सार
कोरोना वायरस (Covid 19) की दूसरी लहर से पहले देश में 16 जनवरी 2021 से वैक्सीनेशन (Vaccination) शुरू किया गया था। तब से अब तक 8 वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति मिल चुकी है। दो वैक्सीन कोवोवैक्स और कोर्बोवैक्स की अनुमति मंगलवार को ही मिली। इसके अलावा कोविड रोधी टैबलेट मोलनुपिराविर के इस्तेमाल को भी हरी झंडी मिली है।
नई दिल्ली। मंगलवार को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) की कोरोना वैक्सीन ‘कोवोवैक्स’ और ‘बायोलॉजिकल ई’ कंपनी की ‘कोर्बेवैक्स’ को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी। CDSCO ने कोविड-19 रोधी टैबलेट ‘मोलनुपिराविर’को भी इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमित दी है। अब तक देश में कोविड रोधी 8 वैक्सीन को आपात इस्तेमाल की अनुमति मिल चुकी है। जानें, कौन-कौन सी कंपनी बना रही ये वैक्सीन और यह कितनी कारगर पाई गई हैं।
देश में ऑक्सफोर्ड - एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड के सबसे ज्यादा डोज दिए गए हैं। ट्रायल के दौरान पाया गया था कि यह प्रभावी तो है ही, इसे लेने से कोई गंभीर साइड इफेक्ट भी देखने को नहीं मिले। हालांकि, कुछ लोगों को इसे लगने के बाद गले में दर्द, थकान और हल्का बुखार हुआ।
भारत बायोटेक की इस वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के दौरान बड़े विवाद सामने आए। भ्रामक जानकारियां फैलाई गईं, लेकिन वैक्सीन लगना शुरू होने के बाद से इसमें किसी तरह की कोई दिक्कत देखने को नहीं मिली। अब यही वैक्सीन 15 से 18 साल के बच्चों को भी लगाई जाएगी।
भारत में डॉक्टर रेड्डीज इस वैक्सीन का निर्माण कर रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वैक्सीन की मार्केटिंग करने वाले रूसी कंपनी रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड यानी आरडीआईएफ ने भारत में स्पुतनिक V की 75 करोड़ से अधिक डोज बनाने के लिए करार किया है। हालांकि इसकी उपलब्धता कम होने के चलते भारत में इसके दूसरे डोज के लिए भी लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है। इस वैक्सीन के पहले और दूसरे डोज में अलग-अलग वर्जन इस्तेमाल होते हैं।
जायडस कैडिला की कोरोना वैक्सीन ZyCoV-D के तीन चरण के ट्रायल हो चुके हैं। 28 हजार लोगों पर इसका ट्रायल किया गया है। खास बात ये है कि ये बच्चों में असरदार पाई गई है। इसे डेल्टा वैरिएंट पर भी असरदार बताया जाता है।
अमेरिकी सरकार इस वैक्सीन की कुछ निश्चित डोज कोवैक्स प्रोग्राम के तहत भारत सरकार को देगी। इस वैक्सीन को अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने बनाया है और भारत में सिप्ला कंपनी से साझेदारी की है। हालांकि, भारत में इसका इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसके यहां ट्रायल की जरूरत भी नहीं है।
भारत में जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं हुआ है। जॉनसन एंड जॉनसन का दावा है कि उसकी वैक्सीन के खिलाफ लंबे समय तक दोहरी सुरक्षा देती है। यह वैक्सीन लेने वाले लोगों में कम से कम 8 महीने तक इम्यून रिस्पॉन्स पाया गया है।
कोर्बोवैक्स भारत की पहली स्वदेशी रूप से विकसित आरबीडी प्रोटीन सब-यूनिट कोविड-19 रोधी वैक्सीन है। इस हैदराबाद की ‘बायोलॉजिकल ई’ कंपनी ने बनाया है।
सीरम इंस्टीट्यूट सरकार को दो बार कोवोवैक्स की मंजूरी के लिए आवेदन भेज चुकी थी। इसका पहला आवेदन अक्टूबर में दिया गया था। समीक्षा करने वाली CDSCO की विशेषज्ञ समिति ने काफी अध्ययन के बाद ‘कोवोवैक्स’ के उपयोग की सिफारिश की थी।
कोविड-19 रोधी ‘मोलनुपिराविर’ टैबलेट का निर्माण देश में 13 कंपिनयां करेंगी। आपात स्थिति में इसके नियंत्रित उपयोग की मंजूरी मिली है। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने हाल ही में ‘मर्क’ कंपनी की कोविड-19 रोधी ‘मोलनुपिराविर’ टैबलेट को अनुमति दी है। यह उन मरीजों पर इस्तेमाल की जा रही है, जिन्हें इस बीमारी से खतरा अधिक है। इससे पहले, नवंबर में ब्रिटेन ने ‘मर्क’ की दवा को सशर्त अधिकृत किया गया था, जो कोविड-19 के सफलतापूर्वक इलाज के लिए बनाई गई पहली गोली है। क्वारेंटाइन में रहने वाले मामूली या हल्के लक्षण वाले मरीजों को इस गोली को पांच दिन तक दिन में दो बार लेना होगा।
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