सार

West Bengal Governor news : याचिका में कहा गया था कि राज्यपाल सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं और पश्चिम बंगाल सरकार को बदनाम कर रहे हैं। इसमें कहा गया है कि धनखड़ ने हमेशा कैबिनेट सलाह की अनदेखी की और कानून और व्यवस्था से लेकर स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक सभी मामलों पर टिपपणी की।

कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल (West Bengal)के राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) को हटाने की मांग वाली एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। वकील राम प्रसाद सरकार द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि राज्यपाल भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्य थे। चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने इस याचिका की सुनवाई की। 

राज्यपाल पर अधिकारियों को सीधे आदेश देने का आरोप 
याचिका में कहा गया था कि राज्यपाल सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं और पश्चिम बंगाल सरकार को बदनाम कर रहे हैं। इसमें कहा गया है कि धनखड़ ने हमेशा कैबिनेट सलाह की अनदेखी की और कानून और व्यवस्था से लेकर स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक सभी मामलों पर टिपपणी की। इसका राजनीतिक असर होता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि धनखड़ ने सीधे राज्य के अधिकारियों को निर्देशित किया, जो संविधान का उल्लंघन है। इसमें कहा गया कि न केवल पश्चिम बंगाल में, बल्कि तमिलनाडु, पंजाब, केरल की राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के इशारे पर नियुक्त राज्यपालों के माध्यम से परेशान किया जा रहा है।

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सरकार को बर्खास्त करने का डर 
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दावा किया कि राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 365 के तहत राज्य सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है। उसने आशंका जताई कि धनखड़ की मौजूदगी में सरकार को बर्खास्त करने का गेम प्लान तैयार किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि सरकार ने दावा किया कि उन्होंने केंद्र और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर धनखड़ को हटाने का अनुरोध किया था, फिर भी कोई कदम नहीं उठाया गया है। 

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भाजपा के राजनीतिक हितों का पूरा कर रहे धनखड़
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार के पास राज्यापालों की हटाने की शक्ति है, लेकिन धनखड़ को जानबूझकर नहीं हटाया गया, क्योंकि वे भाजपा के राजनीतिक हितों को पूरा कर रहे हैं। चूंकि राज्यपाल के कार्यकाल तय नहीं होता इसलिए उन्हें निष्पक्ष रूप से काम करना मुश्किल हो रहा है। संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत मनमानी, बेईमानी और अविश्वास के लिए चुनौती दिए जाने पर राज्यपाल की कार्रवाई न्यायिक जांच के दायरे में आती है। 

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