सार
कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। हजारों लोग हर दिन अपनी जान गवां रहे हैं। लेकिन जो लोग इस वायरस को हराकर वापस लौट रहे हैं, उनके लिए ये कोई दूसरे जीवन से कम नहीं है। कुछ ऐसा ही महसूस कर रहे हैं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के रहने वाले राजेश भदौरिया। जिनके घर में उनके अलावा उनका बड़ा भाई, मां और पिता संक्रमित थे। लंग कैंसर से पीड़ित मां ने 82 प्रतिशत लंग डैमेज होने के बाद भी कोरोना से जंग जीत ली। इस मुश्किल वक्त से गुजरने के बाद राजेश हर दिन अपने परिवार को बचाने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं।
भोपालः Asianetnews Hindi की दीपाली विर्क ने राजेश्वर भदौरिया से बातचीत की। उन्होंने बताया, 'पिछले महीने हल्का बुखार और खांसी होने के बाद मैंने तुरंत कोरोना रैपिड टेस्ट करवाया। रिपोर्ट पॉजिटिव आई। मैंने तुरंत अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया। मेरे लिए कोरोना की जंग इतनी मुश्किल नहीं थी, जितना मुश्किल अपने 2 साल के बच्चे से दूर रहना था।' दरअसल, राजेश की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद घर वालों ने भी टेस्ट करवाया। पत्नी और 2 साल के बच्चे की रिपोर्ट निगेटिव आई। लेकिन खुद संक्रमित थे, इसलिए डर रहे थे। उन्होंने बच्चे को नानी के घर भेज दिया ताकि वो संक्रमण से दूर रहे। वो कहते हैं, 'बच्चे से दूर होने का दुख तो बहुत था, लेकिन इस बात का सुकून था कि वो सुरक्षित है।'
ऐसे हुए संक्रमण का शिकार
दरअसल, राजेश भदौरिया की माताजी कैंसर से जंग लड़ रही हैं। हर 21 दिन में उनकी कीमोथेरेपी होती है। जब राजेश और उनके बड़े भाई माताजी का कीमो करवाने भोपाल के जवाहर लाला नेहरू कैंसर अस्पताल गए तो वहीं उन्हें कोरोना का संक्रमण मिला।
कैंसर पीड़ित मां भी कोरोना पॉजिटिव
राजेश के पॉजिटिव होने के कुछ दिन बाद बड़े भाई, माता जी और पिताजी भी संक्रमित हो गए। हालांकि, वो लोग अलग घर में रहते थे लेकिन इस तरह से घरवालों के कोरोना वायरस आने के बाद मनोबल जैसे टूट ही गया। सबसे ज्यादा चिंता माताजी की होती थी क्योंकि उन्हें लंग कैंसर है। उनके 82 प्रतिशत लंग्स में इंफेक्शन हो गया था। ऑक्सीजन लेवल 34 प्रतिशत तक पहुंच गया था। उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाने की नौबत आ गई। राजेश बताते हैं, हॉस्पिटल में बेड की कमी के चलते काफी मशक्कत करनी पड़ी। आखिरकार कैंसर अस्पताल में जगह मिली, क्योंकि काफी समय से उनका इलाज वहीं चल रहा है। डॉक्टर्स ने काफी मनोबल बढ़ाया और मम्मी ने कोरोना से जंग जीत ली। असलियत में हमारी मां असली कोरोना विनर हैं। मां के साथ-साथ भाई और पापा ने भी कोरोना को हराया।
पत्ना ने दिया हर कदम पर साथ
35 वर्षीय राजेश खुद सालों से डायबिटीज जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं। उनके पॉजिटिव आने के बाद पत्नी दीक्षा ने दिन रात एक करके पति की सेवा की। हालांकि, एक मां के लिए बच्चे से दूर होना कितना मुश्किल होता है, ये हम सब जानते हैं, लेकिन दीक्षा कहती हैं- मेरे लिए उस समय मेरा परिवार सबसे ज्यादा जरूरी था। इसलिए दिल पर पत्थर रखकर बेटे अदविक को उसकी नानी के घर भेज दिया।
