सार

अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले का हर ओर स्वागत हो रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज अशोक कुमार गांगुली ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। 

नई दिल्ली. अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले का हर ओर स्वागत हो रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज अशोक कुमार गांगुली ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि इस फैसले से उनके दिमाग में शक पैदा हुआ है। 

जस्टिस गांगुली रिटायर हो चुके हैं, इन्होंने ही 2012 में टू-जी स्पेक्ट्रम मामले में फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जस्टिस गांगुली ने कहा, अल्पसंख्यकों ने पीढ़ियों से देखा है कि वहां एक मस्जिद थी, जिसे तोड़ा गया। अब इस फैसले के मुताबिक, वहां एक मंदिर बनेगा। इस फैसले से मेरे मन में एक शक पैदा किया गया। संविधान के छात्र के तौर पर मुझे इसे स्वीकार करने में थोड़ी दिक्कत हुई। 

जब संविधान आया तो वहां मस्जिद थी- जस्टिस गांगुली
उन्होंने कहा, 1856-57 में भले ही नमाज पढ़ने के सबूत ना मिले हों लेकिन 1949 से यहां नमाज पढ़ी गई। यह सबूत है। जब से संविधान आया, यहां नमाज पढ़ी जा रही है। इस फैसले के बाद मुसलमान क्या सोचेगा। वहां एक मस्जिद थी। इसे तोड़ा गया। अब मंदिर बनाने की अनुमति दी गई। अब यहां मंदिर की अनुमति दी गई है। यह इस आधार पर दी गई है कि यह जमीन रामलला से जुड़ी थी। सदियों पहले जमीन पर मालिकान हक किसका था इसे सुप्रीम कोर्ट तय करेगा? क्या सुप्रीम कोर्ट इस बात को भूल गया कि जब संविधान आया तो वहां मस्जिद थी। 

कोर्ट ने विवादित जमीन का हक रामलला को दिया
अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने एकमत से सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित जमीन पर रामलला का मालिकाना हक बताया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अयोध्या में मंदिर बनाने का अधिकार दिया है। इसके अलावा मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन देने का आदेश दिया है। अदालत ने तीन महीने में ट्रस्ट बनाने के लिए भी कहा है।