सार

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के पीक के दौरान हर तरफ ऐसा मंजर था कि लोगों की हिम्मत टूटने लगी थी। लेकिन जिन्होंने इस संक्रमण से लड़ाई जीती; अब वे लोगों को भी सतर्क कर रहे हैं।

भोपाल. यह कहानी मध्य प्रदेश के दतिया जिले के भर्रोली गांव की है, जो जिला मुख्यालय से करीब 26 किमी दूर है। यहां रोड है, लेकिन कोई बस नहीं चलती। लोगों को अपने साधनों से ही 8 किमी दूर एक अन्य गांव आना पड़ता है, जहां से बसें उपलब्ध हैं। ऐसे में जब कोई बीमार पड़ जाए, तो सोच सकते हैं कि क्या स्थिति होती होगी? बेशक गांव में कोरोना नहीं फैला था, लेकिन कुंभ से लौटे एक संत की संक्रमण से मौत के बाद कुछ लोग इसकी चपेट में आ गए। हरिनारायण गूजर भी इसमें से एक थे। कई बार उन्हें लगा कि जिंदगी बस खत्म; लेकिन पुरानी दिनचर्या ने ताकत दी और वे कोरोना से जंग जीत गए। Asianet news के लिए अमिताभ बुधौलिया ने जाना उनका अनुभव।

हर तरफ से बुरी खबरें आ रही थीं, हाथ-पैर कांपने लगे थे; फिर सोचा, बगैर लड़े क्या हार मानना
यह बात मई के मध्य की है। कोरोना संक्रमण अपने पीक पर था, लेकिन गांववाले इसकी खबरों से तो वाकिफ थे, लेकिन फिक्रमंद नहीं। मैं भी इससे अछूता नहीं था। मेरे गांव के रहने वाले एक संत हरिद्वार कुंभ से लौटकर गांव आए। वे कई सालों से राजस्थान में एक मंदिर थे महंत थे। गांव वे कई सालों में आते थे। हरिद्वार कुंभ को लेकर सबको पता था कि कोरोना के चलते उसे समय से पहले खत्म कर दिया गया था। महाराजजी गांव आए, तब उनकी तबीयत खराब थी। लेकिन सब यही कहते रहे कि थकान होगी। लेकिन जब अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी, तो सब परेशान हो उठे। इससे पहले कि कोई इंतजाम करके उन्हें शहर ले जा पाता, वे चल बसे। मालूम चला कि उन्हें कोरोना हुआ था। इसके बावजूद लोगों ने लापरवाही बरती और बगैर सुरक्षा इंतजामों के उनकी अंत्येष्टि में गए। हालांकि मैंने इस बार मास्क, सैनिटाइजेशन का ध्यान रखा। लेकिन दो गज की दूरी बनाने में नाकाम रहा। दो दिन बाद मुझे महसूस हुआ कि मैं भी संक्रमित हो चुका हूं। इस बीच चारों तरफ से बुरी-बुरी खबरें आ रही थीं। मेरी तबीयत खराब होती जा रही थी। हिम्मत जवाब देने लगी थी। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि प्राइवेट अस्पताल में भर्ती हो सकूं। वैसे कोशिश भी करता, तो अस्पतालों में जगह नहीं थी। हमने घर पर रहकर ही इलाज शुरू कराया। टेलिफोन के जरिये डॉक्टर से सलाह-मश्वरा करता रहा। कई बार मायूसी हुई, लेकिन फिर सोचा कि बगैर लड़े क्या हारना।

गांवों में लोग मॉस्क, सैनिटाइजेशन और 2 गज की दूरी का ध्यान नहीं रखते; इसी ने संक्रमण को न्यौता दिया
जैसे-तैसे मैं संक्रमण से उबर गया। उसके बाद मैंने तय किया कि कुछ भी हो गांववालों को गाइडलाइन के प्रति जागरूक अवश्य करूंगा। यह सच है कि गांवों तक कोरोना अपना अधिक प्रकोप नहीं दिखा सका, लेकिन फिर भी जो भी 3-4 मौतें हुईं, उससे सब डर गए थे। लेकिन जागरुकता के अभाव में वे संक्रमण को लेकर बेपरवाह थे। तब हमने कुछ लोगों के साथ मिलकर तय किया कि लोगों को समझाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।

कोरोना संक्रमण से डरने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन लापरवाही भी न बरतें
बीमारी के दौरान मैंने जो देखा-महसूस किया, उससे पता चला कि लोग संक्रमण के आगे घुटने टेक देते थे। जिन्होंने ऐसा किया, उनकी हालत अधिक खराब हुई या मौत तक हुई। जिन्होंने संघर्ष किया, हिम्मत नहीं छोड़ी, वो गंभीर हालत से भी बाहर निकल आए। मैंने बीमार के दौरान खान-पान और दवाइयों का पूरा ध्यान रखा। मैं पहले सही एक्सरसाइज करता आया हूं, इसका भी मुझे लाभ मिला। मैं यही कहना चाहूंगा कि इस भागमभाग जिंदगी में अपनी सेहत को लेकर सजग रहें। संक्रमण हो या कोई दूसरी बीमारी, अगर आप फिट हैं, तो इनसे लड़ जाएंगे। वर्ना हार जाएंगे।

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें मॉस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोड़ेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona