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ठीक होने के बाद फिर मिले कोरोना के लक्षण तो डरने की जरूरत नहीं, WHO बोला- ये फेफड़े की मरी कोशिकाएं हैं
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दोबारा पॉजिटिव आना रिकवरी फेज
डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता ने न्यूज एजेंसी को बताया कि हमने इस बात का पता लगाया है कि कुछ मरीज क्लीनिकली ठीक होने के बाद भी टेस्ट में पॉजिटिव आए हैं। ताजा आंकड़ों और जानकारियों के आधार पर हम कह सकते हैं कि इसकी वजह री-इंफेक्शन नहीं बल्कि मरीजों के फेफड़ों से बाहर निकल रही वे मरी हुई कोशिकाएं हैं।
WHO के प्रवक्ता ने कहा ये वे मरी हुई कोशिकाएं हैं जो संक्रमण का शिकार हो गई थीं। हमारे हिसाब से ये मरीज की रिकवरी फेज है जिसमें शरीर खुद ही अपनी सफाई शुरू कर देता है और इसे संक्रमण कहना सही नहीं होगा।
डेड सेल्स फेफड़ों के टुकड़े हैं
विश्व स्वास्थ्य संगठन के हेल्थ इमर्जेंसी प्रोग्राम का हिस्सा और संक्रामक रोग महामारी विज्ञानी मारिया वान केहोव “डेड सेल्स (मृत कोशिकाओं)” के मामले का समझाते हुए कहती हैं कि, जैसे ही फेफड़े खुद को ठीक करने लगते हैं, तो उनका हिस्सा रहीं डेड सेल्स बाहर आने लगती हैं।
वास्तव में ये फेफड़े के ही सूक्ष्म अंश होते हैं जो नाक या मुंह के रास्ते बाहर निकलते हैं। ये डेड सेल्स संक्रामक वायरस नहीं है, और न ही ये संक्रमण का री-एक्टिवेशन है। वास्तव में यह स्थिति तो उपचार प्रक्रिया का हिस्सा एक है। लेकिन क्या इसके कारण मरीज को इम्यूनिटी मिल गई? इस सवाल का जवाब अभी हमारे पास नहीं है।
एक हफ्ते बाद बनने लगता है एंटीबॉडीज
रिसर्च में सामने आया है कि नए कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों में एक या एक सप्ताह के बाद एंटीबॉडीज बनना शुरू हो जाती है और इसके बाद संक्रमण के लक्षण कम होने लगते हैं।
अभी भी स्पष्ट नहीं इम्यूनिटी कितनी
विशेषज्ञों का कहना है कि यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि शरीर वायरस के नए हमलों को झेलने के लिए पर्याप्त मात्रा में इम्यूनिटी पा लेता है। इस बारे में अभी कम समझ है कि एक बार मिली इम्यूनिटी कितने दिन टिकती है।
हर वायरस के लिए इम्यूनिटी अलग
डब्लूएचओ के अनुसार, हम ठीक हुए मरीजों से एक व्यवस्थित तरीके से सैंपलिंग कर रहे हैं और रिसर्च के बाद ही यह समझ आएगा कि वे नए वायरस को कब तक दूर रख पाएंगे। हमें यह भी समझने की जरूरत है कि क्या उनका टेस्ट पॉजिटिव होने का मतलब यह है कि वे दूसरों को अपनी तरह संक्रमित कर सकते हैं।
पुरानी बीमारियों से सबक
खसरा से लेकर सार्स तक अलग-अलग वायरस के लिए लोगों की इम्यूनिटी अलग होती है। ये कुछ महीनों से लेकर ताउम्र भी हो सकती है। ऐसे में अब पूरा फोकस इम्यूनिटी है क्योंकि पुरानी बीमारियों से हमने ऐसा ही सबक सीखा है।