सार

क्या आप हमेशा खुद को दोष देते हैं और नेगेटिव सोचते हैं? यह आपके आत्मविश्वास और क्षमताओं को प्रभावित कर सकता है. जानें, कैसे पहचानें और रोकें मन की आलोचनात्मक आवाज़ को.

हमारा कॉन्फिडेंस कम होने और काम ठीक से न कर पाने के पीछे अक्सर हमारे मन में उठने वाली आलोचनात्मक आवाज़ (inner critic) होती है. इसे कैसे पहचानें, इसके बारे में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट प्रिया वर्गीस बता रही हैं.

स्कूल के दिनों में एक लड़की पढ़ाई में बहुत अच्छी थी. कॉलेज में आते-आते उसे पढ़ाई में मन नहीं लगता था. सुबह उठने से ही उसके मन में नेगेटिव विचार आने लगते. आज का दिन भी खराब जाएगा. मैं कुछ नहीं कर सकती, मुझे कोई पसंद नहीं करता, मेरा रूप-रंग अच्छा नहीं, मैं जैसा चाहती हूँ वैसा नहीं जी पा रही- ऐसे ढेरों नेगेटिव विचार उसके मन की शांति भंग करते.

उसे जीने में भी मज़ा नहीं आता था. उसकी यह हालत देखकर उसकी सहेलियों ने उसे साइकोलॉजिस्ट के पास जाने के लिए कहा. साइकोलॉजिस्ट से मिलने के बाद उसे समझ आया कि उसकी यह परेशानी उसके नेगेटिव विचारों की वजह से है.

यह ऐसी स्थिति है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है, चाहे वह बच्चा हो, नौकरीपेशा हो, गृहिणी हो या बुजुर्ग. जब भी हम कुछ करने की सोचते हैं, हमारे मन में खुद को नीचा दिखाने वाले और नेगेटिव विचार आने लगते हैं. फिर कुछ करने का मन नहीं करता. हमेशा दुखी रहते हैं. बचपन से ही अगर आप निगेटिव माहौल में पले-बढ़े हैं, खासकर अगर आपके परिवार में कोई निगेटिव सोच वाला है, तो यह आपके अंदर भी आ सकता है.

हमारा कॉन्फिडेंस कम होने और काम ठीक से न कर पाने के पीछे अक्सर हमारे मन में उठने वाली आलोचनात्मक आवाज़ (inner critic) होती है. इसे कैसे पहचानें, आइए जानते हैं:

1.    क्या आप हमेशा खुद पर भरोसा नहीं कर पाते? क्या आप अक्सर सोचते हैं कि क्या मैं यह कर पाऊँगा, क्या मुझमें इतनी बुद्धि है? क्या इसी शक की वजह से आप कई काम छोड़ देते हैं?
2.    क्या छोटी-छोटी गलतियों पर भी आप खुद को बहुत दोषी मानते हैं? अगर आपके दोस्त या कोई और कहे कि यह तो छोटी सी बात है, तो भी क्या आप अपनी गलती स्वीकार नहीं कर पाते और खुद को माफ़ नहीं कर पाते?
3.    क्या आप समय पर पढ़ाई या काम पूरा नहीं कर पाते, उसे शुरू भी नहीं कर पाते और टालते रहते हैं (procrastination)? अगर आप सोचते हैं कि यह आपकी क्षमता की कमी है, तो ऐसा नहीं है. आपके मन की नेगेटिव आवाज़ आपके आत्मविश्वास को कम कर रही है, यही इसकी मुख्य वजह है. एक बार सोचकर देखिए.
4.    क्या आपको कभी भी चिंता मुक्त नहीं रह पाते? क्या आप चाहते हैं कि काश मैं कुछ देर के लिए ही सही, शांति से बैठ सकूँ? क्या खुद को दोषी मानने की आदत आपके मन की शांति छीन रही है?
5.    क्या आप हमेशा दूसरों से अपनी तुलना करते हैं और खुद को कम आंकते हैं?

अगर ऊपर बताई गई बातें आपके जीवन में भी होती हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि आपमें क्षमता या ज्ञान की कमी है. हो सकता है कि आपके मन के नेगेटिव विचारों ने आपकी सोच को इस तरह प्रभावित कर दिया है कि आप अपनी क्षमताओं को पहचान ही नहीं पा रहे. अगर हम मानते हैं कि इस दुनिया में हर इंसान कीमती है, तो हमें यह भी मानना होगा कि हम भी कीमती हैं. खुद को दोष देने वाली आवाज़ को “STOP”, बस, अब बहुत हुआ कहें. आज से ही अपनी उन खूबियों को याद करने की कोशिश करें जिन्हें आप भूल चुके हैं, अपने जीवन के अच्छे पलों को याद करें. बहुत समय से आप सिर्फ़ नेगेटिव सोच रहे हैं, तो एक नई आदत डालें और अपने बारे में कम से कम एक अच्छी बात ज़रूर सोचें. अगर हम खुद से प्यार और करुणा करेंगे, तभी हम दूसरों से भी करुणा कर पाएँगे. इसलिए आज से ही एक नई शुरुआत करें.

(लेखिका तिरुवल्ला में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं. फ़ोन: 8281933323)