सार

यह कहानी बंगाल की एक ऐसी कोरोना वॉरियर महिला की है, जिसने अपने बच्चे का चेहरा देखने महामारी से लड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब यह महिला वेंटिलेटर पर कोरोना से जंग लड़ रही थी, उस समय यह गर्भवती थी। इसी दौरान उसकी डिलिवरी हुई। करीब 10 दिन बाद जब वो ठीक हुई और गोद में अपने बच्चे को उठाया, तो उसकी आंखों से जीत के आंसू छलक पड़े।

कोलकाता, पश्चिम बंगाल. हौसले बुलंद हों, तो महामारी पर विजय हासिल की जा सकती है। यह कहानी ऐसी ही महिला की है। ये हैं हावड़ा की रहने वालीं 25 वर्षीय डॉ. आरफा सजादीन। डिलिवरी के 10 दिन पहले ये कोरोना संक्रमित हो गईं। हालत इतनी बिगड़ गई कि तुरंत हावड़ा स्थित आईएलएस हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा। उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। इसी दौरान उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया।

10 दिन बाद देखा बच्चे का चेहरा
डॉ. आरफा का इलाज करने वाले डॉक्टर कौशिक नाहा विश्वास ने बताया कि जब उन्हें अस्पताल लाया गया, तब व 37 हफ्ते की गर्भवती थीं। मां-बच्चे को बचान एक बड़ी चुनौती थी, खासकर तब; जब गर्भवती वेंटिलेटर पर हो। उनका ग्लूकोज खतरनाक स्थिति पर था। लिहाजा सीजेरियन ऑपरेशन का निर्णय लेना पड़ा।

सबने मानों खो दी थी आशा
डॉक्टर खुद मानते हैं कि डॉ. आरफा की हालत इतनी क्रिटिकल थी कि एक बारगी तो सबने उम्मीद ही छोड़ दी थी। उनके फेफड़ों में संक्रमण बुरी तरफ फैल चुका था। लेकिन आखिरकार 10 दिन बाद उन्होंने संक्रमण को हरा दिया।

बच्चा निगेटिव निकला
डॉ. कौशिक नाहा विश्वास ने बताया कि यह खुशी की बात रही कि बच्चा का कोरोना टेस्ट निगेटिव निकला। डॉक्टर के मुताबिक, महिला को डिसेमिनेटेड इंट्रावास्कुलर कोगुलेशन (डीआइसी) नामक बीमारी निकली थी। यह एक गंभीर रोग है, जिसमें रक्त के थक्के को नियंत्रित करने वाले प्रोटीन अति सक्रिय हो जाते हैं। यह खतरनाक होता है।

बच्चे को गोद में उठाकर रो पड़ी महिला
10 दिन बाद जब डॉ. आरफा ठीक हुईं और उनके बच्चे को गोद में रखा गया, तो उनकी आंखों से आंसू बह निकले। वे मानती हैं कि उनमें जीने की चाह थी।

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