खाने-पीने का रखा विशेष ध्यान
दीक्षा बताती हैं- उन्होंने दवाइयों के साथ-साथ पति के खाने पर बहुत जोर दिया। नॉनवेज के साथ-साथ फ्रूट्स और हरी सब्जियां खाने में शामिल कीं। कपूर और लॉग की थैली बनाकर होममेड ऑक्सीजन दिया और उसे थैली को हर दिन बदला। हर 1-2 घंटे में उनका ऑक्सीजन चेक करना, खाने से पहले और खाने के बाद शुगर की जांच करना और भाप दिलवाना। ये रूटीन 14 दिनों तक फॉलो किया। इसके अलावा दिन में काढ़ा के साथ गिलोय का जूस भी दिया।
कोरोना के बाद सताया ब्लैक फंगस का डर
कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के कुछ दिन बाद राजेश को आंखों में दर्द होने लगा। उन्होंने जब इंटरनेट पर सर्च किया तो देखा कि ब्लैक फंगस होने के शुरुआती लक्षण भी कुछ इसी तरह के होते हैं। उन्होंने तुरंत आंखों का टेस्ट करवाया। राजेश कहते हैं- 14 दिन के बाद जब मेरी रिपोर्ट नेगेटिव आई तो दो-चार दिन बाद आंखें दर्द होने लगीं। मैं डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने आई साइट चेक करने के साथ सिटी स्कैन और ब्लड टेस्ट जैसे कई सारे टेस्ट करवाए। हालांकि, ब्लैक फंगस जैसा कुछ नहीं था। मैं और घरवालों ने राहत की सांस ली। फिर भी एहतियात के तौर पर हमने वह सारे प्रिकॉशन फॉलो किए जो डॉक्टर ने बताए थे।
इस तरह बिताए 14 दिन
राजेश कहते हैं- 14 दिन का वक्त गुजारना मेरे लिए मुश्किल तो था, लेकिन इस दौरान मैंने ना सिर्फ अपने आप को पॉजिटिव रखा बल्कि सोशल मीडिया से दूर हटकर कुछ इंटरटेनमेंट की चीजें अपने फोन में देंखी, जैसे वेब सीरीज और कॉमेडी मूवीस। हालांकि दिन भर मोबाइल देखना भी सेहत के हिसाब से ठीक नहीं था ऐसे में दिन में दो बार मैंने योगा भी किया। मेडिटेशन से मेरे शरीर और दिमाग को बहुत ज्यादा पॉजिटिविटी मिली।
कोरोना से मिली ये सीख
कोरोना के सिम्टम्स आने पर पैनिक नहीं होना चाहिए। तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। क्वारंटीन 14 दिन का पीरियड टफ होता है। यहां पर डिप्रेशन से जुड़ी कई सारी समस्या आती हैं, लेकिन इनसे ध्यान हटाने के लिए खुद को बिजी रखना चाहिए। एक कमरे में अलग रहना .वह भी बहुत मुश्किल था। योगा करना, मोबाइल में वीडियोज देखना सिर्फ इंटरटेनमेंट से रिलेटेड और सोशल मीडिया और नेगेटिव न्यूज को पूरी तरह अवॉइड किया। सबसे इंपॉर्टेंट है अपने आप को यह समझाना कि मैं ठीक हो जाऊंगा, मुझे ठीक होना है।
इस कड़ी में पढ़िए इनके संघर्ष की पूरी कहानी... मां का ऑक्सीजन लेवल 65 था, वे ICU में थीं, लेकिन हम उन्हें हिम्मत देते रहे कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ पाया
मैं कोरोना पॉजिटिव... लेकिन हिम्मत जब टूटी जब पापा की अचानक बिगड़ने लगी तबियत
70 % लंग्स खराब..लगने लगा अब नहीं बचूंगी, डॉक्टर माने हार..लेकिन बेटी के चमत्कार से जीती जंग
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