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पाकिस्तान-चीन ने भारत को रेल प्रोजेक्ट से किया बाहर तो सपोर्ट में आया ईरान, की तरफदारी भी

नई दिल्ली. चाबहार के सामरिक रूप से अहम रेल प्रोजेक्ट से पाकिस्तान-चीन ने भारत को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। ऐसे में बुधवार को ईरान ने बेल्ट ऐंड रोड और चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का समर्थन किया है। ईरान में पाकिस्तान के राजदूत सैय्यद मोहम्मद अली हुसैन ने कहा कि बीआरआई और सीपीआई चीन, ईरान और पाकिस्तान समेत पूरे क्षेत्र के लिए फायदेमंद है। 

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Asianet News Hindi
Published : Jul 16 2020, 12:04 PM IST
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चाबहार बंदरगाह को भारत में पाकिस्तान-चीन आर्थिक कॉरिडोर के तहत बनाए गए ग्वादर बंदरगाह का जवाब माना जाता रहा है। हालांकि, अब ईरान चीन के साथ 400 अरब डॉलर की डील पर आगे बढ़ रहा है और उसकी परियोजनाओं को खुलकर समर्थन दे रहा है। ईरान के राजदूत ने भारत का नाम लिए बगैर निशाना साधा। ईरानी राजदूत ने चाबहार के रेल प्रोजेक्ट पर भारत के बिना ही काम शुरू करने के फैसले का बचाव किया।

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ईरानी राजदूत ने कहा कि जब कुछ देशों की सरकारें ईरान के साथ अपने संबंधों को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं और सामान्य बातचीत के लिए भी उन्हें दूसरों की इजाजत की जरूरत पड़ रही हो तो वे लंबे समय की साझेदारी पर कैसे काम कर पाएंगे? हुसैनी ने बीआरआई और सीपीईसी की जमकर तारीफ की। साथ ही इसे ईरान की विदेश नीति में बदलाव का संकेत भी माना जा रहा है।

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ईरानी राजदूत ने कहा कि निश्चित तौर पर, बेल्ट ऐंड रोड परियोजना और चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर क्षेत्रीय विकास के लिए उपयुक्त मंच है। विकास का ये मॉडल केवल उनके लिए ही नहीं बल्कि क्षेत्र के दूसरे देशों के बीच सहयोग का भी एक मॉडल है। रिपोर्ट्स की मानें तो कहा जाता है कि ईरान ने भारत की तरफ से फंडिंग में देरी का हवाला देते हुए चाबहार के रेल प्रोजेक्ट पर अकेले ही काम शुरू कर दिया है। हालांकि, ईरान के कुछ अधिकारियों ने कहा है कि अगर भारत बाद में शामिल होना चाहे तो उसके लिए दरवाजे बंद नहीं हुए हैं।

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जहां, एक तरफ ईरान ने भारत को इस परियोजना से बाहर कर दिया है, वहीं चीन के साथ उसने 25 सालों के लिए 400 अरब डॉलर की रणनीतिक साझेदारी की है। ईरानी राजदूत ने कहा कि चीन-ईरान के सहयोग को लेकर तमाम तरह की अफवाहें फैलाई जा रही हैं। जैसे तमाम पश्चिमी देशों के अधिकारी और मीडिया सीपीईसी को सीक्रेट डील बनाने पर तुली हुई थी। ईरान-चीन के बीच की डील सार्वजनिक मुद्दा है और चीनी राष्ट्रपति के 2016 के ईरान दौरे में साझा बयान में भी इसका जिक्र किया गया था।

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ईरानी राजदूत ने कहा था कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान को अपने संवैधानिक सिद्धांतों के तहत पूर्व और पश्चिम के देशों के साथ लंबी अवधि और समावेशी समझौते करने में कोई परेशानी नहीं है। ईरान का हालिया रुख मध्य-पूर्व क्षेत्र में शक्ति संतुलन के समीकरण बदलने की आशंका भी हो सकती है, इस क्षेत्र में अमेरिका का वर्चस्व रहा है, लेकिन अब चीन भी यहां अपनी मौजदूगी दर्ज करा रहा है।
 

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चाबहार के रेल प्रोजेक्ट से बाहर होने और चीन की ईरान के साथ हुई मेगाडील के बाद चाबहार और ग्वादर बंदरगाह चुनौती के बजाय एक-दूसरे की पूरक योजनाएं भी बन सकती हैं। पाकिस्तान और ईरान इसे पहले भी सिस्टर पोर्ट्स कहते रहे हैं। दोनों बंदरगाहों के बीच की दूरी 100 किमी से भी कम है। ईरानी राजदूत ने कहा कि ईरान का चीन के साथ सहयोग सामान्य बात है। चीन ने ईरान के साथ संबंधों में स्वतंत्र होकर फैसला लिया है। 

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चीन ने ईरान के साथ संबंध मजबूत करने के लिए किसी तीसरे देश की सलाह पर निर्भर नहीं है। ईरान का इशारा अमेरिका और भारत की तरफ था। अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु समझौते से बाहर होने के बाद उस पर कई आर्थिक प्रतिबंध थोप दिए थे। इसके बाद, भारत को भी ईरान से अपने तेल आयात में कटौती करनी पड़ी। हालांकि, अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह को प्रतिबंधों से छूट दी हुई थी, लेकिन प्रतिबंधों के डर से कई कंपनियां परियोजना के लिए उत्सुकता नहीं दिखाई और प्रोजेक्ट में देरी होती गई।

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