सार

बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस आधार पर उसकी जमानत खारिज की थी, कि वह पर्यटन और यात्रा से जुड़ा व्यवसाय कर रहा है और ऐसा व्यवसाय करने वाला व्यक्ति भाषा और कम्युनिकेशन स्किल से वाकिफ होता है। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी को हिंदी में अपने अधिकार के बारे में बताया गया जो राष्ट्रीय भाषा है। 

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में प्रतिबंधित सामान ले जाने के आरोप में पकड़े गए एक तेलुगी भाषी (Telugu speaker) आरोपी ने अपनी जमानत याचिका अस्वीकार करने के बॉम्बे हाईकोर्ट  (Bombay High court) के फैसले को चुनौती दी है। उसने तर्क दिया है कि उसे महाराष्ट्र पुलिस (Maharashtra Police) द्वारा मेरे अधिकारों की सूचना हिंदी भाषा में दी गई, जबकि वह केवल तेलुगू भाषा समझता है। 

इससे पहले गंगम सुधीर कुमार रेड्‌डी नामक इस शख्स ने बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपील की थी। लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ जमानत देने से इनकार कर दिया था कि जिस भाषा (हिंदी) में रेड्डी को उनके वैधानिक अधिकारों के बारे में बताया गया था, वह राष्ट्रीय भाषा (national language) है।

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नारकोटिक्स विभाग के अधिकारियों ने पकड़ा था 
हाईकोर्ट ने कहा कि आवेदक को हिंदी में अपने अधिकार के बारे में बताया गया, जो कि राष्ट्रीय भाषा है। उसे मुंबई से पकड़ा गया था। वे आवेदक टूर एंड ट्रैवल का व्यवसाय कर रहा था। हाईकोर्ट ने कहा था कि उसे अधिनियम की धारा 50 के तहत अपने आधिकारों के बारे में बताया गया था। न्यायालय का मानना है कि वह हिंदी भाषा के बारे में जानता था। उसे मुंबई से गिरफ्तार किया गया था और पुलिस ने आरोपी के वाहन से प्रतिबंधित सामग्री बरामद की थी।  रेड्‌डी का दावा था कि एंटी-नारकोटिक्स सेल ने उसे हिंदी में उसके वैधानिक अधिकारों के बारे में जानकारी दी, जबकि वह सिर्फ तेलुगु ही जानता था। रेड्डी ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 (जिन शर्तों के तहत व्यक्तियों की तलाशी ली जाएगी) का पालन न करने का हवाला देते हुए जमानत मांगी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।

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पर्यटन और यात्रा से जुड़ा व्यापार करने वाला भाषाएं समझता है 
हाईकोर्ट ने इस आधार पर उसकी जमानत खारिज की थी, कि वह पर्यटन और यात्रा से जुड़ा व्यवसाय कर रहा है और ऐसा व्यवसाय करने वाला व्यक्ति भाषा और कम्युनिकेशन स्किल से वाकिफ होता है। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी को हिंदी में अपने अधिकार के बारे में बताया गया जो राष्ट्रीय भाषा है। अब रेड्‌डी ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी है। इसमें कहा गया है कि हाईकोर्ट यह नहीं मान रहा कि हिंदी एक राष्ट्रभाषा नहीं है।  

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बनाया याचिका का आधार
याचिका में कहा गया है कि आरोपी को उस अपराध के विवरण के बारे में नहीं बताया गया, जिसके लिए उसे गिरफ्तार किया गया था। एडवोकेट लेविश एडवर्ड और संदीप सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि गिरफ्तारी के आधार के बारे में बताया नहीं गया, जो कि अभियुक्तों के मौलिक और वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। अपील में कहा गया है कि चार्जशीट दायर होने के बाद भी आरोपी 2 साल से अधिक समय से हिरासत में था। यह भी बताया गया कि आरोप अभी तय नहीं हुए हैं और मुकदमा शुरू नहीं हुआ है। दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद 22(5) के तहत एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि वह उसे समझी जाने वाली भाषा में लिखित रूप में जानकारी और उसके अधिकार बताए जाने चाहिए। 

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