारना उसे काफी पसंद था।
डाकू वीरप्पन को 20 साल तक पुलिस ढूंढती रही। इस बीच उसे वन अधिकारी श्रीनिवास ने अरेस्ट भी किया था। लेकिन अपनी चालाकी से उसने पुलिस को चकमा दिया और भाग निकला। इसके बाद उसने योजना बनाकर श्रीनिवास की हत्या की। कहा जाता है कि श्रीनिवास, जिन्होंने वीरप्पन को अरेस्ट किया था, उन्हें मारकर इस डाकू ने सिर काटकर उससे फुटबॉल खेला था।
अपनी क्रूरता के लिए बदनाम वीरप्पन के बारे में जो सबसे कुख्यात कहानी है, वो है उसका अपने बेटे को मारना। कहा जाता है कि 1993 में वीरप्पन अपने सौ साथियों के साथ जंगल में छिपा था, जहां पुलिस उसकी तलाश कर रही थी। उस समय वीरप्पन के साथ उसका नवजात बेटा भी था। जंगल में उसके रोने की आवाज से पुलिस उसे पकड़ लेती। इस वजह से वीरप्पन ने अपने ही बेटे का गला दबाकर हत्या कर दी।
वीरप्पन का शिकार ज्यादातर पुलिस वाले होते थे। कहा जाता है कि वीरप्पन को ऐसा लगता था कि उसके परिवार वालों को जिसमें उसकी बहन और भाई शामिल है, पुलिस ने मारा था। इस कारण वो पुलिसवालों की हत्या कर उनसे बदला ले रहा था।
दशकों तक वीरप्पन ने अवैध तस्करी के जरिये करोड़ों कमाए। वो हाथियों का शिकार कर उसकी खाल और दांत बेचता था। साथ ही चन्दन की लकड़ियों की तस्करी कर उससे मिले पैसों से हथियार खरीदता था।
वीरप्पन को पकड़ने लिए देश की सरकार ने 734 करोड़ रुपए खर्च किये थे। टास्क बनाई जाती थी। उन्हें स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती थी। लेकिन जब अरेस्ट का मौका आता था, वीरप्पन सबको चकमा देकर निकल जाता था।
वीरप्पन काफी कम समय में अपने गिरोह का हेड हो गया था। इसकी टीम में 40 ऐसे लोग थे, जो उसके लिए जान देने को तैयार थे। वो वीरप्पन के एक इशारे पर किसी की भी जान ले सकते थे।
वीरप्पन को फिल्मों का काफी शौक था। इस खूंखार डाकू के बारे में कहा जाता है कि इसने फिल्म द गॉडफादर को सौ बार से ज्यादा देखा था। इसके अलावा उसे कर्नाटक संगीत भी काफी पसंद था।
वीरप्पन को अपनी मूंछें काफी पसंद थी। उसकी मूंछें उसकी पहचान बन गई थी। कहा जाता है कि उसकी आंख खराब थी। इसी का इलाज करवाने के लिए जाते हुए उसे पुलिस टास्क ने घेरकर अक्टूबर 2004 में 20 मिनट के इनकाउंटर में मार डाला था।