सार
कोरोनो से हुई मौतों से अधिक यहां जिंदगियों की कहानियां है। हजारों लोगों ने अपनी इच्छाशक्ति से कोरोना को हराया है। ऐसे ही ‘जिंदादिलों’ के इच्छाशक्ति से कोरोना पर विजय प्राप्त करने की कहानियां हम आपतक पहुंचा रहे हैं।
वाराणसी। कोविड की दूसरी लहर में यूपी का वाराणसी शहर सबसे अधिक सुर्खियों में रहा। वाराणसी अपने फक्कड़पन के लिए मशहूर है। लेकिन महामारी ने बनारस का यही रस छीन लिया था। उल्लास और मस्ती का शहर बनारस कोरोना की वजह से ‘शोक में सिसकने’ लगा था। जीवन पर मौत भारी पड़ रही थी। हालांकि, यह शहर अपने मनोबल और इच्छाशक्तियों के बल पर फिर पुराने रौ में आ रहा है। कोरोनो से हुई मौतों से अधिक यहां जिंदगियों की कहानियां है। हजारों लोगों ने अपनी इच्छाशक्ति से कोरोना को हराया है। ऐसे ही ‘जिंदादिलों’ के इच्छाशक्ति से कोरोना पर विजय प्राप्त करने की कहानियां हम आपतक पहुंचा रहे हैं।
Asianetnews Hindi के धीरेंद्र विक्रमादित्य गोपाल ने बनारस के डाॅ.अजय कृष्ण चतुर्वेदी से बात की है। कोरोना संक्रमण होने के बाद वह बेहद विपरीत परिस्थितियों से गुजरते हुए अपनी इच्छाशक्ति और परिवार के हौसले से अज्ञात शत्रु पर विजय प्राप्त कर चुके हैं। कोरोना वायरस को उन्होंने कैसे हराया, इसपर उन्होंने विस्तृत बातचीत की है।
लेकिन तीसरे दिन माथा ठनका, समझ गया कि संक्रमण हो चुका है
महामारी अपने चरम पर थी। भगवान शिव की नगरी में तबाही मची हुई थी। मस्तमौला बनारस सिसक रहा था। मातम का माहौल था। संगी-साथियों के जाने की खबरें आ रही थी। 8 अप्रैल को काम करते करते हरारत-थकान महसूस हुआ। काम करना बंद किया। खाने की इच्छा नहीं हुई। एक दवा ली और सो गया। अगले दिन भी यही हाल रहा। उस दिन भी दवा की आधी गोली खाकर सो गया। लेकिन तीसरे दिन माथा ठनका। समझ गया कि संक्रमण हो चुका है। बनारस में रामकृष्ण मिशन अस्पताल के सामने मेरे परिचित विनोद त्रिपाठी की दवा की दूकान है। उनके पास गया। उन्होंने तत्काल तीन दवाइयां दी और कहा तुरंत घर जाइए। सलाह दी कि तत्काल क्वारंटीन हो जाएं। गर्म पानी पीजीए। गरारा करिए और भाप लेते रहिए। घर आया। हरिद्वार मेडिकल काॅलेज में कार्यरत अपने साल डाॅ. संजय त्रिपाठी को फोन किया। उन्होंने दवाइयों के बारे में पूछा और उसे ही खाते रहने की सलाह दी।
अगले दिन बाथरुम से निकला तो चक्कर आया और बेहोश हो गया
अगली सुबह उठा। दवा खाने लगा था। नीचे बाथरुम गया और जब निकला तो आंखों के आगे अंधेरा छा गया। चक्कर आने लगा तो वहीं सीढ़ियों पर बैठ गया। बेटा दौड़ते हुए मेरे पास जबतक पहुंचा तबतक मैं बेहोश हो गया। दो-तीन मिनट में होश आया। एक दो मित्र-परिचित आ गए। बीपी-शुगर चेक किया तो दोनों लो था। डाॅक्टर ने बीपी की दवा तुरंत बंद करने की सलाह दी। कमजोरी बढ़ रही थी।
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रात को करीब दो बजे अचानक लगा सबकुछ खत्म हो गया अब
दवा खा रहा था। कमजोरी की वजह से उठना-बैठना मुश्किल होने लगा। एक दिन रात में करीब दो बजे अचानक से महसूस हुआ कि सबकुछ खत्म हो रहा। दिल बैठा जा रहा था। पत्नी भी पास आ गईं। बच्चे भी दौड़े पहुंचे। मन में अचानक तमाम ख्याल आने लगे। लेकिन कुछ ही पल में खुद को समेटा। ईश्वर को याद किया। फिर खुद ही अपना मनोबल बढ़ाते हुए सोचने लगा कि घर-परिवार की बहुत सी जिम्मेदारियां हैं। अभी तो बहुत कुछ करना है। बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पांच-सात मिनट में ही बेचैनी और बढ़ी तो कमरे से निकलकर बालकनी में किसी तरह गया। काफी देर तक वहां रहा। थोड़ा आराम मिला तो फिर वापस आया। बिस्तर पर पहुंचा तो कुछ देर में फिर नींद आ गई।
