असम ने चाय बागान मज़दूरों को ज़मीन का मालिकाना हक देने और छह समुदायों को शेड्यूल्ड ट्राइब (ST) दर्जा दिलाने की दिशा में दो बड़े सुधार किए हैं। यह फैसले दशकों से लंबित मांगों को आगे बढ़ाते हैं और राज्य की सामाजिक-आर्थिक संरचना को बदल सकते हैं।
गुवाहाटी। असम में रहने वाले लाखों चाय बागान मज़दूरों के लिए यह हफ्ता बेहद खास साबित हुआ है। लंबे समय से चली आ रही उनकी मांग आखिरकार पूरी हो गई है। असम फ़िक्सेशन ऑफ़ सीलिंग ऑफ़ लैंड होल्डिंग (अमेंडमेंट) बिल, 2025 में बदलाव के बाद अब इन मज़दूरों को ज़मीन का मालिकाना हक मिलेगा। यह बदलाव सिर्फ़ एक अधिकार नहीं है, बल्कि दो सौ साल से ज़्यादा वक्त से चली आ रही एक बड़ी नाइंसाफ़ी का अंत माना जा रहा है। इस ऐतिहासिक फैसले के साथ एक और बड़ा कदम बढ़ा है-छह बड़े समुदायों के लिए शेड्यूल्ड ट्राइब (ST) दर्जे की मांग को आगे बढ़ाने का। सवाल अब यह है कि क्या ये समुदाय जल्द ही ST लिस्ट में शामिल हो पाएंगे?
क्या दो सदियों का इंतज़ार अब खत्म हुआ?
लाखों चाय मज़दूर अब ज़मीन के मालिक बन सकेंगे। विधानसभा में पास हुए इस बिल को BJP MLA मृणाल सैकिया ने बेहद भावुक बताया। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ़ एक कागज़ी फैसला नहीं है, बल्कि उन परिवारों के लिए नई उम्मीद है जो पीढ़ियों से बागानों में काम करते हुए बिना अपनी ज़मीन के रह गए।
ज़मीन मिलने से चाय मज़दूरों को कई फायदे मिलेंगे-
- अपना घर बनाने का हक
- परमानेंट रेजिडेंस सर्टिफिकेट (PRC)
- बैंक लोन
- सरकारी योजनाओं तक सीधी पहुंच
यह बदलाव चाय जनजाति समुदाय के लिए आर्थिक और सामाजिक रूप से बड़ा मोड़ साबित होगा।
क्या छह बड़े समुदायों को अब ST स्टेटस मिलेगा?
असम कैबिनेट ने अहोम, मोरन, मटक, चुटिया, कोच-राजबोंगशी और चाय जनजातियों को ST का दर्जा देने वाली रिपोर्ट को मंज़ूरी दे दी है। सरकार अब इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करेगी और फिर केंद्र सरकार को भेजेगी।
अगर यह प्रस्ताव संसद में पास हो जाता है, तो इन समुदायों को मिलने वाले बड़े लाभ होंगे-
- सरकारी नौकरियों में आरक्षण
- एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस में सीटें
- उम्र सीमा में छूट
- स्कॉलरशिप व खास वेलफेयर योजनाएं
- कॉम्पिटिटिव परीक्षाओं में राहत
- यह फैसला असम की सामाजिक संरचना पर बड़ा प्रभाव डालेगा।
क्या मौजूदा ST समुदायों को नुकसान होगा?
AIUDF MLA रफ़ीकुल इस्लाम ने कहा कि ST दर्जे की मांग लंबे समय से चल रही है और छह समुदाय इसके हकदार भी हैं। लेकिन उन्होंने साफ़ कहा कि मौजूदा ST समुदायों की चिंताएं भी पूरी तरह से सुनी जानी चाहिए। उनका कहना था कि “छह नए समुदायों को ST दर्जा मिलना चाहिए, लेकिन पुराने ST समूहों के अधिकारों की पूरी सुरक्षा होनी चाहिए। यह राजनीतिक मुद्दा नहीं बने, इससे दोनों पक्षों को फायदा होना चाहिए।” इस बयान से साफ़ है कि ST दर्जा देने का फैसला आसान नहीं है और इसके कई सामाजिक पहलू जुड़े हुए हैं।
क्या संसद में जल्द पास होगा ST का बिल?
राजनीतिक संकेत बताते हैं कि सरकार और विपक्ष दोनों इस मुद्दे पर सहमति की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन अंतिम फैसला संसद में होगा। आने वाले महीने यह तय करेंगे कि ये बदलाव जमीनी स्तर पर कब लागू होंगे।
क्या यह सुधार असम की राजनीति का बड़ा टर्निंग पॉइंट है?
चाय मज़दूरों के लिए ज़मीन का अधिकार और छह समुदायों को ST दर्जा दिलाने की प्रक्रिया-दोनों फैसले असम की राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दे सकते हैं। ये कदम दशकों से लंबित मांगों को पूरा करने की ओर बढ़ते हुए दिखाई देते हैं।
चाय बागान मज़दूरों को आखिर कैसे मिला ज़मीन का मालिकाना हक?
असम फ़िक्सेशन ऑफ़ सीलिंग ऑफ़ लैंड होल्डिंग (अमेंडमेंट) बिल, 2025 के बाद चाय मज़दूरों की ऐतिहासिक मांग पूरी हुई।
दो सदियों की बेज़मीन जिंदगी: यह फैसला क्यों अहम है?
टी ट्राइब्स को घर, PRC, बैंक लोन और सरकारी योजनाओं तक पहुंच का रास्ता खुला।
किन छह समुदायों काे मिलेगा ST दर्जा? असम कैबिनेट ने रिपोर्ट को दी मंज़ूरी
अहोम, मोरन, मटक, चुटिया, कोच-राजबोंगशी और टी ट्राइब्स ST सूची में शामिल होने के करीब।
राजनीतिक सहमति: सरकार और विपक्ष एक मंच पर कैसे आए?
AIUDF, BJP समेत सभी दलों ने सुधार को ‘ऐतिहासिक’ बताया, लेकिन मौजूदा ST समुदायों की चिंता जारी।
संसद में कब आएगा ST दर्जे का प्रस्ताव?
असम विधानसभा के बाद बिल केंद्र को भेजा जाएगा; मंजूरी का रास्ता कितना आसान है?
क्या होगा सामाजिक-आर्थिक बदलाव?
ST स्टेटस मिलने से शिक्षा, नौकरियों और स्किल डेवलपमेंट में बड़ी रियायतें मिलेंगी।
आगे क्या? सुधारों की टाइमलाइन और संभावित चुनौतियां
राज्य और केंद्र स्तर पर प्रक्रियाएं तय करेंगी कि बदलाव कब लागू होंगे।


