सार

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कई यूरोपीय लोगों का भी बड़ा योगदान है। उन्हीं में से एक थे बेंजामिन हार्निमैन (Benjamin Guy Horniman) जिन्होंने लंदन में रहकर भारतीयों के लिए काम किया।

नई दिल्ली. अंग्रेज ही नहीं कई यूरोपीय भी रहे हैं जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी है और कष्ट भी सहे हैं। इन्होंने यह साबित कर दिया कि राष्ट्रवाद किसी देश या धर्म की संकीर्ण सीमाओं में बंधा हुआ नहीं होता। ऐसे ही प्रमुख लोगों में शामिल रहे हैं प्रसिद्ध पत्रकार बेंजामिन गय हॉर्निमन। जिन्होंने भारतीयों भरपूर मदद की थी। 

भारत आए थे हार्निमैन
1873 में ब्रिटेन के ससेक्स में जन्मे हॉर्निमैन कलकत्ता में द स्टेट्समैन अखबार में काम करने के लिए भारत आए थे। प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में उनकी शानदार पारी कांग्रेस नेता फिरोज शाह मेहता द्वारा स्थापित बॉम्बे क्रॉनिकल के संपादक के तौर पर पदभार संभालने के बाद शुरू हुई। हॉर्निमैन ने बॉम्बे क्रॉनिकल को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का शक्तिशाली मुखपत्र बना दिया था। हॉर्निमैन ने ऐनी बेसेंट  के अधीन होम रूल सोसाइटी के वाइस प्रेसीडेंट थे। महात्मा गांधी ने उन्हें रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह सभा का उपाध्यक्ष भी नियुक्त किया था। 

ब्रिटिश अधिकारियों ने लगाया प्रतिबंध
हॉर्निमैन और उनके पत्रकार मित्र गोवर्धन दास थे जलियांवाला बाग में क्रूर नरसंहार को दुनिया के सामने लाने में भूमिका निभाई। तब ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को धता बताते हुए हॉर्निमैन ने लंदन में जलियांवाला बाग की क्रूरता वाली तस्वीरें पहुचाईं। जो चौंकाने वाली भी थीं। उन्होंने ब्रिटिश जनता की अंतरात्मा को झकझोरकर रख दिया। हालांकि गोवर्धन दास को गिरफ्तार कर लिया गया और हॉर्निमैन को लंदन भेज दिया गया। बॉम्बे क्रॉनिकल को बंद कर दिया गया था। गांधी ने हॉर्निमैन के निर्वासन के खिलाफ देशव्यापी विरोध का आह्वान किया। वहीं हॉर्निमैन ने ब्रिटेन में भी भारतीय उद्देश्य के लिए अभियान जारी रखा। उन्होंने हंटर कमीशन का पर्दाफाश किया, जिसने कर्नल रेजिनाल्ड डायर को जलियांवाला बाग की बर्बरता से बरी कर दिया था। 

दोबारा फिर लौटे हार्निमैन
सन् 1926 में हॉर्निमैन फिर से भारत लौट आए और बॉम्बे क्रॉनिकल को संभाला। साथ ही अपनी राष्ट्रवादी पत्रकारिता जारी रखी। बाद में उन्होंने द इंडियन नेशनल हेराल्ड और सेंटिनल जैसे अपने स्वयं के समाचार पत्र शुरू किए। जिन्होंने भी भारतीय स्वतंत्रता का पुरजोर समर्थन किया। हॉर्निमैन ने भारत के पहले कामकाजी पत्रकार संघ इंडियन प्रेस एसोसिएशन की स्थापना की। प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के ब्रिटिश प्रयासों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। पोथेन जोसेफ जैसे महान पत्रकारों को हॉर्निमैन ने सलाह दी थी। सन् 1948 में हॉर्निमैन का निधन हो गया। 

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