सार
भारत का 70 साल का इंतजार आज खत्म हुआ। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में 17 सितंबर यानी आज नामीबिया से 8 चीते पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बॉक्स खोलकर तीन चीतों को क्वारंटीन बाड़े में छोड़ दिया है।
गुना (मध्य प्रदेश). भारत का 70 सालों का सपना आखिरकार पूरा हो गया। एक बार फिर से देश में चीतों की दहाड़ सुनने को मिलेगी। मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में 17 सितंबर को नमीबिया से स्पेशल फ्लाइट के जरिए लाए गए 8 चीते शनिवार सुबह पहुंचे। ये चीते 24 लोगों की टीम के साथ चीते ग्वालियर एयरबेस पर उतरे। यहां से चिनूक हेलिकॉप्टर के जरिए इन्हें कूनो नेशनल पार्क लाया गया। इन चीतों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन के मौक पर कूने पार्क में छोड़ दिया है। लेकिन चीतों भारत लाने की पहल आज से 50 साल पहले हो गई थी। मप्र कैडर के 1961 बैच के आईएएस अफसर एमके रंजीत सिंह ने 1972 में ही चीतों को भारत में लाने का आइडिया सबसे पहले दिया और इस पर दिन रात काम किया। जिसकी बदौलत आज चीते यहां लाए गए हैं।
1981 में कूनो पालपुर के जंगल को सेंक्चुरी बनाया गया
दरअसल, चीतों को सबसे पहले गुजराज के कच्छ में लाने की योजना थी। दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट एमके रंजीत सिंह ने बताया कि 1981 में कूनो पालपुर के जंगल को सेंक्चुरी बनाने का प्लान बनाया, क्योंकि कूनो में वो सारी चीजें थीं जो चीतों को लिए जरूरी होती हैं। रंजीत सिंह चीतों को भारत में लाने के लिए रिटायरमेंट के बाद भी चीता प्रोजेक्ट पर काम करते रहे। उन्होंने ही फॉरेस्ट सेक्रेटरी रहते हुए कूनो के जंगल को सेंक्चुरी बनाने की पहल की थी। जिसकी बदौलत है कि आज हमारे देश में अफ्रीका से चीते लाए गए हैं।
इसलिए कूनो को चीतों को लिए चुना गया
एमके. रंजीत सिंह ने बताया कि कूनो पार्क में वह सब है जो एक चीते के लिए होना चाहिए। चीतों को दौड़ने के लिए बड़ा और घना जंगल है। उनके ही भोजन और अनुकूल मौसम है। पार्क के बीच में कूनो नदी बहती है। आसपास छोटी-छोटी पहाड़ियां हैं जो चीतों के लिए बिल्कुल मुफीद हैं। इनके चिकार के लिए करीब 200 सांभर, चीतल व अन्य जानवर खासतौर पर लाकर बसाए गए हैं। ऐसे में चीते को यहां शिकार का भरपूर मौका मिलेगा। यही कारण है कि कूनो का चयन किया गया।
1985 में फिर चीतों को लाने की कवायद शुरू...लेकिन ठंडे वस्ते में चला गया
बता दें कि जिस वक्त एमके रंजीत सिंह को फॉरेस्ट सेक्रेटरी बनाया गया था। इस दौरान ही उन्होंने कूनो पालपुर सेंक्चुरी का ड्राफ्ट तैयार कर लिया था। उनका कहना है कि बाद में मुझे वाइल्ड लाइफ ऑफ इंडिया का डायरेक्टर बनाया गया। लेकिन पहले यह चीते ईरान से लाने थे। इसके लिए बाकयदा एक एग्रीमेंट भी साइन हुआ था। इस तरह मेरी टीम ने 1985 में फिर चीतों को लाने की कवायद शुरू कर दी। पूरा खाका बनाकर राज्य सरकार के सामने रखा गया। लेकिन कुछ समय बाद यह प्रोजेक्ट ठंडे वस्ते में चला गया।
कोर्ट की निगरानी में कमेटी बनी...फिर ऐसे हुआ फाइनल डिसीजन
अफसर ने बताया कि फिर हमने नए तरीके से 2008-09 में इस प्रोजेक्ट काम करना शुरू किया गया, जिसमें डिसाइड हुआ कि अब ये चीते ईरान से नहीं, बल्कि अफ्रीका से लाए जाएंगे। इसके मैं रिसर्च करने करने के लिए नामीबिया गया वहां चीते देखे वहां का मौसम और तापमान से लेकर सारी डिटेल जुटाई। इसके बाद भारत आकर केंद्र सरकार के सामने पूरी रिपोर्ट रखी। जिसके बाद मामला कोर्ट तक पहुंच गया और अदालत ने 2013 में आदेश दिया था कि कूनो में चीते नहीं लायन बसाए जाएंगे। इसके लिए एक कमेटी का गठन किया गया। फिर राजनीति के कारण मामला टल गया। लेकिन साल 2020 में उच्च उदालत ने आदेश दिया कि चीते लाए जाएं और इसकी निगरानी खुद कोर्ट करेगी। जिसका अध्यक्ष भी मुझे ही बनाया गया। अदालत ने यह भी कहा था कि अफ्रीकी चीते को भारत लाने से पहले उचित सर्वे किया जाएगा। इसके बाद ही चीते आएगें। हमारी टीम ने दिनरात मेहनत की और पूरी रिपोर्ट बनाकर सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी और फिर नामीबिया को चीते लाने की फाइनल तारीख तय कर दी गई।