सार

26 जुलाई 1999 के दिन पाकिस्तान के साथ कारगिल में हुए युद्ध में झारखंड के वीरों ने दुश्मनों को होसले पस्त कर दिए थे। आज यानि मंगलवार 26 जुलाई 2022 के दिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने देश के वीर सैनिकों और उनके परिवारजनों को किया नमन।

रांची (झारखंड).  23 साल पहले 26 जुलाई के दिन ही भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों और घुसपैठियों की शक्ल में आए पाकिस्तानी सैनिकों को कारगिल की चोटियों पर या तो मार गिराया था या भागने पर मजबूर कर दिया था। तभी से भारत में इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। देशवासी इस दिन उन वीर जवानों को याद करते हैं जिन्होंने कारगिल के युद्ध में देश के लिए अपनी जान गवाई और शहीद हुए। बता दें कि कारगिल के युद्ध में झारखंड सहित पूरे देश के वीर जवानों ने हिस्सा लिया था। सभी ने अपनी वीरता और पराक्रम को दिखाया और दुश्मनों के छकके छुडुा दिए। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कारगिल विजय दिवस पर देश के वीर सैनिकों, उनके परिवारजनों समेत समस्त देशवासियों को नमन किया है। उन्होने कहा- देश की आन, बान और शान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सेना के वीर जांबाजों को कारगिल विजय दिवस के अवसर पर शत-शत नमन। 

झारखंड के वीर जवन जिन्होंने कारगिल में देश के लिए प्राण न्यौछावर किए

साहिबगंज के शहीद जोनाथन मरांडी

साहिबगंज के जोनाथन मरांडी ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों के छक्का छुड़ाए थे। बिहार आर्मी के जवान जोनाथन ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों के समक्ष अपना लोहा मनवाते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था। हालांकि, इस युद्ध में जोनाथन मरांडी भी शहीद हुए थे। उनका जन्म तालझारी के एक मध्यम परिवार में 4 मार्च, 1966 को हुआ था। प्राथमिक शिक्षा गांव के सटे मिशन स्कूल में हुई। बीएसके कॉलेज, बरहरवा से उच्च शिक्षा ग्रहण की। 1986 में प्रथम बिहार रेजीमेंट दानापुर में बिहार आर्मी के रूप में योगदान दिया। कारगिल में पाकिस्तानी सैनिकों एवं आतंकियों ने हमला बोला, तो भारतीय सैनिक की तरफ से इसका मुंहतोड़ जवाब दिया गया। प्रशासन की ओर से तालझारी थाना के समीप शहीद जोनाथन मरांडी का स्मारक बनाया गया है. जहां हर साल शहीद दिवस, कारगिल विजय दिवस, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस पर वीर जवानों को याद कर श्रद्धांजलि दी जाती है।

गुमला के जॉन अगस्तुस
गुमला जिला अंतर्गत रायडीह प्रखंड के परसा तेलेया गांव के रहने वाले थे। कारगिल युद्ध में शहीद होने के छह दिन बाद उनका पार्थिव शरीर गुमला पहुंचा था। उन्हें शहर के पुग्गू कब्रिस्तान में दफन किया गया। जॉन का परिवार आज गुमला शहर के दाउदनगर में रहता है। उनके के दो बेटे हैं, एक का नाम सुकेश कुमार एक्का और दूसरे नितेश पॉल एक्का है। 13 नवंबर, 1959 को जन्मे जॉन ने 10 अगस्त, 1979 को सातवीं बिहार रजिमेंट में जवान के रूप में योगदान दिया। 20 वर्ष चार माह व 16 दिन तक अपने देश की रक्षा में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हो गये। जॉन ने आठवीं तक पढ़े थे। इसके बाद सेना में नौकरी मिल गयी। जॉन अगस्तुस जवान से लांस नायक बने। इसके बाद हवलदार रैंक तक गये थे। उन्हें चार-चार मेडल मिले थे। नौ वर्ष के कार्यकाल में लंबा सर्विस मेडल, स्पेशल सर्विस मेडल, विदेश सेवा मेडल श्रीलंका व 20 वर्ष लंबी सेवा के लिए सर्विस मेडल मिला था।  

गोड्डा के वीरेंद्र महतो 
कारगिल में लड़ते हुए गोड्डा जिले के धर्मोडीह गांव निवासी वीरेन्द्र महतो ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया 24 जून को दिया था। गोड्डा में प्रत्येक वर्ष वीरेन्द्र महतो के दोस्त व बुद्धिजीवी एवं परिवार व समाज की ओर से 24 जून को श्रद्धांजलि सभा की जाती है। गोड्डा मुख्य चौक को कारगिल शहीद वीरेंद्र महतो चौक के नाम से झारखंड सरकार ने नोटिफाइड किया और यहां एक टावर का निर्माण व सौंदर्यीकरण किया गया है। परंतु अबतक शहीद की प्रतिमा नहीं लगाई गई है। यहां के लोग शहीद वीरेन्द्र महतो की प्रतिमा लगाकर उसे विशेष सम्मान देने की बात कर रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में गोड्डा के वीर जवान का देश की प्रति योगदान का इतिहास धमकता रहेगा।

झारखंड की राजधानी में परमवीर अल्बर्ट एक्का की प्रतिमा पर किया गया माल्यार्पण
कारगिल विजय दिवस के अवसर पर परमवीर चक्र लांस नायक शहीद अल्बर्ट एक्का की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया साथ ही उन्हें सैनिक सलामी दी गई। यह सलामी 1 झारखंड नौसेना इकाई एनसीसी तथा 3 बटालियन एनसीसी के द्वारा दी गई। कारगिल विजय दिवस समारोह में 1 झारखंड नौसेना इकाई, 2 एयर  स्क्वाडर्न एनसीसी  एवं 3 boys बटालियन एनसीसी के कैडेट ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। रांची के मेन रोड में स्थित अल्बर्ट एक्का की प्रतिमा पर माल्यार्पण समारोह किया गया। माल्यार्पण ग्रुप कमांडर, कर्नल एच के पाठक, एनसीसी ग्रुप हैडक्वाटर, रांची एवं कमान अधिकारी, लेफ्टिनेंट शुभम कुमार अवस्थी,  1 झारखंड नौसेना इकाई एनसीसी के द्वारा किया गया। इस आयोजन को सफलता पूर्वक करने में रांची ट्रैफिक पुलिस एवं रांची नगर निगम का बहुत बड़ा योगदान रहा।

कब हुआ कारगिल युद्ध
कारगिल युद्ध मई-जुलाई 1999 तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के कारगिल जिले में हुआ। माना जाता है कि कारगिल की चोटियों पर आतंकवादियों को पहुंचाने और उन्हें सैन्य मदद देने की पूरी साजिश उस समय पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ की थी। दरअसल उस समय तक सर्दियों की शुरुआत में सैनिक ऊंची चोटियों पर अपनी पोस्ट छोड़कर निचले इलाकों में आ जाते थे। पाकिस्तान और भारतीय दोनों सेनाएं ऐसा करती थीं। सर्दियों में जब भारतीय सेना चोटियों से नीची उतरी तो पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने चुपके से घुसपैठ करके प्रमुख चोटियों को अपने कब्जे में ले लिया। पाकिस्तानी सैनिक और आतंकवादी अब ऐसी प्रमुख चोटियों पर तैनात थे, जहां से वह भारतीय सेना को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते थे। भारतीय सेना को इस घुसपैठ की जानकारी चरवाहों से मिली। चरवाहों ने पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों को वहां देख लिया था। इसके बाद भारतीय सेना ने घुसपैठियों से अपनी जमीन को खाली कराने के लिए ऑपरेश विजय चलाया। 

कारगिल युद्ध से नुकसान
कोई भी युद्ध होता है तो उसमें एक पक्ष की जीत और दूसरे की हार होती है। लेकिन नुकसान दोनों को ही होता है। कारगिल युद्ध में भले ही भारत को जीत मिली हो, लेकिन यह जीत काफी बलिदानों के बाद मिली। इस युद्ध में भारत की तरफ 527 सैनिक शहीद हुए। जबकि पाकिस्तान की तरफ से 357 से 453 के बीच सैनिक और घुसपैठिए आतंकवादी मारे गए।
 

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