सार

आज(सोमवार) गुरुनानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। सिखों के पहले गुरु नानक देवजी आज से करीब 500 साल पहले भोपाल आए थे। वे जिस जगह रुके थे, अब वहां गुरुद्वारा है। यहां एक पानी का कुंड है। कहते हैं कि इस कुंड में नहाने से कोढ़ दूर हो जाता है। नानक देवजी ने खुद एक व्यक्ति का कोढ़ दूर किया था।

 

भोपाल, मध्य प्रदेश. सिखों के पहले गुरु नानक देवजी की आज (सोमवार) जयंती है। इसे प्रकाश पर्व के तौर पर मनाया जाता है। बता दें कि नानक देवजी 500 साल पहले भोपाल आए थे। वे यहां ईदगाह हिल्स स्थित एक जगह पर रुके थे। अब यहां टेकरी साहिब गुरुद्वारा मौजूद है। यहां से जुड़ीं कई कहानियां प्रचलित हैं। बुजुर्ग इनकी सत्यता पर मुहर लगाते हैं। इस गुरुद्वारे में नानक देवजी के पैरों के निशान मौजूद हैं। इस गुरुद्वारे में देश-दुनिया से बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

यह है एक कहानी...
यहां के सेवादार बाबू सिंह ने एक मीडिया हाउस को बताया कि नानकजी 500 साल पहले जब देश भ्रमण पर निकले थे, तब वे भोपाल आए थे। वे ईदगाह हिल्स पर एक कुटिया में ठहरे थे, जहां अब यह गुरुद्वारा है। इस कुटिया में गणपतलाल नाम का शख्स रहता था। वो कुष्ठ रोग(कोढ़) से पीड़ित था। एक बार वो पीर जलालउद्दीन के पास गया। पीर ने उसे नानक देवजी के पास जाने को कहा। गणपतलाल अपनी बीमारी के इलाज की उम्मीद में नानकजी से मिला। नानक देवजी ने अपने साथियों से पानी लाने को कहा। काफी देर यहां-वहां खोजने के बाद एक पहाड़ी से फूटते प्राकृतिक झरने से वे पानी लेकर आए। नानक देवजी ने उस पानी को गणपतलाल पर छिड़का। बताते हैं कि इसके बाद वो बेहोश हो गया। जब उसे होश आया, तब नानक देवजी वहां से जा चुके थे। लेकिन उनके पांवों के निशान मौजूद थे। गणपतलाल का कोढ़ ठीक हो चुका था। 

नवाबों ने दी थी जमीन

इस गुरुद्वारे के लिए यह जमीन भोपाल नवाब ने दी थी। जिस जगह से यह पानी मिला था, उसे अब बाउली साहब कहते हैं। इसमें आज भी बराबर पानी रहता है। यहां के जल को लोग प्रसाद मानकर अपने साथ ले जाते हैं। इस जगह को संरक्षित किया गया है।

नानक देवजी से जुड़ीं बातें
-नानक देवजी 7-8 साल की उम्र में ही काफी प्रसिद्ध हो गए थे
-गुरु नानक देवजी के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। नानक देव जी की बहन का नाम नानकी था।
-गुरु नानक देवजी का जन्म राय भोई की तलवंडी (राय भोई दी तलवंडी) नामक जगह पर हुआ था। यह अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब में है। 
-गुरु नानक जीवन के अंतिम समय में करतारपुर बस गए थे। उन्होंने 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्याग दिया। उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। यही बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।