सार

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की आखिरी सूची से 19 लाख से ज्यादा लोग बाहर हो गए हैं। इन 19 लाख लोगों में देश के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार के लोग भी हैं। फखरुद्दीन के भतीजे ने कहा, लिस्ट से परिवार के 4 लोगों के नाम गायब हैं। फखरुद्दीन अली अहमद सन् 1974 से 1977 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। वे भारत के 5वें राष्ट्रपति थे। 

नई दिल्ली. असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की आखिरी सूची से 19 लाख से ज्यादा लोग बाहर हो गए हैं। इन 19 लाख लोगों में देश के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार के लोग भी हैं। फखरुद्दीन के भतीजे ने कहा, लिस्ट से परिवार के 4 लोगों के नाम गायब हैं। फखरुद्दीन अली अहमद सन् 1974 से 1977 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। वे भारत के 5वें राष्ट्रपति थे। 

- कामरूप जिले (असम) के रंगिया के रहने वाले पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के भाई लेफ्टिनेंट इकरामुद्दीन अली अहमद के बेटे जियाउद्दीन का परिवार पिछले साल तब सदमे में था, जब उन्हें जुलाई में जारी एनआरटी लिस्ट में अपना नाम नहीं मिला। 

- जियाउद्दीन अली अहमद ने कहा, "मैं भारत के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद का भतीजा हूं और एनआरसी में मेरा नाम गायब है,  हम इससे बहुत चिंतित हैं।" फखरुद्दीन अली अहमद सन् 1974 से 1977 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। वे भारत के 5वें राष्ट्रपति थे। 

- एनआरसी को लेकर असम में कई तरह की अफवाहें भी चल रही हैं। लेकिन सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि अगर किसी व्यक्ति का नाम फाइनल लिस्ट में शामिल नहीं किया जाता है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वह विदेशी घोषित हो जाएगा। जिस व्यक्ति का नाम लिस्ट में नहीं होगा, उसे फॉर्नर ट्रिब्यूनल में जाने का भी अधिकार है। 

क्या है एनआरसी और क्यों पड़ी जरूरत?


असम इकलौता राज्य है जहां एनआरसी बनाया जा रहा है। दरअसल, असम में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों को लेकर हमेशा से विवाद रहा है। ऐसा माना जाता है कि यहां करीब 50 लाख बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं। 80 के दशक में अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर छात्रों ने आंदोलन किया था। इसके बाद 1985 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और असम गण परिषद के बीच समझौता हुआ। इसमें कहा गया  24 मार्च 1971 तक जो लोग देश में घुसे उन्हें नागरिकता दी जाएगी, बाकी को देश से निर्वासित कर दिया जाएगा। 7 बार एनआरसी जारी करने की कोशिशें हुई। 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट के आदेश के बाद अब लिस्ट जारी हुई।