सुबह नींद खुली तो पत्नी-दोनों बच्चे पास बैठे रतजगा करते मिले
सुबह करीब साढ़े सात बजे नींद खुली। थोड़ा बेहतर फील हो रहा था। आंखे खोलकर देखा तो पत्नी-बेटा-बेटी सब कमरे में ही बैठे हैं। ये लोग रातभर जगे रहे और मैं नींद लेता रहा। एक सप्ताह तक बिस्तर से उठने की स्थिति नहीं रहीं।
आक्सीजन लेवल 90 के नीचे गया लेकिन घर पर ही रहने की ठानी
परेशानी कई बार बढ़ जाती थी। आक्सीजन लेवल भी कई बार 85-86 तक गया लेकिन मैंने ठान ली थी कि घर पर ही सारे कोविड प्रोटोकाॅल का पालन कर स्वस्थ होना है।
सोशल मीडिया और डर पैदा कर रहा था
हर ओर हाहाकार मचा था। खुद पल-पल बीतने पर ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था। सोशल मीडिया सबसे अधिक भय मन में भर रहा था। मन पूरी तरह से डिप्रेशन में पहुंच जा रहा था। दवाई का असर सोशल मीडिया बेअसर कर रहा था। खौफ और डर के साए में एक दिन फेसबुक पर लिखा कि एक-एक सांस के लिए लोग संघर्ष कर रहे कृपया डराए नहीं।
मेरी पोस्ट को मेरे परिचित और बीएचयू के कार्डियोलाॅजिस्ट डाॅ.ओमशंकर ने पढ़ा तो तत्काल फोन किया। फिर उन्होंने भी पूरा स्टेटस जानने के बाद कुछ और दवाइयां लेने को कहा और खुद इलाज शुरू कर दिया।
डाॅक्टर्स की सलाह का पूर्ण पालन किया तो ठीक होने लगा
16 अप्रैल के बाद थोड़ा सुधार शुरू हुआ। 27 अप्रैल तक करीब-करीब मैं ठीक हो गया। लेकिन कमजोरी जस की तस बनी रही। दवा समय से लेना, समय से खाना और ईश्वर की अराधना भी करता रहा।
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साथियों के जाने से मन कांप उठता
इसी बीच साथ काम करने वाले एक-एक कर तीन साथियों के जाने की सूचनाएं मिली। सीनियर जर्नलिस्ट अजय शंकर तिवारी, बद्रीविशाल, रामेंद्र सिंह। तीनों चले गए। इनके जाने की सूचनाओं से बार-बार दिल बैठा जाता, मन कांप उठता। लेकिन कुछ परिचित और विशेषकर पत्नी-बच्चों ने मुझे डिप्रेस नहीं होने दिया।
मेरा पुनर्जन्म हुआ है पत्नी-बच्चों की वजह से
मैं एक-एक दिन हार रहा था। लेकिन पत्नी और दोनों बच्चे मेरा संबल बने हुए थे। कमजोरी की वजह से चल-फिर नहीं सकता था। लेकिन धीमी आवाज को भी वह सुन लेते। मेरी एक आवाज पर झट से आ जाते। हर समय मेरा ख्याल रखते। मनोबल को कभी टूटने नहीं देते। अनवरत बिना थके ये तीनों सदस्य मेरी सेवा करते रहे। कमजोरी की हालत में भी कई मंत्र पढ़ता, हनुमान चालीसा पढ़ता था। पढ़ते-पढ़ते कई बार कांसस खो बैठता तो पत्नी मुझे संभालती। मैं कोविड को हरा पाया हूं तो यह एक तरह से यह मेरा पुनर्जन्म हुआ है और यह पुनर्जन्म मेरी परिवार की देन है। मुझे दवा देकर तत्काल रोग को पहचानने वाले विनोद त्रिपाठी, मेरे साले डाॅ.संजय त्रिपाठी, डाॅ. विजय त्रिपाठी, योगेंद्र नारायण शर्मा, डाॅ.ओम शंकर का विशेष योगदान रहा।
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सोशल मीडिया से दूर रहें और अकेलापन न महसूस होने दें
कोविड मरीजों की बेहतर रिकवरी अस्पतालों में इसलिए नहीं हो पाती है क्योंकि अस्पतालों में उनकी देखभाल वाला कोई नहीं रहता। कोई जरूरत हो तो कोई सुनने वाला नहीं। अकेलापन और घुटन उसे और परेशान करता है। आईसोलेशन का मतलब यह नहीं कि कोई पूछे ही नहीं। परिवार अगर संबल बने तो आप किसी भी परिस्थिति से उबर सकते हैं। परिवार में रहने का फायदा होता है कि वह आपनी छोटी-छोटी जरूरतों को समझते हैं। इससे कंफिडेंस लेवल बढ़ता है। दूसरा सोशल मीडिया से जितना हो सके व्यक्ति दूर रहे तो वह आपने मेंटल स्ट्रेस को कम रखेगा। सोशल मीडिया से केवल खौफ पैदा हो रहा है।
Asianet News का विनम्र अनुरोधः आईए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona