Symptoms of Separation Anxiety in Children: क्या आपको पता है कि बच्चों में अपने पेरेंट्स या नैनी से दूर जाने का डर भी एक तरह का एंग्जायटी है। समय के साथ ये गंभीर हो सकता है, इसलिए ये क्यों होता है, इसे कैसे ठीक किया जाए ये जानना बहुत जरूरी है।
हर बच्चा अपने पेरेंट्स या नेनी से जुड़ाव और लगाव महसूस करता है। यही जुड़ाव उसके सेफ और हैप्पी चाइल्डहूड का बेस होता है। लेकिन जब यह जुड़ाव डर और बेचैनी में बदल जाए तो इसे सेपरेशन एंग्जायटी कहा जाता है। अक्सर छोटे बच्चों में यह स्थिति देखी जाती है, जब वे थोड़ी देर के लिए भी अपने माता-पिता या जिसके साथ ज्याद वक्त बिताते हैं, जिसके साथ खासबॉन्ड होता है उनसे दूर नहीं रह पाते। प्यार की कमी, लगातार दूरी या अचानक होने वाले बदलाव ये एंग्जायटी और ज्यादा बढ़ सकती है, जो उनके हेल्दी चाइल्डहुड लाइफ के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है।
बच्चों में सेपरेशन एंग्जायटी क्यों होती है?

बच्चों का मन बहुस सेंसिटीव होता है। जैसे ही उन्हें लगता है कि उनको सेफ फील करवाने वाले माता-पिता उनसे दूर हो रहे हैं, तो वे घबराने लगते हैं। यह घबराहट कई बार रोने, चिपक जाने, स्कूल जाने से डरने या लगातार मां-बाप को ढूंढने जैसे व्यवहार में दिखाई देते हैं। अगर बच्चे को लगता है कि उसका प्यार छिन जाएगा या वह अकेला रह जाएगा, तो ये डर और सेपरेशन एंग्जायटी और गहरी हो सकती है।
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किन कारणों से यह समस्या बढ़ती है?
माता-पिता का लंबे समय तक काम में बिजी रहना, बच्चे से कम बातचीत करना, उन्हें कम वक्त देना, घर का माहौल स्ट्रेसफुल होना या अचानक किसी नए माहौल में डाल देने से बच्चे को सेपरेशन एंग्जायटी हो सकती है। कुछ बच्चों में यह समस्या स्वभाविक रूप से भी ज्यादा होती है क्योंकि उनका अटैचमेंट पैटर्न बहुत डीप होता है।
इससे बच्चों पर क्या असर पड़ता है?
- लगातार एंग्जायटी से बच्चे का आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है।
- बच्चे नए माहौल में एडजस्ट नहीं कर पाते, जिससे वे पढ़ाई और खेलकूद में पीछे रह सकते हैं और बार-बार बीमार पड़ने की शिकायत भी आ सकती है।
- कई बार बच्चा अकेले सोने से डरता है या लगातार बुरे सपने देखने लगता है।
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बच्चों के सेपरेशन एंग्जायटी को कैसे ठीक करें?
बच्चे को यह भरोसा दिलाना सबसे जरूरी है कि वह अकेला नहीं है और उसके माता-पिता हमेशा उसके साथ हैं। इसके लिए माता-पिता को बच्चे के साथ समय बिताना चाहिए, उसके इमोश्नल फियर को नजरअंदाज करने के बजाय समझना चाहिए। छोटे-छोटे कदम जैसे उसे धीरे-धीरे नए माहौल से परिचित कराना, प्यार और सुरक्षा का अहसास दिलाना, डेली रूटीन बनाना और उसकी पसंद-नापसंद को महत्व देना, इस समस्या को कम कर सकता है। गंभीर स्थिति में एक्सपर्ट काउंसलिंग लेना भी हेल्पफुल होता है।
