सार
ये हैं कश्मीर घाटी के हंदवाड़ा के रहने वाले परवेज अहमद (Courage and passion story)। जब ये सिर्फ 6 महीने के थे, तब आग लगने की घटना में अपना एक पैर खो बैठे। अब इनकी उम्र 14 साल है। ये 9th में पढ़ते हैं। डॉक्टर बनना चाहते हैं, इसलिए तमाम तकलीफों को किनारे रखकर एक पैर पर करीब 2 किमी चलकर स्कूल पहुंचते हैं। इनकी कहानी भी बिहार के जमुई की रहने वाली 10 साल की सीमा की तरह है।
जम्मू. मंजिलें पैरों से नहीं, हौसलों से मिलती हैं। इनसे मिलिए। ये हैं उत्तरी कश्मीर के हंदवाड़ा उप-जिले के एक सुदूर गांव नौगाम के रहने वाले परवेज अहमद। जब ये महज 6 साल के थे, तब आग लगने की घटना में अपना बायां( left leg) पैर खो दिया। अब इनकी उम्र 14 साल है। ये 9th में पढ़ते हैं। डॉक्टर बनना चाहते हैं, इसलिए तमाम तकलीफों को किनारे रखकर एक पैर पर करीब 2 किमी चलकर स्कूल पहुंचते हैं। इनकी कहानी भी बिहार के जमुई की रहने वाली 10 साल की सीमा की तरह है।
जर्जर पहाड़ियों पर रोज चलकर स्कूल पहुंचते हैं
परवेज के पिता मजदूर हैं। परवेज बताते हैं कि वे रोजाना स्कूल पहुंचने के लिए करीब दो किलोमीटर पैदल(एक पैर पर) चलते हैं। वे सुबह 9 बजे स्कूल के लिए निकलते हैं। चूंकि यह पहाड़ी इलाका है और सड़क बेहद जर्जर, इसलिए 2 किमी की दूरी तय करने में अकसर 1 घंटा लग जाता है। परवेज कहते हैं कि घर वापस लौटते समय अकसर एक पैर पर चलने में भारी कठिनाई होती है, लेकिन उन्हें डॉक्टर बनना है, इसलिए हार नहीं मानेंगे। परवेज की स्टोरी लोकल मीडिया ग्रेटर कश्मीर ने प्रमुखता से पब्लिश की है।
उम्मीद कभी नहीं छोड़ी
परवेज कहते हैं कि कई दोस्त उनसे बाद में घर से निकलते हैं और पहले स्कूल पहुंच जाते हैं। यह देखकर कभी-कभी बुरा लगता है, लेकिन वे निराश नहीं होते। उम्मीद नहीं छोड़ते। परवेज बाकी स्टूडेंट्स के साथ पढ़ाई-लिखाई में कॉम्पटीशन करने में भी पीछे नहीं हैं। परवेज वॉलीबॉल और क्रिकेट का प्लेयर है। वे जोश से कहते हैं कि अगर उन्हें सही कोचिंग मिल जाए, तो बड़े प्लेटफॉर्म पर बेहतर प्रदर्शन की क्षमता रखते हैं। परवेज के टीचर खुर्शीद अहमद कहते हैं कि परवेज अपनी क्लास के बाकी स्टूडेंट्स के साथ खेलता है। वो दोनों ही खेलों में अपना ऑलराउंडर प्रदर्शन देने पूरी मेहनत करता है।
आर्थिक तंगी के कारण इलाज नहीं करा सके पिता
परवेज की कहानी बिहार के जमुई जिले के फतेहपुर ब्लॉक की रहने वाली सीमा कुमारी से मिलती-जुलती है, जिसका भी बायां पैर 2 साल पहले एक हादसे में कट गया था। दोनों के परिजन गरीबी के कारण इलाज कराने में अक्षम थे। हालांकि सीमा का मामला मीडिया में आने के बाद बिहार सरकार के एजुकेशन डिपार्टमेंट ने उसके लिए आर्टिफिशियल पैर और ट्राइसाइकिल की व्यवस्था कर दी है। लेकिन परवेज को अभी इसका इंतजार है। परवेज के पिता गुलाम अहमद हाजम ने मायूसी से कहा कि आर्थिक तंगी के कारण वह अपने बेटे के इलाज का खर्च नहीं उठा सकते। परवेज को कृत्रिम पैर दिलाने से पहले एक सर्जरी से गुजरना पड़ेगा और सर्जरी के लिए उनके पास पैसा नहीं है। उन्होंने कहा कि कृत्रिम अंग के लिए कई बार संबंधित विभाग से संपर्क किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब वे मीडिया के जरिये अपनी बात उपराज्यपाल मनोज सिन्हा( Lieutenant Governor Manoj Sinha) तक पहुंचा रहे हैं।
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