सार

भारत में टीबी के मामले कम हो रहे हैं, लेकिन यह अभी भी एक बड़ी चुनौती है। क्या भारत पोलियो की तरह टीबी को भी हरा पाएगा? जानिए इस जंग की पूरी कहानी।

नई दिल्ली: ट्यूबरक्लोसिस (टीबी-क्षयरोग) महामारी भारत में तेज़ी से कम हो रही है, ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने माना है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया में सबसे ज़्यादा टीबी के मरीज़, यानी लगभग 25%, भारत में हैं, ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले अनुमान लगाया था। इसके बाद इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस और पाकिस्तान का नंबर आता है। जिस देश में वायु प्रदूषण ज़्यादा है, वहाँ टीबी भी ज़्यादा है। भारत में सरकार के कड़े प्रयासों से यह बीमारी 2015 से 2023 के बीच 18% कम हुई है। यह एक बड़ा बदलाव है। लेकिन, अभी भी प्रति लाख 195 लोगों में टीबी पाया जाता है।

टीबी के मरीज़ अगर सही समय पर इलाज करवाएँ तो ठीक हो सकते हैं, फिर भी प्रति लाख 22 लोगों की इससे मौत हो जाती है। इस कारण टीबी भारत में सबसे ज़्यादा जान लेने वाली महामारी है।

भारत ने मिलकर प्रयास करके पोलियो को ख़त्म किया है। टीबी के ख़िलाफ़ भी ऐसा ही प्रयास चल रहा है। लेकिन, ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया पोलियो वायरस से तेज़ी से फैलता है। टीबी के मरीज़ अगर खांसते या छींकते हैं, तो उसके कुछ कण अगर किसी और को लग जाएँ तो उसे भी टीबी हो सकता है। इसलिए यह फेफड़ों का संक्रमण बहुत फैला हुआ है। भारत में वायु प्रदूषण भी बहुत ज़्यादा है। यह भी टीबी बढ़ने का एक कारण है। इसलिए टीबी को नियंत्रित करने के लिए सिर्फ़ मरीज़ों का इलाज करवाना ही काफ़ी नहीं है, वायु प्रदूषण को भी नियंत्रित करना होगा।

टीबी नियंत्रण के लिए सभी राज्यों में अलग क्षयरोग अस्पताल हैं। केंद्र सरकार हर साल इसके मुफ़्त इलाज के लिए हज़ारों करोड़ रुपये खर्च करती है। फिर भी लाखों लोग मर रहे हैं। इसका कारण जागरूकता की कमी है। क्योंकि अगर टीबी के मरीज़ों को सही समय पर इलाज मिल जाए तो मौत नहीं होती। इसलिए टीबी के बारे में जागरूकता फैलाने और हर तरह से इस संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए सरकार को संगठित प्रयास जारी रखने चाहिए। दुनिया के एक चौथाई टीबी के मरीज़ भारत में ही हैं। यह भारत में सबसे ज़्यादा जान लेने वाली महामारियों में से एक है।