सार

डायबिटीज की समस्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। अब कम उम्र के लोग भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। एक बार हो जाने पर इस बीमारी का कोई इलाज भी नहीं है। परहेज और दवाओं से इसे नियंत्रण में रखा जाता है। 

हेल्थ डेस्क। डायबिटीज में इंसुलिन का बनना कम हो जाता है या फिर इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। जबकि टाइप 2 डायबिटीज से प्रभावित लोगों का ब्लड शुगर का स्‍तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, जिसको नियंत्रण करना बहुत मुश्किल होता है। टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज एक ही जैसा नहीं होता है। इन दोनों में बहुत अंतर होता है। 

टाइप 1 डायबिटीज
इस प्रकार के डायबिटीज में पैन्क्रियाज की बीटा कोशिकाएं पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं और इस तरह इंसु‍लिन का बनना संभव नहीं होता है। यह जेनेटिक, ऑटो-इम्‍यून एवं कुछ वायरल संक्रमण के कारण होता है। इसके कारण बचपन में ही बीटा कोशिकाएं पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं। यह बीमारी आम तौर पर 12 से 25 साल से कम उम्र में देखने को मिलती है। स्‍वीडन और फिनलैंड में टाइप 1 डायबिटीज का प्रभाव अधिक है। स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के अनुसार, भारत में एक प्रतिशत से दो प्रतिशत मामलों में ही टाइप 1 डा‍यबिटीज की समस्‍या होती है।

टाइप 2 डायबिटीज
टाइप 2 डायबिटीज से ग्रस्‍त लोगों का ब्लड शुगर का स्‍तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। इसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल होता है। इस स्थिति में  व्यक्ति को अधिक प्यास लगती है। बार-बार पेशाब और लगातार भूख लगने जैसी समस्‍याएं भी होती हैं। यह किसी को भी हो सकता है, लेकिन इसे बच्‍चों में अधिक देखा जाता है। टाइप 2 डायबिटीज में शरीर इंसुलिन का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाता है।

टाइप 1 मधुमेह किसी को भी बचपन में किसी भी समय हो सकता है। यहां तक कि यह छोटे बच्चे को भी हो सकता है। लेकिन टाइप 1 डायबिटीज आमतौर पर 6 से 18 साल से कम उम्र में ही देखने को मिलती है। यानी यह ऐसी बीमारी है जो बच्‍चों में होती है। हालांकि, इस तरह के डायबिटीज से पीड़ित लोगों की संख्‍या बहुत कम है। 

टाइप 2 डायबिटीज किसे होती है
आजकल एक्सरसाइज की कमी और फास्ट फूड के अधिक सेवन के कारण बच्चों में भी टाइप 2 डायबिटीज होने लगी है। 15 साल के नीचे के लोग, खासकर 12 या 13 साल के बच्चों में यह दिखाई दे रही है। पुरुषों के मुकाबले यह महिलाओं में अधिक हो रही है। यह बीमारी उन लोगों को अधिक होती है, जिनका वजन अधिक होता है। आम तौर पर  32 से ज्यादा बीएमआई के लोगों में यह अधिक होती है। जेनेटिक कारणों से भी यह बीमारी हो सकती है।

टाइप 1 डायबिटीज में शुगर की मात्रा बढ़ने से मरीज को बार-बार पेशाब आता है। शरीर से अधिक तरल पदार्थ निकलने के कारण रोगी को को बहुत प्यास लगती है। इसके कारण शरीर में पानी की कमी भी हो जाती है। रोगी कमजोरी महसूस करने लगता है। इसके अलावा उसके दिल की धड़कन भी बहुत बढ़ जाती है।

टाइप 2 डायबिटीज के लक्षण
इसके कारण शरीर में ब्‍लड शुगर का स्‍तर बढ़ने से थकान, कम दिखना और सिर दर्द जैसी समस्‍या होती है। शरीर से तरल पदार्थ अधिक मात्रा में निकलता है। इसकी वजह से रोगी को अधिक प्‍यास लगती है। कोई चोट या घाव लगने पर वह जल्‍दी ठीक नहीं होता है। डायबिटीज के लगातार अधिक बने रहने का प्रभाव आंखों की रोशनी पर पड़ता है। इसके कारण डायबिटिक रेटिनोपैथी नाम की बीमारी हो जाती है, जिससे आंखों की रोशनी में कमी हो जाती है।