सार

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में पार्टियों के साथ उनके चुनाव चिन्ह भी सुर्खियों में है। ड्रिल मशीन, सीसीटीवी कैमरा, बुलडोजर, क्रिकेट बैट और कैरम बोर्ड जैसे अजीबो-गरीब चुनाव चिन्ह लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

मुंबई. महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में पार्टियों के साथ उनके चुनाव चिन्ह भी सुर्खियों में है। ड्रिल मशीन, सीसीटीवी कैमरा, बुलडोजर, क्रिकेट बैट और कैरम बोर्ड जैसे अजीबो-गरीब चुनाव चिन्ह लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

ये चुनाव चिन्ह स्वतंत्र और कम चर्चित पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों के हैं जो चुनाव में ज्यादा चर्चा में नहीं हैं। इन पार्टियों के उम्मीदवार अपने इन अनोखे चुनाव चिन्हों के कारण जनता के बीच कौतहूल का विषय हैं।

जबकि कुछ पार्टियों ने अपमे चुनाव चिन्ह हमेशा की तरह कप प्लेट, बैट और गैस सिलिंडर को चुना है। इसके अलावा बहुत से कैंडिडेट्स को ऐसे चुनाव चिन्ह मिले हैं जो अचंभित कर दें।

खाने पीने की चीजों में तरबूज, बिस्किट और नारियल है तो वहीं व्हीकल्स में हेलिकॉप्टर, जहाज और मुंबई में सबका पसंदीदा अॉटो रिक्शा भी है।

मुंबई के चंदावली से निर्दलीय उम्मीदवार  हर्,वर्धन पांडे को बाटर टैंक चुनाव चिन्ह मिला है, वहीं अनुशक्ति नगर से ही निर्दलीय उम्मीदवार कैंडिडेट अब्दुल बाग को चर्चित गेम लूडो चुनाव चिन्ह मिला है।

साल 1951-52 में जब पहले आम चुनाव हुए थे तब ज्यादातर चुनाव चिन्ह देश के लोगों के बीच सामान्य समझ रखने वाले थे जो उन्हें मन से जोड़ सके। इसमें कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ, भाजपा का, कमल का फूल, शिवसेना का धुनष और बाण जैसे चर्चित चुनाव चिन्ह रहे हैं।

चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के अनुसार, चुनाव आयोग चुनाव लड़ने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए चुनाव चिन्ह आवंटित करता है। 
यदि उम्मीदवार किसी मान्यता प्राप्त पार्टी से है, तो उसे पार्टी का सिंबल मिलता है। निर्दलीय या गैर मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवारों के लिए, उम्मीदवार को चुनाव आयोग से संपर्क करना होगा और उपलब्ध सूची से आवंटित चिन्ह लेना होता है।

हाल में लोकसभा चुनाव लड़ चुके निर्दलीय उम्मीदवार अनिल कोनी को चुनाव चिन्ह के रूप में स्टैथौस्कोप मिला है। कोनी का कहना है कि वह चुनाव चिन्ह को लेकर दुविधा में हैं।

उन्होंने कहा, इस चुनाव चिन्ह को जनता के बीच चर्चा का विषय बनाना बहुत मुश्किल है, यह उतना चर्चित नहीं है साथ ही मुझे नहीं पता इसे हिंदी और मराठी में क्या कहते हैं जो मैं इसे लेकर प्रचार करूं। चुनाव आयोग ने मात्र 15 दिन पहले यह चुनाव चिन्ह देकर मेरी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। 

निर्दलीय नेता सुरेंद्र झोन्डाले ने भी चुनाव चिन्हों को लेकर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा ऐसे चुनाव चिन्ह जो अधिक चर्चित न हों वह उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ा देते हैं, यह बिल्कुल अजीब चिन्ह हैं जो लोगों के बीच समझ तो क्या जानकरी में भी नहीं होते।  

पार्टी और अपनी इमेज को लेकर पहले से दुविधा झेल रहे उम्मीदवारों के लिए इन चुनाव चिन्हों को जनता के बीच चर्चित बनाना एक मुश्किल टास्क हो जाता है।