सार
दो साल पहले आज ही के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की थी। अगले दिन से सड़कों पर सन्नाटा पसर गया था।
नई दिल्ली। आज से ठीक दो साल पहले देशभर में लॉकडाउन (Lockdown in India) लगा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने देर शाम राष्ट्र को संबोधित किया था और लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी। मोदी ने कहा था कि 24 मार्च की आधी रात से राष्ट्र और उसके प्रत्येक नागरिक को कोरोनावायरस (Corona Pandemic) से बचाने के लिए पूरे देश में पूर्ण तालाबंदी होगी। घर से बाहर निकलना प्रतिबंधित रहेगा। कुछ मायनों में यह कर्फ्यू है।
यह पहली बार हो रहा था कि एक अरब से अधिक आबादी वाला देश पूरी तरह बंद हो जाए। कोरोना देश में फैलना शुरू हो गया था। इससे पहले चीन से आ रही भयावह तस्वीरों ने भारतीयों के मन में कोरोना के प्रति खौफ भर दिया था। लॉकडाउन जैसे सख्त फैसले की आशंका लोगों को थी, लेकिन जिस तरह शाम को पीएम ने घोषणा की लोग हैरान रह गए।
राशन खरीदने दुकानों की ओर भागे थे लोग
लोग दाल, चावल, तेल, आटा और सब्जी जैसी जरूरी चीजों के लिए दुकानों की ओर भागे। किराना दुकानों पर भारी भीड़ उमड़ी। अगले दिन से पूरा देश बंद हो गया। कार, बाइक और अन्य वाहनों से जाम रहने वाली सड़कें सुनसान हो गईं। सुबह से शाम तक सड़कों पर फैला सन्नाटा लोगों के दिलों में खौफ भर देता था। 21 दिनों का कठिन लॉकडाउन था, जिसे कई बार बढ़ाकर 68 दिनों तक किया गया। इसके बाद प्रतिबंधों में ढील दी गई।
भारत दुनिया भर के लगभग हर दूसरे देश की तरह एक ऐसे खतरे पर प्रतिक्रिया दे रहा था, जिसे पूरी तरह से समझा नहीं गया था। इससे लड़ने के लिए सभी उपकरण गायब थे। कोरोना वायरस के प्रकोप को कम करने के लिए उस वक्त लॉकडाउन का फैसला करना पड़ा। भारत शायद एकमात्र प्रमुख देश था, जिसने वायरस के फैलने से पहले ही लॉकडाउन कर दिया था। प्रशासन ने विशेषज्ञों की राय का हवाला दिया और कहा कि “कोरोना संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने” के लिए 21 दिन पर्याप्त हो सकते हैं।
आज दुनिया भर में दो साल की विभिन्न लहरों और प्रकार के लॉकडाउन के बाद, केवल चीन ही इस तरह के दृष्टिकोण का पालन कर रहा है, जिसे अब "जीरो कोविड" के रूप में बताया जाता है। इस रणनीति में पूर्ण शटडाउन किया जाता है जब तक कि संक्रमण के मामलों को शून्य तक कम नहीं किया जाए।
लॉकडाउन का आधार
लॉकडाउन की अवधारणा 1918 में शुरू हुई थी। उस समय दुनिया में स्पैनिश फ्लू महामारी फैली थी। 2020 की तरह उस समय भी देशों ने लोगों के सामाजिक संपर्क को कम करने की कोशिश की थी। वायरस के फैलने की रफ्तार कम करने के लिए स्कूलों, पूजा स्थलों और बारों को बंद कर दिया गया था। अनिवार्य रूस से चेहरा ढंकने के लिए भी कहा गया था। 2002 से 2004 के बीच सार्स और इबोला महामारी फैलने पर उन समुदायों और भौगोलिक क्षेत्रों को बंद कर दिया गया था जहां वायरस फैले थे।
कोरोना वायरस सबसे पहले चीन के वुहान में फैला था। वहां भी महामारी को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया था। यह महामारी जब दूसरे देशों में फैली तो वहां भी लॉकडाउन के अलावा कोई और उपाय नहीं था। क्योंकि तब तक कोरोना से लड़ने के लिए कोई और उपाय उपलब्ध नहीं था।
भारत सरकार ने महामारी से लोगों को सचेत करने के लिए व्यापक अभियान चलाया। 25 मार्च से 30 जून के बीच प्रधानमंत्री ने छह बार राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने लोगों को कोविड-उपयुक्त व्यवहार के बारे में अनुशासित रहने का आह्वान किया। एक साल बाद उन्होंने 2021 की गर्मियों में वैक्सीन की बढ़ती झिझक को दूर करने के लिए इसी तरह की अपील की।