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- और इस तरह 'गृहयुद्ध' के मुहाने पर पहुंच गई सोने की लंका,जानिए श्रीलंका संकट के सिलसिलेवार 16 घटनाक्रम
और इस तरह 'गृहयुद्ध' के मुहाने पर पहुंच गई सोने की लंका,जानिए श्रीलंका संकट के सिलसिलेवार 16 घटनाक्रम
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31 मार्च-सोशल मीडिया पर कार्यकर्ताओं की रैली में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर उनके घर पर धावा बोला।
चुनाव आयोग ( Election Commission-EC) के अध्यक्ष निमल पुंचिहेवा( Nimal Punchihewa) का कहना है कि एक महीने से अधिक समय से सरकार के इस्तीफे की मांग कर रहे लोगों की हिंसक प्रतिक्रिया संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दलों के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
1 अप्रैल-इससे पहले कि आंदोलन कोई नया रूप लेता गोटाबाया ने इमरजेंसी का ऐलान कर दिया। इससे सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने की व्यापक शक्तियां मिल गईं।
द आइलैंड(The Island) के साथ एक संक्षिप्त साक्षात्कार में अटॉर्नी-एट-लॉ पंचिहेवा(Attorney-at-Law Punchihewa ) ने समस्या के समाधान के लिए राजनीतिक, चुनावी और संवैधानिक सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। पुंचिहेवा ने जोर देकर कहा कि किसी भी परिस्थिति में हिंसा को माफ नहीं किया जा सकता है। 31 मई 1981 को जाफना पुस्तकालय में आग लगाने और जुलाई 1983 के दंगों सहित हिंसा के कृत्यों का उल्लेख करते हुए पुंचिहेवा ने कहा कि संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दलों को अब निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए या परिणामों का सामना करना चाहिए।
2 अप्रैल- श्रीलंकाई सरकार ने 36 घंटे के राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू का ऐलान किया और जगह-जगह सैनिक तैनात कर दिए गए।
3 अप्रैल-श्रीलंका के लगभग सभी मंत्रिमंडल ने देर रात हुई बैठक के बाद इस्तीफे का ऐलान किया। इसके साथ ही राजनीति गर्मा गई।
4 अप्रैल- गोटाबाया और महिंदा ने विपक्ष के साथ एकता प्रशासन(unity administration) के तहत सत्ता शेयर करने की पेशकश की, लेकिन बात नहीं बनी।
5 अप्रैल- गोटाबाया की मुश्किलें इसके बाद और बढ़ गईं, जब वित्त मंत्री अली साबरी ने अपनी नियुक्ति के एक दिन बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया।
9 अप्रैल-गोटाबाया को हटाने की मांग को लेकर देश में सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन के तहत राष्ट्रपति कार्यालय पर हजारों की संख्या में मार्च हुआ।
10 अप्रैल- श्रीलंका के डॉक्टरों ने कहा कि देश में जीवन रक्षक दवाओं की कमी है। यानी संकट कोरोना महामारी से भी बड़ा हो सकता है।
12 अप्रैल-श्रीलंका ने अपने 51 बिलियन डॉलर के विदेशी ऋण को न चुका पाने के चलते दिवालिया होने की बात कही।
18 अप्रैल- राष्ट्रपति ने अपने दो भाइयों और एक भतीजे को मंत्रिमंडल से हटाया, लेकिन अपने सबसे बड़े भाई महिंदा को प्रधान मंत्री के रूप में रखकर एक नई सरकार के गठन का ऐलान किया।
19 अप्रैल- पुलिस ने एक प्रदर्शनकारी को मार डाला, कई हफ्तों तक सरकार विरोधी प्रदर्शनों में यह पहली मौत थी।
28 अप्रैल-श्रीलंका में आम हड़ताल के चलते सबकुछ ठप हो गया। जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे। पहले प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे, बाद में हिंसक हो उठे।
4 मई-श्रीलंकाई सरकार ने बताया कि उसका उपयोग करने योग्य विदेशी भंडार घटकर 50 मिलियन डॉलर से भी कम हो गया है। यह एक बड़ी चिंता वाली बात थी।
6 मई-हजारों दुकानें, स्कूल और बिजनेस बंद कर दिए गए। पब्लिक प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों ने काम बंद कर दिया।
8 मई- श्रीलंकाई सरकार ने एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक से 100 मिलियन डॉलर की फंडिंग के लिए बातचीत की।
9 मई- विपक्ष के साथ मिलकर एक एकता सरकार बनाने के लिए पीएम महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दिया। इस बीच कोलंबो में झड़पों के बाद देशव्यापी कर्फ्यू लगाया गया। इसमें सत्तारूढ़ दल के सांसद सहित 5 लोगों की मौत हो गई।