सार

कोरोना वायरस एक अदृश्य दुश्मन है। इसने न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनियाभर में ऐसी तबाही मचाही है, जिसे हम चाहकर भी दशकों तक नहीं भूल पाएंगे। हम में से न जाने कितनों ने अपनों को खोया है। लेकिन हमारे बीच कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस अदृश्य दुश्मन को हराकर ही चैन लिया है। Asianet Hindi समाज में कोरोना को लेकर फैले नकारात्मक माहौल को खत्म करने के लिए ऐसे ही कोरोना विनर की कहानी हर रोज आपके सामने ला रहा है।
 

लखनऊ. कोरोना विनर की इस कड़ी में आज हम उत्तर प्रदेश के जालौन से मीना बादल की कहानी बता रहे हैं, जिनका ऑक्सीजन लेवल 65 तक आ गया था। यहां तक कि आईसीयू में रोज होती मौत को देखते हुए हिम्मत भी टूटने लगी थी। लेकिन उन्हें उनके अपनों से इस वायरस से लड़ने की शक्ति मिली और सही समय पर मिले इलाज से वे कोरोना पर जीत हासिल करने में सफल हो सकीं। Asianet Hindi के अमिताभ बुधौलिया ने मीना बादल के बेटे आदित्य बादल से बात कर संक्रमित होने से ठीक होने तक की कहानी जानी। वे इलाज के दौरान भी हर वक्त अपनी मां के साथ रहे। आइए जानते हैं एक और कोरोना विनर की कहानी.....

मां-पिता दोनों एक साथ संक्रमित हुए
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव थे। गांव में हर रोज वोट मांगने के लिए प्रत्याशियों का आना जाना था। इसी दौरान 19-20 अप्रैल को मेरी मां और पिता को बुखार आया। अगले दिन जांच कराई, तो कोरोना संक्रमित थे। हालांकि, उस वक्त तक कोई ज्यादा लक्षण नहीं थे। दोनों लोगों को होम क्वारंटीन कराया गया। धीरे धीरे समय बीता चौथे-पांचवें दिन मां को दोबारा बुखार आया। डॉक्टर से बात की। उन्होंने दवा बदलने की सलाह दी। लेकिन मां को आराम नहीं हुआ।

संक्रमित होने के 6वें दिन से गिरा ऑक्सीजन लेवल
संक्रमित होने के 5वें-6वें दिन, जहां पिता की तबीयत ठीक थी। वहीं, मां की तबीयत खराब होने लगी। उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई। ऑक्सीजन लेवल 90 से कम होने लगा था। अगले ही दिन प्राइवेट अस्पताल लेकर पहुंचे। तब तक ऑक्सीजन लेवल 65 रह गया था। वहां डॉक्टरों ने सुविधाएं न होने के चलते रिफर कर दिया। मेडिकल कॉलेज उरई में मां को एडमिट कराया।

असली परेशानी अब शुरू हुई
कोरोना की दूसरी लहर में हालात बद से बदतर थे। ये खबरें रोज टीवी पर देख ही रहा था। लेकिन ये नहीं पता था कि इन सबसे खुद गुजरना पड़ेगा। अस्पताल में ऑक्सीजन की व्यवस्था खुद करनी पड़ रही थी। जैसे तैसे सिलेंडर की व्यवस्था की। मां को ऑक्सीजन लगी। उन्हें आईसीयू में एडमिट किया गया। डॉक्टर्स का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने समय रहते इलाज शुरू कर दिया। 5 दिन तक हर रोज रेमडेसिवीर इंजेक्शन दिए गए।

हर रोज होती मौतों को देखकर हिम्मत जवाब देने लगी
जिस दिन मां को एडमिट कराया था, उसी वक्त वहां एक मरीज की जान गई थी। कागजी कार्रवाई के चलते शव दो घंटे तक वहीं पड़ा रहा। इसके दो दिन बाद एक और मौत हो गई। ऐसे में मां भी चिंतित थीं। उनकी हिम्मत भी जवाब देने लगी थी। ऊपर से उनकी तबीयत भी बिगड़ती जा रही थी। हालांकि, डॉक्टर अपना फर्ज काफी अच्छे से निभा रहे थे।

मैंने मां से कहा-आपको कुछ नहीं होगा
आईसीयू की स्थिति को देखकर मुझे लग गया था कि मां पर क्या बीत रही है। ऐसे में मैंने सोचा कि मां को इस मुश्किल वक्त में हिम्मत दी जाए। मैं और मेरा भाई हर थोड़ी देर में मां के पास जाते और उनसे कहते कि आपको कुछ नहीं होगा। आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगी। इससे उनको अंदर से हिम्मत मिली।

इलाज के दौरान मैं यह बात समझ गया था कि इलाज अपनी जगह है, अगर मां हिम्मत हार गईं तो उन्हें कोई डॉक्टर ठीक नहीं कर पाएगा। हम जब भी उनके पास जाते, उन्हें हिम्मत देने की कोशिश करते। हमारा यह तरीका काफी कारगर साबित हुआ। हमने देखा कि 4 मई तक मां को आराम हो चला था। अब उनका ऑक्सीजन लेवल 90 तक पहुंच गया था।

समस्या फिर भी थीं
मां की रिपोर्ट निगेटिव थी। फेफड़ों में इफेक्शन भी खत्म हो गया था। लेकिन अस्पताल से छुट्टी के बाद कमजोरी, थकान और पेट में दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। हालांकि, लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहकर इलाज कराया। अब काफी हद तक सब ठीक है।

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