सार
लद्दाख के ज़ंस्कार में स्थित पेनसिलुंगपा ग्लेशियर (PG) पीछे खिसक रहा है। देहरादून स्थित Wadia Institute of Himalayan Geology (WIHG) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
नई दिल्ली. ग्लोबल वार्मिंग(Global Warming) कम ठंड और बर्फबारी (less cold and snow) के बुरे प्रभाव (bad effects) के कारण लद्दाख के जंस्कार में स्थित पेनसिलुंगपा ग्लेशियर (PG) पीछे खिसक रहा है। देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (Wadia Institute of Himalayan Geology-WIHG) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
हाल में किया गया अध्ययन
हाल में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि तापमान में बढ़ोतरी और सर्दियों में कम बर्फबारी होने के कारण यह ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है। वर्ष 2015 से देहरादून के वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (डब्लूआईएचजी) हिमनदों पर अध्ययन कर रहा है। यह संस्थान भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन है। इसके तहत ग्लेशियरों में बर्फ के जमाव की स्थिति की निगरानी, बर्फ पिघलने की स्थिति, पहले की जलवायु परिस्थितियों, भावी जलवायु परिवर्तन की स्थिति और इस क्षेत्र के ग्लेशियरों पर पड़ने वाले प्रभावों पर अध्ययन किया जाता है। संस्थान के वैज्ञानिकों के एक दल ने लद्दाख के ज़ंस्कार जैसे हिमालयी क्षेत्रों का अध्ययन किया, जिनके बारे में बहुत कम जानकारी है।
इस तरह किया गया सर्वे
ग्लेशियरों में बर्फ के जमाव की क्या स्थिति है और उस पर कितनी बर्फ है, इसका मौके पर जाकर मुआयना किया गया। इसके लिये बांस से बनी एक स्केल ग्लेशियर की सतह पर गाड़ी जाती है। उसे ड्रिल करके भीतर गाड़ा जाता है। इससे बर्फ की स्थिति की पैमाइश(नापना) की जाती है। ऐसा ही एक पैमाना 2016-19 से ग्लेशियर की सतह पर मौजूद था। पेनसिलुंगपा ग्लेशियर पर जमी बर्फ पर पहले और मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ा है, इसका आकलन किया गया। चार वर्षों के दौरान होने वाले मैदानी अध्ययनों से पता लगा है कि ज़ंस्कार घाटी का यह ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है। यह अध्ययन ‘रीजनल एनवॉयरेन्मेंट चेंज’ पत्रिका में छपा है। वैज्ञानिकों के दल ने ग्लेशियर के पीछे खिसकने का मूल कारण तापमान में बढ़ोतरी और सर्दियों में कम बर्फबारी को ठहराया है।
बर्फ के ऊपर मलबा भी एक कारण
अध्ययन में यह भी बताया गया है कि बर्फ के जमाव के ऊपर मलबा भी जमा है, जिसका दुष्प्रभाव भी पड़ रहा है। इसके कारण गर्मियों में ग्लेशियर का एक सिरा पीछे खिसक जाता है। इसके अलावा पिछले तीन वर्षों (2016-2019) के दौरान बर्फ के जमाव में नकारात्मक रुझान नजर आया है और बहुत छोटे से हिस्से में ही बर्फ जमी है।
दुनियाभर में तापमान बढ़ रहा है
अध्ययन से यह भी पता चला है कि हवा के तापमान में लगातार बढ़ोतरी होने के कारण बर्फ पिघलने में तेजी आएगी। उल्लेखनीय है कि दुनिया भर में हवा के तापमान में तेजी देखी जा रही है। संभावना है कि गर्मियों की अवधि बढ़ने के कारण ऊंचाई वाले स्थानों पर बर्फबारी की जगह बारिश होने लगेगी, जिसके कारण सर्दी-गर्मी के मौसम का मिजाज भी बदल जाएगा।
(तस्वीरें- मौके की तस्वीर (ए) और (बी) में क्रमशः वर्ष 2015 और 2019 में ग्लेशियर के छोर की स्थिति को दिखाया गया है। तस्वीर (ए) पर बने लाल घेरे से पता चलता है कि ग्लेशियर कितने क्षेत्र से खिसक चुका है। तस्वीर ‘ए’ और ‘बी’ में बने लाल तीर सम्बंधित स्थान को दर्शाते हैं। (सी) छोर के पीछे खिसकने की नाप ज़रीब (जंजीर से बने टेप) से की गई थी। यह नपाई 2015-2019 के दौरान की गई थी। गूगल अर्थ इमेज से यह दिखता है। (डी) डीजीपीएस ने ग्लेशियर के अग्र भाग के पीछे खिसकने को दर्शाया है। (ई) और (एफ) वर्णित स्थानों का निकटवर्ती दृश्य है, जिन्हें ज़रीब की मदद से ग्लेशियर के छोर के पीछे खिसकने की पैमाइश करने में इस्तेमाल किया गया है।)
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