सार

केंद्र सरकार द्वारा सचिव लेवल के पदों पर लेटरल एंट्री के नोटिफिकेशन को रद्द करने के बाद से बहस छिड़ गई है। आलोचकों का कहना है कि यह आरक्षण को कमजोर करने का प्रयास है, जबकि समर्थकों का तर्क है कि यह नए युग की शुरुआत है।

Lateral Entry news: केंद्र सरकार के सचिव लेवल के पदों पर लेटरल एंट्री के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया गया है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से लेकिर विपक्ष के प्रमुख नेताओं और बीजेपी के कई एनडीए सहयोगियों के विरोध के चलते सरकार ने फैसला वापस ले लिया है। दरअसल, लेटरल एंट्री में आरक्षण का प्रावधान नहीं किए जाने से विरोध हो रहा था। नियुक्ति की इस प्रक्रिया को लेकर सोशल मीडिया पर भी तरह-तरह के रिएक्शन किए जा रहे हैं। मोदी समर्थक इसे नए युग का आगाज बता रहे तो तमाम लोग इसे आरक्षण खत्म करने की साजिश बता रहे।

दिलीप मंडल ने कहा-पूर्व प्रधानमंत्रियों के पेडिंग काम निपटा रहे मोदी

लेटरल एंट्री को जायज ठहराते हुए प्रो.दिलीप मंडल ने इसे नए युग की शुरुआत करार दे रहे हैं। उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर लिखा: नेहरू का, इंदिरा का, राजीव का, वाजपेयी का, मनमोहन का सबका...पेंडिंग काम मोदी जी कर रहे हैं। 1950 से लटके सैकड़ों काम अब हो रहे हैं। हर घर में टॉयलेट तक अब जाकर बना।

मंडल ने दावा किया है कि लेटरल एंट्री में अब आरक्षण की व्यवस्था की जाएगी। पुराना विज्ञापन रद्द कर दिया गया है। उन्होंने लिखा: लगभग 75 साल से चली आ रही लैटरल एंट्री में सोशल जस्टिस और SC, ST, EWS तथा OBC को जोड़ने की व्यवस्था करने का काम एक ओबीसी पीएम को ही करना पड़ा। अब नया विज्ञापन आएगा। पहले की कोई भी सरकार कर सकती थी। पर सब बोझ ओबीसी मोदी पर ही आ जाता है। ओबीसी हमेशा से श्रमिक और उत्पादक रहा है। सब उसी को करना पड़ता है।

 

 

उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर लिखा: मोदी को ही संविधान दिवस समारोह भी शुरू करवाना पड़ा। 1950 से ये होना चाहिए था। अब जाकर सरकारी लेवल पर ये समारोह हो रहा है। बाबा साहब के जीवन से जुड़े पंचतीर्थ भी उनको ही बनवाने पड़े। लंदन का बाबा साहब का घर ख़रीदकर म्यूज़ियम बनाया गया। वह भी इसी सरकार में हुआ। NEET ऑल इंडिया सीट में ओबीसी कोटा कोई भी पीएम कर सकते थे। पर ये भी मोदी जी को ही करना पड़ा। ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा 1993 में दिया जा सकता था, वह भी मोदी ही अपनी सरकार में करते हैं। पहली बार केंद्र में 27 ओबीसी मंत्री भी वही बनाते हैं। भारत में पहला विश्व बौद्ध सम्मेलन भी वही करवाते हैं। भारत को पहली बार एक आदिवासी राष्ट्रपति भी मोदी के कार्यकाल में ही मिलता है। करुणानिधि की स्मृति में सिक्के भी मोदी जी ही जारी करते हैं। कलाकार कटेगरी से पहली बार एक दलित, और हमारे दौर के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार इलैयाराजा मोदी के समय ही मनोनीत कटेगरी से राज्य सभा पहुँचते हैं। इतने काम पेंडिंग रखे थे पिछली सरकारों ने। ये सब 2014 से पहले हो जाना था। ग़रीब सवर्णो का ख़्याल भी पहली बार मोदी जी ने ही किया और EWS को 10% दिया। महिला आरक्षण संविधान संशोधन बिल भी उन्होंने ही पास कराया।

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