सार
रामायण कालीन रामसेतु(Ramayana era Ram Setu) को राष्ट्रीय स्मारक(national monument) घोषित करके संरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट 9 मार्च को सुनवाई कर सकता है। इस संबंध में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी(BJP leader Subramanian Swamy)ने एक याचिका(petition) दाखिल कर रखी है।
नई दिल्ली. रामायण कालीन रामसेतु(Ramayana era Ram Setu) को राष्ट्रीय स्मारक(national monument) घोषित करके संरक्षण देने के मामल में सुप्रीम कोर्ट ने 9 मार्च को सुनवाई का आश्वासन दिया है। इस संबंध में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी(BJP leader Subramanian Swamy)ने एक याचिका(petition) दाखिल कर रखी है। चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच को स्वामी ने बताया कि याचिका पर कई महीनों से सुनवाई नहीं हुई है। इसे कार्य सूची से हटाया नहीं गया है। इस पर बेंच ने 9 मार्च को सुनवाई का आश्वासन दिया। बता दें कि स्वामी ने पिछले साल 8 मार्च को तत्काल सुनवाई के लिए
UPA के कार्यकाल में शुरू हुआ था सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट
यूपीए सरकार के शासनकालन 2015 में सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट के तहत जहाजों के लिए रास्ता बनाने रामसेतु को तोड़ा जाना था। हालांकि बाद में यह कार्रवाई रोक दी गई। इसके बाद रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग उठने लगी। सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट की तब लागत करीब ढाई हजार करोड़ थी। प्रोजेक्ट के तहत बड़े जहाजों के आवागमन के लिए करीब 83 किलोमीटर लंबे दो चैनल बनाए जाने थे। ऐसा होने पर जहाजों का समय 30 घंटे बचता। इन चैनल्स में से एक राम सेतु जिसे एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, से गुजरना था। इस समय श्रीलंका और भारत के बीच इस रास्ते पर समुद्र की गहराई कम होने की वजह से जहाजों को लंबा रास्ता तय करना पड़ता है।
राम सेतु के बारे में
राम सेतु का जिक्र बाल्मिकी रामायण में मिलती है। इसके अनुसार, रावण सीता का अपहरण करके उसे लंका(आज के समय का श्रीलंका) ले गया था। तब वानर सेना ने तैरने वाले पत्थर डालकर समुद्र में रास्ता बनाया था। कहा जाता है कि यह रामसेतु वही है। रामसेतु भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की एक चेन कहा जाता है। यह भारत के लिए रामसेतु, तो बाकी दुनिया के लिए एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) है। राम सेतु की लंबाई करीब 30 मील (48 किमी) है। समुद्र में डूबा रामसेतु मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक-दूसरे से अलग करता है। पुरातत्वविद मानते हैं कि कोरल और सिलिका पत्थर जब गरम हो जाता है, तो उनमें हवा भर जाती है। यानी वे हल्के होने से पानी में तैरने लगते हैं। इतिहासकारों के अनुसार, 1480 में एक भयंकर तूफान से इस पुल को नुकसान पहुंचा था। इससे पहले श्रीलंका और भारत के बीच आने-जाने वाले लोग इसी पुल का इस्तेमाल करते थे। अमेरिकी रिसर्च भी मानती है कि यह 7000 साल पुराना है।
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