सार

Maharashtra Political crisis ढाई साल पहले शिवसेना को मुख्यमंत्री पद को लेकर अलग होने वाली बीजेपी, अचानक से बागी शिवसेना गुट को आसानी से मुख्यमंत्री की कुर्सी क्यों सौंप दी, समझिए inside story
 

मुंबई। कई दिनों से चल रही महाराष्ट्र की द ग्रेट पॉलिटिकल ड्रामा पर से गुरुवार को पर्दा उठ गया। सारे कयासों पर विराम चल चुका है और एकनाथ शिंदे को सीएम की कुर्सी सौंपने का ऐलान हो चुका है। एकनाथ शिंदे ने एक दर्जन से अधिक विधायकों के साथ शिवसेना से बगावत की थी, जो संख्या बढ़कर 40 से अधिक हो चुकी है। लेकिन सवाल यह कि जो बीजेपी पिछले ढ़ाई साल से सरकार बनाने को लगातार बेताब थी, वह अचानक से शिंदे को क्यों आगे कर दी जबकि बागी नेता एकनाथ शिंदे, पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनाने को राजी थे। ढाई साल पहले शिवसेना को मुख्यमंत्री पद को लेकर अलग होने वाली बीजेपी, अचानक से बागी शिवसेना गुट को आसानी से मुख्यमंत्री की कुर्सी क्यों सौंप दी, समझिए प्वाइंट्स में...

इसलिए बीजेपी ने सौंपी कुर्सी....

  • शिवसेना की बगावत के बाद बीजेपी पर सत्ता पाने की लालच का आरोप न लगे इसलिए उसने शिंदे पर दांव खेला।
  • बीजेपी ने 2.5 साल पहले शिवसेना से नाता इसलिए तोड़ा था कि वह मुख्यमंत्री पद उसे देने को राजी नहीं थी, लेकिन ठाकरे परिवार के खिलाफ शिंदे को खड़ा करने के लिए बीजेपी ने सीएम की कुर्सी सौंप दी।
  • शिवसेना से विधायकों ने बगावत तो कर दिया है लेकिन अभी भी उद्धव ठाकरे और उनके परिवार से महाराष्ट्र की जनता का लगाव है। बीजेपी का मुख्यमंत्री होने पर जनता की सहानुभूति संभव है शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे से जुड़ती। बीजेपी ऐसा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। क्योंकि बीएमसी चुनाव नजदीक है। 
  • ठाकरे परिवार के राजनीतिक एकाधिकार को महाराष्ट्र से खत्म करने के लिए शिंदे को मजबूत किया जाना बेहद आवश्यक था। जानकार मानते हैं कि ठाणे सहित कई क्षेत्रों में एकनाथ शिंदे हिंदुत्व का मुख्य चेहरा हैं। ऐसे में बीजेपी ने शिंदे को बागडोर सौंप, असली शिवसेना को साबित करना चाहा है। 
  • शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने से उद्धव ठाकरे वाले शिवसेना को नुकसान तो होगा ही उनके मराठा होने की वजह से एनसीपी के सीनियर लीडर शरद पवार को भी काफी डैमेज उठाना पड़ सकता है। शरद पवार बड़े मराठा नेताओं में शुमार हैं जिनको शिंदे से नुकसान उठाना पड़ सकता है। 

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, बीते दिनों 21 जून को शिवसेना के सीनियर लीडर एकनाथ शिंदे ने बगावत कर दी। वह कई दर्जन विधायकों के साथ पहले सूरत पहुंचे। सियासी पारा चढ़ने के बाद शिंदे अपने विधायकों के साथ असम पहुंचे। यहां वह एक फाइव स्टार होटल में 40 से अधिक विधायकों के साथ डेरा डाले हुए हैं। शिंदे के पास शिवसेना के 40 बागियों व दस अन्य का समर्थन होने का दावा किया जा रहा है। शिंदे ने 24 जून की रात में वडोदरा में अमित शाह व देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की है। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने की संभावनाओं पर वह और बीजेपी के नेताओं ने बातचीत की है। हालांकि, चुपके से देर रात में हुई मुलाकात के बाद शिंदे, स्पेशल प्लेन से वापस गुवाहाटी पहुंच गए।

उधर, शिंदे को पहले तो शिवसेना के नेताओं ने मनाने की कोशिश की लेकिन अब फ्लोर टेस्ट और कानूनी दांवपेंच चला जाने लगा है। दरअसल, शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे ने सारे बागियों को वापस आने और मिलकर फैसला करने का प्रस्ताव दिया। उद्धव ठाकरे की ओर से प्रवक्ता संजय राउत ने यह भी कहा कि अगर एनसीपी व कांग्रेस से बागी गुट चाहता है कि गठबंधन तोड़ा जाए तो विधायक आएं और उनके कहे अनुसार किया जाएगा। लेकिन सारे प्रस्तावों को दरकिनार कर जब बागी गुट बीजेपी के साथ सरकार बनाने का मंथन शुरू किया तो उद्धव गुट सख्त हो गया।

बुधवार को उद्धव गुट को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा। कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट रोकने से मना कर दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि, माना जा रहा था कि बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस सीएम पद की शपथ लेंगे। लेकिन गुरुवार को फडणवीस ने शीर्ष नेतृत्व के कहने पर एकनाथ शिंदे के सीएम पद की कुर्सी सौंपने का ऐलान कर दिया। 

इसके पहले राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पद से उद्धव ठाकरे का इस्तीफा मंजूर कर लिया। लिहाजा विधानसभा के विशेष सत्र को स्थगित कर दिया गया है। अब फ्लोर टेस्ट नहीं होगा। बता दें कि 11 बजे से विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होना था। इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फ्लोर टेस्ट कराने को हरी झंडी मिलने के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। वे खुद गाड़ी चलाकर राजभवन पहुंचे और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) को अपना इस्तीफ सौंप दिया। 

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