सार

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 'एक देश, एक चुनाव' प्रणाली की वकालत की है। उन्होंने कहा कि इससे देश के विकास को गति मिलेगी और शिक्षकों पर चुनाव कार्य का बोझ कम होगा। उन्होंने प्रकृति केंद्रित विकास पर भी ज़ोर दिया।

कलबुर्गी : एक देश, एक चुनाव प्रणाली लागू होने से भारत देश के विकास को गति मिलेगी, ऐसा पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा। कलबुर्गी जिले के सेडम के पास बीरनहल्ली के 240 एकड़ विशाल भूभाग में भव्य रूप से निर्मित प्रकृति नगर में बुधवार से 9 दिनों तक चलने वाले भारत संस्कृति उत्सव-7 और कोट्टल स्वर्ण जयंती समारोह का दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ करते हुए उन्होंने यह बात कही।

वन नेशन, वन इलेक्शन प्रणाली हमारे देश के लिए आवश्यक है। यहाँ की कई बातों का अध्ययन करके ही अपने नेतृत्व में 18,524 पृष्ठों की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है, ऐसा कहते हुए कोविंद ने कहा कि लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने चाहिए, यही इस योजना का मूल उद्देश्य है। इससे काफी सुधार संभव है।

देश में अभी चुनाव कार्यों के लिए शिक्षकों का उपयोग किया जाता है। बार-बार चुनाव कार्य में शिक्षकों के इस्तेमाल से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। बच्चे ठीक से नहीं सीख पा रहे हैं, ऐसी शिकायतें हम खुद करते हैं। चुनाव प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन होने पर यह समस्या ही नहीं रहेगी।

लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव कराने चाहिए। उसके बाद 100 दिनों में स्थानीय संस्थाओं के चुनाव पूरे कर लेने चाहिए। इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय के चार सेवानिवृत्त न्यायाधीशों समेत कई क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने सहमति जताई है। देशभर में इस बारे में व्यापक चर्चा होनी चाहिए।

भारत विकास संगम के संस्थापक के.एन. गोविंदाचार्य, कोट्टल बसवेश्वर भारतीय शिक्षण संस्थान के संस्थापक बसवराज पाटिल सेडम, विजयपुरा ज्ञान योगाश्रम के बसवलिंग श्री, बीदर के गुरुनानक संस्थान के सरदार बलबीर सिंह, अदम्य चेतना अध्यक्ष तेजस्विनी अनंत कुमार, कलबुर्गी दाहोस पीठ की डॉ. दक्षायाणी अब्बाजी उपस्थित थे।

वेद-उपनिषदों से भारत की संस्कृति की जड़ें मजबूत:

भारत की संस्कृति ऋषि-मुनियों, साधु-संतों की परंपरा वाली है। जिस देश की संस्कृति की जड़ें मजबूत होती हैं, वह देश विकास करता है, इस बात का उदाहरण भारत का विकास ही है, ऐसा कहते हुए रामनाथ कोविंद ने प्रकृति केंद्रित विकास की अवधारणाओं को समझाते हुए कहा कि सेडम में एकत्रित प्रकृति से विकास की ओर बढ़ने की अवधारणा वाला भारत संस्कृति संगम देश की सांस्कृतिक जड़ों को और मजबूत करेगा।

वेदों, उपनिषदों में प्रकृति केंद्रित पूजा-पाठ को महत्व दिया गया है। पंचभूतों, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, इन सबको वेदों-उपनिषदों में पूजनीय स्थान दिया गया है। प्रकृति की पूजा करते हुए ही हमें जीना चाहिए, यही इसका संदेश है। प्रकृति का बलिदान देकर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता।

महाकुंभ भी प्रकृति आराधना

प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में उन्होंने पवित्र स्नान आदि किए हैं, ऐसा बताते हुए रामनाथ कोविंद ने कहा कि गंगा, यमुना, सरस्वती नदियों का संगम स्थल प्रकृति का प्रतीक है। यहाँ हम नदियों की पूजा करते हैं। पेड़-पौधे, नदी, कुआँ, तालाब की पूजा करना भारतीयों की परंपरा है। यह सब प्रकृति केंद्रित आराधना का प्रतीक है।

सेडम के प्रकृति नगर में भारत विकास संगम के साथ ही कविकास अकादमी और कोट्टल बसवेश्वर भारतीय शिक्षण संस्थान के सहयोग से विशाल भारत विकास संगम कार्यक्रम 9 दिनों तक चलेगा, जो बच्चों, युवाओं समेत सभी को आमंत्रित कर रहा है।