सार
1952 में चीता को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। यानी 70 साल भारत की जमीन पर चीता फिर से दिखेगा। 2009 से अफ्रीका से चीता लाने की कोशिशें जारी थीं। इस बीच IFS अधिकारी परवीन कस्वान (Parveen Kaswan) ने सोशल मीडिया (Social Media) पर एक वीडियो शेयर किया है।
ट्रेंडिंग न्यूज. मध्यप्रदेश के कुनो नेशनल पार्क(Kuno National Park-KNP) में दुनिया के पहले इंटर-कान्टिनेंटल लार्ज वाइल्ड कार्निवोर ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट के तहत अफ्रीकी देश नामीबिया से 8 चीते लाए गए हैं। बता दें कि 1952 में चीता को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। यानी 70 साल भारत की जमीन पर चीता फिर से दिखेगा। 2009 से अफ्रीका से चीता लाने की कोशिशें जारी थीं। इस बीच IFS अधिकारी परवीन कस्वान (Parveen Kaswan) ने सोशल मीडिया (Social Media) पर एक वीडियो शेयर किया है। इसमें लिखा कि जब भारत में चीता वापस आ रहे हैं, इस पर एक नजर डालते हैं कि किस तरह अंतिम समय में अपंग और पालतू शिकार किए गए। वीडियो 1939 में बनाया गया।
भारत में चीतों की कहानी
बता दें कि वर्ष, 1947 में देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में इसकी फोटो मौजूद है। तब से भारत में चीते पूरी तरह से विलुप्त हो गए थे। अब 75 साल बाद आठ चीतों को नामीबिया से लाया गया है।
इतिहास गवाह है कि 1556 से 1605 तक शासन करने वाले मुगल बादशाह अकबर के समय भारत में करीब 10 हजार चीते थे। अकबर खुद भी कई चीते पालता था। इनका इस्तेमाल शिकार के लिए किया जाता था।
20वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारत में चीतों की संख्या काफी कम रह गई थी। तब राजा-महाराजों ने अफ्रीका से चीता मंगवाना शुरू किया। 1918 से 1945 के बीच लगभग 200 चीते आयात किए गए थे।
यह 1608 की बात है। ओरछा के महाराजा राजा वीर सिंह देव के पास सफेद चीते होते थे। इनके शरीर पर काले की बजाय नीले धब्बे थे। जहांगीर ने अपनी किताब तुजुक-ए-जहांगीरी में इसका जिक्र किया है।
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के पूर्व उपाध्यक्ष दिव्य भानु सिंह की लिखी पुस्तक “द एंड ऑफ ए ट्रेल-द चीता इन इंडिया” में जिक्र है कि “मुगल बादशाह अकबर(1556 से 1605) के पास 1,000 चीते थे। वो इनसे काले हिरण और चिकारे का शिकार करवाते थे।
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