सार
मसला छोटा हो या बड़ा...मीडिया रिपोर्टिंग को लेकर हमेशा संस्थाओं में नाराजगी बनी रहती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की नसीहत के बाद चुनाव आयोग ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया कि मीडिया रिपोर्टिंग पर बैन नहीं होना चाहिए। चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट जारी किया है। इसमें स्पष्ट किया है कि लोकतंत्र की मजबूती में मीडिया की सकारात्मक भूमिका है।
नई दिल्ली. कोरोना संकट के बीच पांच राज्यों-पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में हुए विधानसभा चुनाव काफी हंगामे भरे रहे। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नसीहत दी थी कि मीडिया को रिपोर्टिंग से नहीं रोका जाना चाहिए। इसे चुनाव आयोग ने स्वीकारा और बुधवार को एक प्रेस नोट जारी करके कहा कि चुनाव आयोग और उसके प्रत्येक सदस्य भूतकाल और वर्तमान में देश में चुनावी लोकतंत्र को मजबूत करने में और सभी चुनावों के संचालन में मीडिया की भूमिका सकारात्मक रही है। वो इसे स्वीकार करता है। इसलिए आयोग एकमत है कि मीडिया रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई की रिपोर्टिंग रोकने से किया था मना
बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चुनाव आयोग से दो टूक कहा था कि हाईकोर्ट की सुनवाई के दौरान जजों द्वारा दी जाने वाली टिप्पणी की रिपोर्टिंग करने से मीडिया को नहीं रोका जा सकता है। दरअसल, कोरोना संकट के बीच विधानसभा चुनाव कराने जाने के मामले में सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई थी। साथ ही टिप्पणी की थी कि चुनाव आयोग के कारण पांच राज्यों में संक्रमण फैला। ऐसे में क्यों न अफसरों पर हत्या का केस दर्ज हो। मीडिया ने इस लाइन को प्रमुखता से पब्लिश किया था। चुनाव आयोग ने इस पर आपत्ति ली थी। वो हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया था।चुनाव आयोग ने कहा था कि पिछले कुछ समय से कोर्ट की खबरों को दिखाया जा रहा है। खासकर चुनाव आयोग से जुड़ीं खबरें, जो दिखाई जा रही हैं, उससे संवैधानिक संस्था पर सवाल खड़े होने लगे हैं। इससे चुनाव आयोग की छवि को धक्का पहुंचा है।