नागा चैतन्य और शोभिता धुलिपाला की शादी की रस्मों की तस्वीरें वायरल। तेलुगु ब्राह्मण परंपरा से हो रही शादी में निश्चयार्थम् से लेकर गृह प्रवेश तक कई रस्में निभाई जाएंगी।

रिलेशनशिप डेस्क. साउथ एक्टर नागा चैतन्य और एक्ट्रेस शोभिता धुलिपाला 4 नवंबर को शादी के बंधन में बंध जाएंगे। इनकी शादी से जुड़े रस्म की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। शादी के दो दिन पहले शोभिता का मंगलस्नानम हुआ। हल्दी की रस्म निभाई गई। इसके साथ राता स्थापना की रस्म की गई। अदाकारा ने इन रस्मों की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की।

नागा चैतन्य और शोभिता धुलिपाला पूरी तरह तेलुगु ब्राह्मण परंपरा को निभाते हुए शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि इनकी शादी की रस्म 8 घंटे तक चलेगी। शोभिता कांजीवरम साड़ी पहनकर सात फेरे लेंगी। आइए जानते हैं तेलुगु ब्राह्मण शादी की कौन-कौन सी रस्में होती है।

निश्चयार्थम्

यह विवाह की पहली रस्म होती है, जिसमें वर और वधू के परिवार एक-दूसरे से मिलते हैं और शादी की तिथि तय करते हैं। हल्दी-कुमकुम और नारियल का आदान-प्रदान किया जाता है। इसके साथ लड़का और लड़की एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। इस रस्म को निश्चयार्थम् कहा जाता है।

पेल्लिकुतुरु और पेल्लिकोडुकु

पेल्लिकुटुरू और पेल्लिकोडुकू समारोह शादी के एक या दो दिन पहले दूल्हा और दुल्हन के घर पर होता है। इस रस्म में, आटे और हल्दी का पेस्ट, जिसे नलुगा कहा जाता है , सुगंधित तेलों के साथ तैयार किया जाता है जिसे फिर दूल्हा और दुल्हन के शरीर पर लगाया जाता है। इसके बाद हल्दी के पानी से पवित्र स्नान कराया जाता है। कहा जाता है इससे शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं।

मंगला स्नानम

'मंगला' का अर्थ है पवित्र, और 'स्नानम' का अर्थ है नहाना। मंगला स्नानम की रस्म विवाह की सुबह होता है। इसमें दूल्हे और दुल्हन को एक निश्चित शुभ समय पर स्नान के लिए ले जाया जाता है। स्नान समाप्त होने के बाद, दुल्हन और दूल्हे को शादी के कपड़े पहनाते हैं। श्रृंगार किया जाता है। फिर दूसरी रस्में निभाई जाती है।

स्नाथकम

स्नाथकम रस्म के दौरान दूल्हा पवित्र स्नान करता है और फिर अपने ऊपरी शरीर के चारों ओर एक पवित्र चांदी का धागा पहनता है। इसे जीवन में एक नई शुरुआत का प्रतीक कहा जाता है। यह दूल्हे के विवाह के लिए तैयार होने का भी संकेत है।

काशी यात्रा

यह एक मजेदार रस्म है, जिसमें दूल्हा शादी छोड़कर काशी जाने का नाटक करता है, और दुल्हन के पिता-भाई उसे मनाकर वापस लाते हैं। वो दुल्हन से शादी करने का अनुरोध करते हैं।

गणेश और गौरी पूजा

मंडप में पहली पूजा गणेश जी की होती है जिसमें दूल्हा हिस्सा लेता है। दूल्हा अपने नए जीवन के लिए उनसे आशीर्वाद लेता है और कहता है कि उसी शादी बिना किसी बाधा के हो जाए। जब दूल्हा गणेश जी की पूजा कर रहा होता है तो दुल्हन गौरी पूजा करती है। देवी गौरी उर्वरता, बुराई पर अच्छाई की जीत और मातृत्व का प्रतीक हैं। दुल्हन उनका आशीर्वाद लेती है।

कन्यादान और पाणिग्रहणम

कन्यादान और पाणिग्रहणम दुल्हन के माता-पिता करते हैं। जिसमें वो दूल्हे का पैर धोते हैं। इसके बाद में बेटी का हाथ दूल्हे को सौंपते हैं। बदले में दूल्हा अपनी दुल्हन से जीवन भर प्यार, सम्मान और सुरक्षा का वादा करता है।

मंगलसूत्र बांधना

मुख्य विवाह अनुष्ठान में दूल्हा दुल्हन के गले में मंगलसूत्र बांधता है। इस रस्म का समय (मुहूर्तम) ज्योतिष के अनुसार निर्धारित किया जाता है।

तोला परिधन

इस रस्म में दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे पर चावल और हल्दी छिड़कते हैं। यह रस्म उनके नए जीवन में समृद्धि और सुख की कामना के लिए होती है। यह काफी मजेदार र्सम होता है।

सप्तपदी

इसके बाद दूल्हा-दुल्हन पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं, और हर कदम के साथ व्रत और संकल्प लेते हैं। एक दूसरे को वचन देते हैं।

अरुंधति नक्षत्रम

अरुंधति नक्षत्रम के दौरान, पुजारी जोड़े को मंडप से बाहर ले जाकर आकाश में अरुंधति और वसिष्ठ नक्षत्रम (तारा) दिखाते हैं। अरुंधति और वसिष्ठ तारा आदर्श कपल का प्रतिक हैं, इसलिए उन्हें उदाहरण के तौर पर दिखाया जाता है।दूल्हा अपनी दुल्हन को तारे दिखाता है। इसके बाद दूल्हा दुल्हन के पैर के अंगूठे में चांदी की अंगूठी पहनाता है।

गृह प्रवेश

शादी के बाद दुल्हन की विदाई होती है। दूल्हे के घर पर उसका स्वागत किया जाता है।यह रस्म नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है।

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