सार
हाईकोर्ट में शेल कंपनी मामले में सरकार का पक्ष जाने-माने अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने रखा। माइनिंग लीज मामले की सुनवाई में सीएम हेमंत सोरेन की तरफ से मुकुल रहतोगी पहुंचे, जबकि, ED का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा।
रांची : IAS पूजा सिंघल (Pooja Singhal) की गिरफ्तारी के बाद से ही झारखंड (Jharkhand) की राजनीति में हलचल है। ED की पूछताछ में कई ऐसे खुलासे हुए हैं, जिनमें कई लोगों के नाम सामने आ सकते हैं। मंगलवार को झारखंड हाईकोर्ट में जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के खिलाफ माइनिंग लीज आवंटन और शेल कंपनी से जुड़े उनके करीबियों के केस पर सुनवाई हुई तो प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से सील बंद लिफाफा पेश किया गया। जिसके बाद से तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं।
ऊपर तक जाता है घूस का पैसा
उच्च न्यायालय के सामने ED के वकील तुषार मेहता ने जानकारी देते हुए बताया साल 2010 में इसको लेकर 16 केस दर्ज किए गए थे। ED ने जब जांच शुरू की तब पाया गया कि पूजा सिंघल के पास करोड़ों रुपए हैं। उन्हें रिश्वत के रूप में जो भी पैसे मिलते हैं, वह सरकार में उच्च पदों पर बैठे सत्ताधारियों तक जाता है। इसी पैसों से शेल कंपनी के जरिए मनी लॉड्रिंग का खेल चलता है। जांच के दौरान कुछ लोगों ने मनी लॉड्रिंग को स्वीकार भी किया है। एक शख्स ने तो मनी लॉड्रिंग वाली कंपनियों की लिस्ट भी दी है।
19 मई को अगली सुनवाई
पूरी दलीलें और जांच रिपोर्ट देखने के बाद हाईकोर्ट ने इसकी अगली सुनवाई 19 मई को निर्धारित की है। अदालत ने निर्देश दिया है कि मनरेगा से जुड़ी 16 FIR की डिटेल कोर्ट के सामने रखी जाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से यह भी पूछा कि जब इस मामले में किसी तरह का कोई FIR ही दर्ज नहीं है तो फिर इस मामले को CBI को क्यों सौंपा जाए। वहीं, जवाब में याचिकाकर्ता शिवशंकर शर्मा के वकील राजीव कुमार ने कहा कि उन्होंने कोर्ट में कहा कि चूंकि यह पूरा मामला प्रशासनिक अफसर पूजा सिंघल के मामले से जुड़ा है। इसलिए कोर्ट जनहित से जुड़े मुद्दों पर जांच का आदेश दे सकती है।
सीएम सोरेन के खिलाफ जनहित याचिका
दरअसल, इस पूरे केस में सीएम सोरेन की टेंशन भी बढ़ सकती है। इस मामले को लेकर शिवशंकर शर्मा ने PIL दाखिल की है। इस याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री से जुड़े उनके कई करीबी 400 के करीब शेल कंपनी चलाकर बड़ा पैसा बना रहे हैं। इस पैसे से होटल, मॉल और अन्य कई प्रॉपर्टी खरीदी गई है। इस पर हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी को प्रतिवादी बनाकर जानकारी मांगी है। जिसके जवाब में रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी ने अदालत में जानकारी दी कि वे झारखंड की सिर्फ चार कंपनियों की जानकारी दे सकते हैं। क्योंकि यहीं कंपनियां ही उनके अधीन आती है। बाकी जिन 45 कंपनियों का जिक्र है, वे अलग-अलग राज्यों से आती है।
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