सार
असम में शनिवार को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) की फाइनल लिस्ट जारी कर दी गई। 3.11 करोड़ लोगों को नागरिकता के लिए वैध माना गया है। वहीं, 19,06,657 लोगों के नाम इसमें नहीं हैं। इस मामले पर बीजेपी विधायक सिलदित्य देव ने आरोप लगाया कि एनआरसी "हिंदुओं को बाहर रखने और मुसलमानों की मदद करने की साजिश" का हिस्सा है।
गुवाहाटी.असम में शनिवार को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) की फाइनल लिस्ट जारी कर दी गई। 3.11 करोड़ लोगों को नागरिकता के लिए वैध माना गया है। वहीं, 19,06,657 लोगों के नाम इसमें नहीं हैं। इस मामले पर बीजेपी विधायक सिलदित्य देव ने आरोप लगाया कि एनआरसी "हिंदुओं को बाहर रखने और मुसलमानों की मदद करने की साजिश" का हिस्सा है।
एनआरसी हिंदुओं के खिलाफ साजिश : बीजेपी विधायक
- एक मीडिया से बात करते हुए फायरब्रांड बीजेपी विधायक सिलदित्य देव ने आरोप लगाया कि एनआरसी "हिंदुओं को बाहर रखने और मुसलमानों की मदद करने की साजिश" का हिस्सा है। उन्होंने आरोप लगाया कि एनआरसी सॉफ्टवेयर को खराब कर दिया गया है। नागरिक सूची तैयार करने की प्रक्रिया भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। "लोग अधिकार की सुरक्षा के लिए सही तरीके से एनआरसी चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह हिंदुओं को बाहर रखने और मुस्लिम घुसपैठियों को नागरिकता देने की साजिश लगती है।"
- "जब असम समझौता हुआ तो अनुमान लगाया गया कि एक करोड़ से अधिक बांग्लादेशी हैं, अब वे कहां गए हैं?"
- असम एनआरसी सूची पर भाजपा के शीर्ष नेता हिमंत बिस्वा सरमा ने पहले कहा था कि उन्हें एनआरसी पर विश्वास नहीं है और इससे अवैध प्रवासियों को हटाने में मदद मिलेगी।
क्या है एनआरसी और क्यों पड़ी जरूरत?
असम इकलौता राज्य है जहां एनआरसी बनाया जा रहा है। दरअसल, असम में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों को लेकर हमेशा से विवाद रहा है। ऐसा माना जाता है कि यहां करीब 50 लाख बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं। 80 के दशक में अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर छात्रों ने आंदोलन किया था। इसके बाद 1985 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और असम गण परिषद के बीच समझौता हुआ। इसमें कहा गया 24 मार्च 1971 तक जो लोग देश में घुसे उन्हें नागरिकता दी जाएगी, बाकी को देश से निर्वासित कर दिया जाएगा। 7 बार एनआरसी जारी करने की कोशिशें हुई। 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट के आदेश के बाद अब लिस्ट जारी हुई।