हिजाब को लेकर दिए अपने आदेश में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा- हम इस बात से निराश हैं कि अचानक, वह भी शैक्षणिक अवधि के बीच में ही हिजाब का मुद्दा कैसे पैदा हो गया। जिस तरह से हिजाब मामला सामने आया, वह इस तर्क की गुंजाइश देता है कि कुछ 'अनदेखे हाथ' सामाजिक अशांति और असामंजस्य पैदा करने के लिए काम कर रहे हैं।
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Hijab row : हाईकोर्ट ने कहा- हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं, यूनिफाॅर्म पर आपत्ति नहीं कर सकते छात्र
Hijab row Virdict : हिजाब को लेकर जनवरी से देशभर में गरमाया विवाद आज कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के बाद खत्म हो गया। चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कष्णा एस दीक्षित और जस्टिस एम खाजी की तीन सदस्यीय बेंच ने 11 सुनवाई के बाद 25 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि हिजाब इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। स्कूलों में जो यूनिफॉर्म लागू की जाएगी, उसका पालन करना होगा। छात्र इस पर आपत्ति नहीं कर सकते हैं। फैसले से पहले कर्नाटक में धारा 144 लागू कर दी गई। स्कूल, कॉलेजों के बाहर पुलिस का पहरा है। भीड़ इकट्ठा करने पर रोक है। उधर, फैसले से पहले चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी के घर की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई है।
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High court के फैसले के बाद केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा- मैं कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं। मेरी सभी से अपील है कि राज्य और देश को आगे बढ़ना है, सभी को HC के आदेश को मानकर शांति बनाए रखनी चाहिए। छात्रों का मूल कार्य पढ़ाई करना है। इसलिए इन सब को छोड़कर उन्हें पढ़ना चाहिए और एक होना चाहिए।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हिजाब प्रतिबंध को बरकरार रखने के लिए सबरीमाला (मामले) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दोहराया। इसमें कहा गया है कि आपको यह बताना होगा कि जिस प्रथा को आप संरक्षित करना चाहते हैं वह धर्म के लिए आवश्यक है।
हाईकोर्ट द्वारा हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने के आदेश के बाद मीडिया से बात करते हुए कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कहा कि अनुशासन, व्यक्तिगत पसंद से ज्यादा प्रबल होता है। हाईकोर्ट का फैसला संविधान के अनुच्छेद 25 की व्याख्या में एक आदर्श बदलाव का प्रतीक है।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि एक संस्थान में छात्रों के लिए यूनिफॉर्म का निर्धारण उचित प्रतिबंधों की श्रेणी में आता है। सरकार के पास इस संबंध में सरकारी आदेश पारित करने की शक्ति है। सरकारी आदेश को नहीं मानने का कोई कारण नहीं है।
मंगलवार को सुनवाई में कर्नाटक HC ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लामिक आस्था के तहत एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने राज्य सरकार द्वारा जारी ड्रेस कोड से संबंधित 5 फरवरी 2022 के सरकारी आदेश को भी बरकरार रखा। मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की तीन सदस्यीय पीठ ने मंगलवार को हिजाब मामले से संबंधित सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया और छात्रों को वर्दी पर आपत्ति नहीं हो सकती।
इस ममले की सुनवाई 10 फरवरी को शुरू हुई थी। इसमें छात्राओं के वकीलों ने मांग रखी थी कि जब तक कोर्ट हिजाब पर फैसला नहीं सुना देता तब तक छात्राओं को स्कूल-काॅलेजों में हिजाब पहनकर आने की अनुमति दी जाए। हालांकि, कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए फैसला आने तक किसी भी तरह के धार्मिक परिधान पहनकर आने पर रोक लगा दी थी। अगले दिन इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला आने तक इंतजार करने को कहा। माना जा रहा है कि छात्राओं के वकील मामले को SC में चुनौती दे सकते हैं।
दरअसल, सुनवाई के दौरान सरकार से पूछा गया था कि क्या इस्लाम के तहत हिजाब पहनना अनिवार्य धार्मिक प्रथा है? क्या इस्लाम के तहत हिजाब पहनना अनिवार्य धार्मिक प्रथा है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता का अधिकार? क्या 5 फरवरी का जीओ बिना दिमाग लगाए और स्पष्ट रूप से मनमाना जारी किया गया था? इस पर सरकार ने बताया है कि हिजाब धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। और हमारे पास आदेश जारी करने का अधिकार है।
हिजाब मामले में सरकार की तरफ से कहा गया कि मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनना इस्लाम के तहत आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। स्कूल यूनिफॉर्म लागू किया जाना केवल एक उचित प्रतिबंध है, जिस पर छात्रों को आपत्ति नहीं हो सकती है। सरकार के पास आदेश जारी करने का अधिकार है।