सार

 उत्तर प्रदेश के कानपुर के बिकरू गांव में हुए एनकाउंटर के बाद एक नाम सबके जुबान पर है। वह है विकास दुबे। विकास के ऊपर सीओ समेत 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप है। ऐसे में हम उत्तर प्रदेश के एक ऐसे गैंगस्टर की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने सिर्फ 25 साल की उम्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ले डाली।

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के कानपुर के बिकरू गांव में हुए एनकाउंटर के बाद एक नाम सबके जुबान पर है। वह है विकास दुबे। विकास के ऊपर सीओ समेत 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप है। ऐसे में हम उत्तर प्रदेश के एक ऐसे गैंगस्टर की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने सिर्फ 25 साल की उम्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ले डाली। इतना ही नहीं वह पुलिस और प्रशासन के लिए भी चुनौती बन गया था। हम बात कर रहे हैं गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला की। आईए जानते हैं कि कैसे शुक्ला अपराध की दुनिया में आया और कैसे उसका अंत हुआ। 

कौन था श्रीप्रकाश शुक्ला
श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के मामखोर गांव में हुआ था। उसके पिता शिक्षक थे। श्रीप्रकाश पहलवानी करता था। लेकिन 20 साल की उम्र में पहली बार उसपर केस दर्ज हुआ था। 1993 में एक युवक ने उसकी बहन के साथ छेड़खानी कर दी। श्रीप्रकाश ने उसकी हत्या कर दी। यह उसकी जिंदगी का पहला अपराध था। 

विदेश से लौटकर गैंग में हुआ शामिल
श्रीप्रकाश शुक्‍ला इस हत्या के बाद बैंकॉक भाग गया। यहां से लौटकर भारत आया। उसने बिहार में सूरजभान गैंग से हाथ मिलाया। दूसरी बार शुक्ला का नाम तब सामने आया, जब उसने लखनऊ में बाहुबली नेता वीरेन्द्र शाही की हत्या कर दी। शुक्ला की हिम्मत बढ़ चुकी थी। 1998 में उसने बिहार सरकार में मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने हत्या कर दी। शुक्ला यहीं नहीं रुका, उसने 5 करोड़ में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ले ली। 

पहला एनकाउंटर जिसमें एके 47 और सर्वेलांस का इस्तेमाल हुआ
यूपी पुलिस के तत्‍कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने 1998 में श्रीप्रकाश शुक्ला को पकड़ने के लिए 50 जवानों का स्पेशल टास्क फोर्स बनाया। यह पहला एनकाउंटर था, जब पुलिस ने एके 47 और मोबाइल सर्वेलांस का इस्तेमाल किया। एसटीएफ ने उसके फोन को सर्वेलांस पर रखा। लेकिन इसकी भनक शुक्ला को पड़ गई। वह पीसीओ से बात करने लगा। इसके बाद पुलिस ने उसकी गर्लफ्रेंड के नंबर को भी सर्वेलांस पर रखा। इससे पता चला कि शुक्ला उसे गाजियाबाद स्थित किसी पीसीओ से बात करता है। 

वहां से बच निकला 
जब पुलिस को पता चला ये नंबर इंदिरापुरम पीसीओ का है। 4 मई 1998 को पुलिस जैसे ही वहां पहुंची, शुक्ला को इसकी भनक लग गई थी। शुक्ला पुलिस के पहुंचने से पहले वहां से भाग निकला। लेकिन एसटीएफ ने वसंधुरा इन्क्लेव के आगे उसे घेर लिया। पुलिस ने उससे आत्मसमर्पण करने को कहा। लेकिन उसने फायरिंग कर दी। जवाबी फायरिंग को शुक्ला को मार गिराया गया।