सार
डीआरडीओ (DRDO) ने बुधवार की शाम ओडिशा के डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से नई पीढ़ी के बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि प्राइम का सफल टेस्ट किया। इस मिसाइल का रेंज 1-2 हजार किलोमीटर है।
नई दिल्ली। डीआरडीओ (DRDO) ने परमाणु हमला करने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि प्राइम का सफल टेस्ट किया है। यह नए जनरेशन का मिसाइल है। अग्नि मिसाइल पहले से सेना के पास है। बुधवार शाम करीब 7:30 बजे मिसाइल को ओडिशा के डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से टेस्ट किया गया।
डीआरडीओ ने जानकारी दी है कि टेस्ट के दौरान मिसाइल ने सभी उद्देश्यों का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया। इससे पहले अग्नि प्राइम का तीन बार सफल टेस्ट हुआ है। पहली बार यूजर (स्ट्रेटेजिक कमांड फोर्स) द्वारा रात में इस मिसाइल को टेस्ट किया गया। दरअसल, स्ट्रेटेजिक कमांड फोर्स भारतीय सेना का हिस्सा है। भारत के परमाणु हथियारों का कंट्रोल स्ट्रेटेजिक कमांड फोर्स के पास है। अग्नि प्राइम परमाणु हमला कर सकता है। इसलिए इसका कंट्रोल भी स्ट्रेटेजिक कमांड फोर्स के हाथ में है।
टेस्ट के दौरान मिसाइल की सटीकता, रेंज, स्पीड और अन्य खासियत की जांच की गई। मिसाइल के पूरे फ्लाइट पर नजर रखने के लिए दो डाउनरेंज जहाजों, रडार, टेलीमेट्री और इलेक्ट्रो ऑप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम जैसे इंस्ट्रूमेंटेशन तैनात किए गए थे।
अग्नि प्राइम मिसाइल की खास बातें
अग्नि प्राइम मिसाइल का इस्तेमाल परमाणु हमला के साथ है गैर परमाणु हमला करने में भी हो सकता है। इसका रेंज 1000-2000 किलोमीटर है। इतने रेंज के साथ यह मिसाइल पाकिस्तान के सभी महत्वपूर्ण सामरिक ठिकानों पर हमला कर सकता है। अग्नि प्राइम अग्नि सीरीज की दूसरी मिसाइलों से हल्का और छोटा है। इसका वजन अग्नि तीन की तुलना में आधा है। इसका वजन 11 टन है।
अग्नि प्राइम को फायर करने के लिए किया जा सकता है तेजी से तैयार
अग्नि प्राइम में नया कम्पोजिट प्रोपल्शन सिस्टम लगा है। इसमें नई पीढ़ी के गाइडेंस और कंट्रोल मैकेनिज्म लगाए गए हैं। इससे मिसाइल की सटीकता अच्छी हुई है। अग्नि प्राइम को कैनिस्टर में रखने की व्यवस्था की गई है। इसके चलते इसे तेजी से मोर्चे पर तैनात करना और फायर करने के लिए तैयार करना संभव हो गया है। इस मिसाइल को रेल या रोड से लॉन्च किया जा सकता है। ट्रक पर लोड होने की क्षमता से इस मिसाइल को तेजी से कहीं भी ले जाया जा सकता है।
अग्नि प्राइम में दो स्टेज वाला रॉकेट इंजन है। इसमें ठोस इंधन का इस्तेमाल होता है। ठोस इंधन वाले मिसाइल को तरल इंधन वाले मिसाइल की तुलना में जल्द लॉन्च करने के लिए तैयार किया जा सकता है।