सार

सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के ट्रांसफर और कथित कैश बरामदगी पर सवाल उठाए। दिल्ली फायर चीफ के बयान के बाद मामला हुआ और भी रहस्यमय।

Delhi High Court Judge Cash Recovery: दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) के घर से 15 करोड़ रुपये की बरामदगी के दावे के बाद मामला अब और रहस्यमय हो गया है। अचानक से इस मामले में दिल्ली के फायर चीफ ने बड़ा दावा कर मामले में नया मोड़ ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी जज के ट्रांसफर का कैश केस से कनेक्शन से इनकार किया है। उधर, सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे (Harish Salve) ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम (Supreme Court Collegium) और न्यायिक जवाबदेही (Judicial Accountability) पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने सवाल पूछा है कि अगर कोई बरामदगी नहीं हुई तो जांच किस लिए हो रही है? साल्वे पहले से ही कोलेजियम सिस्टम के आलोचक रहे हैं।

दिल्ली फायर चीफ ने किया बड़ा खुलासा

इस पूरे विवाद की शुरुआत उस रिपोर्ट से हुई जिसमें दावा किया गया कि 14 मार्च (होली) के दिन दिल्ली के लुटियंस जोन में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से 15 करोड़ रुपये नकद बरामद हुए। लेकिन इस पर दिल्ली फायर सर्विस के चीफ अतुल गर्ग (Atul Garg) ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि फायर डिपार्टमेंट को वहां कोई कैश नहीं मिला।

फायर चीफ के इस बयान के बाद मामले ने नया मोड़ ले लिया है क्योंकि इससे पहले जस्टिस वर्मा के इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में ट्रांसफर की घोषणा हो चुकी थी।

हरीश साल्वे ने उठाए गंभीर सवाल

हरीश साल्वे ने कहा: मैं यह मानकर चल रहा था कि बरामदगी हुई है लेकिन अब फायर चीफ ने कहा कि कोई कैश नहीं मिला। अब सवाल यह उठता है कि जब कोई बरामदगी नहीं हुई तो जांच किस आधार पर हो रही है? अगर आरोप झूठा है तो यह एक गंभीर मामला है। अगर सच है तो यह और भी गंभीर मुद्दा है।

सुप्रीम कोर्ट का बयान

इस पूरे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक आधिकारिक बयान जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर किसी भी इन-हाउस जांच से संबंधित नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को इस मामले पर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।

कोलेजियम सिस्टम पर फिर छिड़ी बहस

हरीश साल्वे पहले भी जजों की नियुक्ति में कोलेजियम सिस्टम की पारदर्शिता पर सवाल उठा चुके हैं। अब इस मामले के बाद एक बार फिर भारत में न्यायिक जवाबदेही (Judicial Accountability in India) को लेकर बहस तेज हो गई है।