सार

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस्लामिक कानून (शरिया) का हवाला देते हुए रविवार को घोषणा की कि इद्दत से जुड़े फैसले को पलटवाने के तरीके तलाशेगा।

All India Muslim Personal Law Board: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को इद्दत अवधि के बाद भरण-पोषण का दावा करने की अनुमति का फैसला दिया था। इसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस्लामिक कानून (शरिया) का हवाला देते हुए रविवार को घोषणा की कि वह फैसले को पलटवाने के तरीके तलाशेगा। AIMPLB मूल रूप से सुन्नी मौलवियों का एक कमिटी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया और कहा कि इसने मानवीय तर्क की अवहेलना की है। AIMPLB बोर्ड ने कहा "मानवीय तर्क के साथ यह अच्छा संकेत नहीं है कि पुरुषों को अपनी तलाकशुदा पत्नियों के भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए, भले ही शादी खत्म हो चुकी हो।

AIMPLB ने उत्तराखंड में पारित समान नागरिक संहिता (UCC) कानून को चुनौती देने का फैसला किया। इसके साथ ही सरकार से इजरायल के साथ रणनीतिक संबंधों को तोड़ने और शत्रुता को रोकने के लिए दबाव डालने का आग्रह किया। इसके अलावा पूजा स्थल एक्ट की बहाली का आह्वान किया। फ़िलिस्तीन संकट को मानवीय समस्या बताते हुए दुनिया के मुसलमानों से वास्तविक चिंता प्रदर्शित करने की अपील की, जो न केवल एक मानवीय कारण है बल्कि वफादारों की बुनियादी आवश्यकता भी है"।

AIMPLB ने बयान जारी कर क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को आदेश देते हुए कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 मुस्लिमों सहित सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है, जो उन्हें अपने पतियों से भरण-पोषण का दावा करने की अनुमति देती है। जस्टिस बी वी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने महिलाओं के हक में फैसला सुनाया था। इसके पीछे का मकसद ये है कि उन्हें आर्थिक रूप से समर्थन मिले। इसके खिलाफ AIMPLB ने अपने बयान में कहा कि यह फैसला इन महिलाओं के लिए और समस्याएं पैदा करेगा जो अपने दर्दनाक रिश्ते से सफलतापूर्वक उबर चुकी हैं"।

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